शुक्ल युग के निबंधकार और उनकी रचना। Shukl yudh ke nibandh aur nibandhkaar

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शुक्ल युग के निबंधकार और उनकी रचना 

शुक्ल युग के निबंधकार और उनकी रचना। Shukl yudh ke nibandh aur nibandhkaar


 

  • आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने विषयभाषा और शैली सभी दष्टियों से हिंदी निबंधों चरमोत्कर्ष पर पहुॅचा कर उन्हें उनकी पराकाष्ठा प्रदान की। निःसन्देह आचार्य राम चन्द्र शुक्ल को हिंदी का सर्वश्रेष्ठ निबंधकार कहा जा सकता है। द्विवेदी युग के बाद निबंधों का विकास इन्हीं के व्यक्तित्व से पहचाना जाता है। इसलिए इन्हीं के नाम पर इस युग का नामकरण किया गया है।

 

  • हिंदी निबंध के विकास की गति में तीसरे मोड़ का श्रेय रामचन्द्र शुक्ल के निबंधों के संग्रह चिंतामणि को है। इसने पाठकों के समक्ष नवीन विचारनव अनुभूति एवं नई शैली उपस्थित की। इस युग के निबंधकार आचार्य रामचन्द्र शुक्लगुलाब रायजयशंकर प्रसादसुमित्रा नन्दन पंतपं. सूर्यकांत त्रिपाठी निरालामहादेवी वर्माआचार्य नंन्द दुलारे वाजपेयीशांति प्रिय द्विवेदी प्रेमचन्दराहुल सांकृत्यायनरामनाथ सुमन तथा माखन लाल चतुर्वेदीपदुम लाल पुन्नालाल बख्शी वियोगी हरिरायकृष्ण दासवासुदेव शरण अग्रवालडॉ. रघुवीर सिंह आदि उल्लेखनीय है।

 

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंधकार और उनकी रचना


  • आचार्य राम चन्द्र शुकल ने चिंतामणि (तीन भाग) द्वारा नवीन विचारधारानवीन अनुभूति तथा नव्य शैली का प्रारूप प्रदान किया। चिंतामणि के निबंधों का विषय अत्यंत सूक्ष्म एवं गंभीर है। जिसमें मनोवैज्ञानिकता तथा रसानुभूति की प्रधानता है। निबंधों का प्रतिपादन प्रौढतम शैली में हुआ है। जिसमें चिंतन की मौलिकता विवेचन की गंभीरताविश्लेषण की सूक्ष्मता तथा शैली की परिपक्वता दिखलाई पड़ती है। 
  • शुक्ल की लेखन कला में वैयक्तिकताभावात्मकता एवं व्यंग्यात्मकता यथा स्थान दष्टिगोचर होती है। उनके निबंधों में व्यक्ति एवं विषय का ऐसा अदभुत समन्वय हुआ है कि यह निर्णय करना कठिन हो जाता है कि उनके निबंधों को व्यक्ति प्रधान या विषय प्रधान कहें। 
  • चिंतामणि (प्रथम भाग) के निवेदन में इसका निर्णय करने का भार अपने विज्ञ पाठकों पर छोड़ दिया है। ईर्ष्या श्रद्धा-भक्तिलज्जाक्रोधलोभमोहलोभ-प्रीति आदि मनोवत्तियों का विश्लेषण उन्होंने अति प्रखर दष्टि से किया है। समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण भी स्पष्ट दष्टिगोचर होता है। शुक्ल ने अपने निबंधों में मनोवैज्ञानिकसमाजशास्त्री एवं साहित्यकार तीनों के कार्यभार का निर्वाह अति सफलतापूर्वक किया है। 
  • उनके साहित्यिक एवं आलोचनात्मक निबंधों में कविता क्या हैसाधारणीकरण एवं व्यक्ति वैचित्र्यवादकाव्य में लोकमंगल की साधनाव आदि प्रमुख हैं जो प्रतिभास्वतन्त्र चिंतन एवं मौलिक विचारों की अमिट छाप पाठकों पर छोड़ते हैं। उनके विचारों एवं निष्कर्षो से असहमत रहते हुए भी उनकी मौलिकता अनिवार्यरूप से सबने स्वीकारी है। साधारणीकरण की जटिल समस्या को शताब्दियों पूर्व संस्कृत के आचार्यों ने सुलझाने का प्रयत्न किया किंतु उन्हें पूर्ण सफलता नहीं मिली। उसे आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने नये ढंग से सुलझाने में पर्याप्त सफलता प्राप्त की है। वे सर्वतोन्मुखी प्रतिभा के धनी ही नहीं अपितु नवनवोन्मेषशालिनी प्रतिभा के महान व्यक्तित्व थे।

 

निबंध में उनकी वैयक्तिकता प्रमुख विशेषता है। लज्जा और ग्लानि पर विचार व्यक्त करते हुए उन्होंने लिखा है-

 

  • "लक्ष्मी की मूर्ति धातुमयी हो गईउपासक सब पत्थर के हो गए आजकल बहुत सी बातें धातु के ठीकरों पर ठहरा दी गई हैं।. राजधर्मआचार्य धर्मवीर धर्म सब पर सोने का पानी फिर गया हैसब टका-धर्म हो गए। सबकी टकटकी टके की ओर लगी हुई है।" ऐसे में चाटुकारों की खबर लेते हुए उन्होंने लिखा है "इसी बात का विचार करके सलाम-साधक लोग हाकिमों से मुलाकात करने के पहले अर्दलियों से उनका मिजाज पूछ लिया करते हैं।"

 

  • वास्तव में शुक्ल के निबंधों में वे सभी गुण विद्यमान हैं जो गंभीर विषयों के निबंधों के लिए अपेक्षित हैं। उनके कुछ निबंधों में जटिलतादुरूहताशुष्कता आदि आ गई है जिसका प्रमुख कारण निबंध-विषय की गंभीरताअति प्रौढ़ता एवं अति सूक्ष्मता है। अति सर्वत्र वर्जयेत्र का पालन न करने से उनके कुछ निबंधों में दुर्बोधता आई है।

 

गुलाब राय के निबंध और रचनाएँ 

 

  • गुलाब राय के अनेक निबंध संग्रह प्रकाशित हुए हैं जिनमें फिर निराशा क्योंमेरी असफलताएं तथा मेरे निबंध आदि विशेष लोकप्रिय संग्रह हैं। गुलाब राय के निबंधों की विशेषताओं में वैयक्तिक सारल्यअनुभूति का समन्वयवैचारिक स्पष्टताएवं शैली की सुबोधगम्यता आदि प्रमुख हैं। मेरी असफलताएं में गुलाब राय ने व्यक्ति परक विषयों को अति मनोहरकारी रूप से उपस्थित किया है। व्यंग्य का यथास्थान प्रयोग किया गया है। व्यंग्य का लक्ष्य किसी और को न बनाकर अपने को ही बनाया है। मेरी दैनिकी का एक पष्ठ इनका प्रमुख निबंध है उसका कुछ अंश अवलोकनीय है -

 

  • "खैर आज कल उस (भैंस) का दूध कम हो जाने पर भी अपने मित्रों को छाछ भी पिला न सकने की विवशता की झूझल के होते हुए भी उसके लिए भूसा लाना अनिवार्य हो जाता है। कहां साधारणीकरण एवं अभिव्यंजनाकवाद की चर्चा और कहां भूसे का भाव ! भूसा खरीदकर मुझे भी गधे के पीछे ऐसे ही चलना पड़ता हैजैसे बहुत से लोग अकल के पीछे लाठी लेकर चलते हैं..... लेकिन मुझे गधे के पीछे चलने में उतना ही आनंद आता है जितना कि पलायनवादी को जीवन से भागने में।" गुलाबराय ने अपने निबंधों में साहित्य और मनोविज्ञान की समस्याओं का समाधान भी उपस्थित किया है।

 

पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी निबंधकार और उनकी रचनाएँ 

 

  • बख्शी ने अपने निबंधों में मौलिकता का प्रतिपादन करते हुए नवीन शैली का आदर्श प्रस्तुत किया है। उनके निबंधों के विषय अति सरल हैं यथा 'उत्सव', राम लाल पंडितसमाज सेवानाम तथा विज्ञान आदि। उनकी शैली की विशेषता अन्य निबंधकारों में नहीं मिलती है।

 

डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल 

  • वासुदेव शरण अग्रवाल ने सांस्कृतिक विषयों को अपने निबंध का विषय बनाया है।

 

डॉ. रघुवीर सिंह

 

  • रघुवीर सिंह ने इतिहास को अपने निबंधों का विषय बनाते हुए ऐतिहासिक धूमिल तथ्यों की धूल हटाकर उन्हें नवीन रूप प्रदान करने का सफल प्रयास किया है। इनकी निबंधशैली में वैयक्तिकता की प्रधानता है।

 

  • इससे स्पष्ट हो जाता है कि निबंध के विषय क्षेत्र में पर्याप्त गंभीरतानवीनता एवं सूक्ष्मता का आविर्भाव हुआ है। शुक्ल युगीन निबंधों में गंभीर विषयों को लेकर उनकी समस्याओं को नवीन दष्टिकोण से मौलिक विचारों के साथ प्रतिपादित किया गया है। साहित्यइतिहाससंस्कृति तथा मनोविज्ञान इनके निबंधों के विषय रहे हैं। वैयक्तिक अनुभूतियों एवं भावनाओं के प्रकाशन का अनेक निबंधकारों ने लक्ष्य बनाया है। भाषा शैली की दष्टि से यह युग अन्य युगों की अपेक्षा निबंध साहित्य में अत्यधिक विकसितप्रांजल एवं प्रौढ़ दष्टिगोचर होता है। 
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