बालक के विकास पर माता-पिता के व्यक्तित्व, अभिवृत्तियों और व्यवहार का क्या प्रभाव | Parents and Children Behavior

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बालक के विकास पर माता-पिता के व्यक्तित्वअभिवृत्तियों और व्यवहार का क्या प्रभाव 

बालक के विकास पर माता-पिता के व्यक्तित्व, अभिवृत्तियों और व्यवहार का क्या प्रभाव | Parents and Children Behavior


 

बालक के विकास पर माता-पिता के व्यक्तित्वअभिवृत्तियों और व्यवहार का क्या प्रभाव 

 

1. व्यक्तित्व का प्रभाव-

माता-पिता के व्यक्तित्व का प्रभाव भी उनके बालकों पर पड़ता है अर्थात् जैसा उनका व्यक्तित्व होगा वैसा ही व्यवहार वे अपने बच्चों के साथ करते हैं। यदि पिता की प्रशासकीय प्रवृत्ति हैतो वह हमेशा पत्नी व बच्चों पर अपना हुक्म चलाते रहेंगे। इसका परिणाम यह होता है कि बड़े वच्चे अपने से छोटे बच्चों पर भी इसी तरह हुक्म चलायेंगे। यदि माँ का स्नेहशील एवं उदारवादी व्यक्तित्व है तो इसका प्रभाव बच्चों पर पड़ेगा। परिवार में बड़ी बहन अपने से छोटे भाई-बहनों से स्नेह करेगी तथा उनके प्रति अपना दृष्टिकोण उदारवादी रखेगी।

 

2. अभिवृत्तियों का प्रभाव-

माता-पिता की अभिवृत्तियों का बच्चों पर प्रभाव पड़ता है। अपने बच्चों में किसी की अधिक प्रशंसा करना या अधिक निन्दा करना अथवा अधिक संरक्षण देना या उपेक्षा करना आदि बातों का बालक के विकास पर प्रभाव पड़ता है। बालक और वालिकाओं के अन्तर के फलस्वरूप उनके प्रति व्यवहार में अन्तर आना भी उनके विकास पर प्रभाव डालता है। किसी बच्चे को बार-बार डांटनाउसके असभ्य व्यवहार के लिये सजा देनालड़के को लड़की से श्रेष्ठ बताना आदि अभिवृत्तियों के फलस्वरूप कुछ वच्चों के विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। माता-पिता को बालकों के सामने आदर्श व्यवहार प्रस्तुत करना चाहिये ताकि उनका समुचित दिशा में विकास हो सके।

 

3. व्यवहार का प्रभाव-

  • बालक और माता-पिता के सम्बन्धों की महत्वपूर्ण बात घर का स्नेहमय वातावरण है। फैलस का मत है कि बालक पर प्रभाव डालने वाला प्रमुख तत्व परिवार का स्नेह है। सेमण्ड का कथन है कि माता-पिता के व्यवहार के प्रमुख तत्व हैं-स्वीकृति या अस्वीकृति तथा स्वतंत्रता या नियंत्रण। यहाँ स्वीकृति से आशय यह है कि माता-पिता बालकों की आकांक्षाओं की पूर्ति में रुचि लेंउन्हें प्रोत्साहित करेंउन्हें आशावान बनायें तथा उनके प्रति प्रेमस्नेह व सुरक्षा प्रदान करें। उन्हें परिवार में मान्यता दी जाय तथा उनके विचारों का भी सम्मान किया जाय। बालक-बालिकाओं के प्रति समान व्यवहार हो तथा समान रूप से दोनों की इच्छाओं की पूर्ति तथा समस्याओं के निदान हेतु प्रयास किया जाय। अस्वीकृति से आशय उनके प्रति रुचि न लेनाउनकी उपेक्षा करनाडांटनाफटकारनाउन पर आरोप लगानाधमकी देनाउन पर कठोर नियंत्रण लगानाउनकी निन्दा करना तथा शारीरिक दण्ड आदि से है। बालकों को आवश्यकता के अनुसार दी गई स्वतंत्रता और सीमित नियंत्रण का उनके विकास पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है जबकि कठोर नियंत्रण और थोड़ी-सी स्वतंत्रता न मिलने पर बालकों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। उनमें संवेगात्मक असंतुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और ऐसे बच्चे कुंठाओं से ग्रसित हो जाते हैं।

 

माता-पिता और बालक के पारस्परिक सम्बन्धों का प्रभाव-माता-

  • पिता और बालक के पारस्परिक सम्बन्ध को समझने हेतु तीन प्रमुख बातें ध्यान में रखना आवश्यक हैं। पहली बात यह है कि बालक अपने माता-पिता को किस रूप में देखता है और इसी बात पर उसका व्यवहार और समायोजन निर्भर करता है। यदि वह अपने माता-पिता को कठोर अनुशासन वालादण्ड देने वाला व्यक्ति मानते हैं तो उनका माता-पिता के प्रति असंतोष का भाव रहेगा जिसे वे किसी न किसी रूप में भली-भाँति अभिव्यक्त करेंगे। पर यदि वे अपने माता-पिता को स्नेहमयदयालु और सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार करने वाला मानते हैं तो वे उनके प्रति खुश और संतुष्ट रहेंगे। मैल्टजर के अनुसारपरिवार में अनुशासन सम्बन्धी दायित्व-निर्वाह करने के कारण लड़के पिता के प्रति असंतुष्ट ही नहीं अपितु उनकी कड़ी आलोचना भी करते हैं। इस सम्बन्ध में लड़के-लड़कियों के व्यवहार में अन्तर रहता है। लड़कियों की अपेक्षा लड़के माता-पिता व्यवहार को कड़ा समझते हैं। सारूप्यता की प्रक्रिया के अन्तर्गत बच्चा माता-पिता के व्यवहारअभिवृत्तियों और विशेषताओं को अपने अन्दर समाहित कर लेता है क्योंकि वह इस क्षेत्र में बड़ों का अनुकरण करता है। जब परिवार में बालक को स्वीकृति मिल जाती हैतो स्नेह के कारण वह माता-पितां की विशेषताओं को धारण कर लेता हैकिन्तु विपरीत स्थिति में वह ऐसा नहीं करता। बालक-बालिकाओं में इस दृष्टि से अन्तर रहता है। बालिकायें माँ के साथ सारूप्यता बनाये रखती है।

 

  • माता-पिता अपने निर्देश पालन करवाने हेतु वालकों पर अनुशासन रखते हैं। वे बालक को सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों के अनुरूप आचरण करने के लिये प्रेरित करते हैं। वे चाहते हैं कि बच्चा निर्देशानुसार आचरण करेपर जब वह ऐसा नहीं करता और अनुशासन भंग कर दण्ड का स्वरूप धारण कर लेता है तो इसका तात्पर्य यह होता है कि बच्चे का आचरण ठीक नहीं है।

 

  • इस प्रकार स्पष्ट है कि माता-पिता के सम्बन्ध में बालक की अवधारणाउनके साथ सारूप्यता और अनुशासन माता-पिता और बालक के पारस्परिक सम्बन्धों का निर्धारण करते हैं जिनका कि बाल-विकास पर व्यापक प्रभाव पड़ता है।

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