परिवार को एक समाजीकरण की संस्था के रूप में स्पष्ट कीजिए
परिवार-बालक सम्बन्ध (Family-Child Relationship)
परिवार वालक सम्बन्ध के कुछ प्रमुख निर्धारक निम्नलिखित हैं-
1. भाई-बहनों के सम्बन्ध
- अध्ययनों में देखा गया है कि भाई-बहनों में सर्वाधिक अच्छे सम्बन्ध उस समय होते हैं, जब भाई-बहनों में आयु सम्बन्धी कोई अन्तर नहीं होता है। भाई-बहनों में आयु सम्बन्धी अन्तर जितना अधिक होता है, उनके आपसी सम्बन्धों के खराब होने की सम्भावना उतनी ही अधिक होता है। अध्ययनों में देखा गया है कि दो बहनों में जितनी ईर्ष्या होती है उतनी दो भाइयों में तथा एक भाई-बहन में नहीं होती है। लड़के अपनी बहनों की अपेक्षा अपने भाइयों से अधिक लड़ाई करते हैं। भाई-बहनों में यदि स्नेह है, वह एक-दूसरे के साथ खेलते हैं, वह एक-दूसरे के साथ सहयोग करते हैं और एक-दूसरे की सहायता करते हैं तो इस अवस्था में बच्चे के पारिवारिक सम्बन्ध अच्छे रहते हैं।
2. माता-पित्ता की अभिवृत्तियाँ-
- परिवार एवं वालक के सम्बन्ध बहुत कुछ संरक्षकों की अभिवृत्तियों से प्रभावित तथा निर्धारित होते हैं। कुछ संरक्षकों में उनके बालकों के प्रति अभिवृत्तियों का निर्माण उनके जन्म लेने से पहले ही हो जाता है। पारिवारिक अभिवृत्तियों का निर्माण भी अधिगम के आधार पर होता है। संरक्षकों का यह अधिगम उनके अनुभवों, परम्पराओं और उनके संरक्षकों के शिक्षण के परिणामस्वरूप होता है। अध्ययनों में यह देखा है कि अधिक आयु वाले संरक्षकों की अपेक्षा कम आयु वाले संरक्षक बालक के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह उचित प्रकार से नहीं करते हैं। इसका मुख्य कारण अपने नवीन दायित्वों के साथ समायोजन न कर पाना है।
- कुछ परिवार एवं संरक्षक अपने बच्चों के साथ अधिक प्रभुत्वशाली अभिवृत्ति अपनाते हैं अथवा अपने बच्चों को बहुत कठोर नियन्त्रण में रखते हैं। इस प्रकार के वातावरण में बच्चे बहुत संवेदनशील हो जाते हैं। वे हीन भावनायुक्त, शर्मीले, शीघ्र भ्रमित होने वाले हो जाते हैं। ये लक्षण भी बालक के पारिवारिक सम्बन्धों को बिगाड़नें अपना योगदान देते हैं।
- कुछ संरक्षकों के द्वारा अपने बच्चों के साथ समानता आधारित व्यवहार नहीं किया जाता है, बल्कि पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया जाता है। एक अध्ययन में यह देखा गया है कि माँ अपने बेटे का अपनी बेटियों की अपेक्षा अधिक पक्ष लेती हैं। पारिवारिक सदस्य सामान्य तौर पर उस बच्चे का अधिक पक्ष लेते हैं, जो नियमित रूप से विद्यालय जाता है तथा अच्छी आदतों वाला होता है, दूसरों के साथ कम झगड़ता है और अपने बड़ों का कहना मानता है। अध्ययन में यह भी देखा गया है कि पिता अपने बेटे की अपेक्षा बेटी का अधिक पक्ष लेता है। माता-पिता उस बच्चे का भी अधिक पक्ष लेते हैं, जो शारीरिक अथवा मानसिक रूप से दोषयुक्त या दुर्बल होता है। माता-पिता जब अपने अन्य बच्चों की अपेक्षा किसी एक का पक्ष लेते हैं तो अन्य बच्चों के साथ उनके पारिवारिक सम्बन्ध बिगड़ने लगते हैं।
3. परिवार की व्यवस्था पारिवारिक सम्बन्ध परिवार की व्यवस्था से भी प्रभावित होते हैं। परिवार की व्यवस्था सम्बन्धी प्रमुख कारक इस प्रकार हैं-
(i) टूटे परिवार-
- परिवार का ढाँचा पति एवं पत्नी दोनों से मिलकर बनता है, परन्तु यदि इनमें से किसी एक की मृत्यु हो जाए अथवा तलाक हो जाए तो पारिवारिक ढाँचा बदल जाता है। उस स्थिति में वह परिवार टूटा परिवार कहलाता है। टूटा परिवार उस परिवार को भी कह सकते हैं जब पिता अधिक दिनों तक परिवार के बाहर रहते हैं और बच्चे नाना या बाबा के साथ अथवा किसी अन्य रिश्तेदार के साथ रहते हैं। ऐसे परिवारों में अधिकतर आर्थिक समस्याएँ अधिक होती हैं। टूटा परिवार वह भी हो सकता है जब माँ न हो और पिता को ही बच्चे का पालन-पोषण करना पड़े अथवा जब पिता न हो और माता को ही घर तथा बाहर दोनों ही जिम्मेदारियाँ उठानी पड़े। इस प्रकार टूटे परिवार की समस्याएँ भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करती हैं।
(ii) माता-पिता का व्यवसाय-
- पारिवारिक सम्बन्धों पर प्रभाव डालने वाला यह एक महत्वपूर्ण कारक है। पिता के व्यवसाय का बच्चों से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। बच्चों की सामाजिक प्रतिष्ठा अधिकतर पिता के व्यवसाय से जुड़ी होती है। कुछ अध्ययनों में देखा गया है कि कुछ बच्चे अपने पिता के व्यवसाय को बताने में शर्म महसूस करते हैं। उनकी अपने परिवार, पिता तथा स्वयं के प्रति विपरीत अभिवृत्तियाँ बनी होत हैं, जिससे पारिवारिक सम्बन्धों के खराब होने की सम्भावना अधिक होती है।
(iii) दोषयुक्त बच्चे-
- परिवार में जब कोई बच्चा कुसमायोजित होता है अथवा किसी शारीरिक या मानसिक विकृति से युक्त होता है तो इस प्रकार के बच्चों की देखभाल करने में माता को अधिक समय व्यतीत करना पड़ता है तथा उस बच्चे पर अधिक धन भी खर्च करना पड़ता है। कुछ असमायोजित बच्चे अन्र्त्तमुखी व्यक्तित्व के होते हैं। कुसमायोजित बालक भी पारिवारिक सम्बन्धों को दोषपूर्ण बना देते हैं।
(iv) परिवार का सामाजिक स्तर-
- परिवार का सामाजिक स्तर भी पारिवारिक सम्बन्धों को प्रभावित करता है। मध्यवर्गीय परिवारों में बालकों से बहुत अधिक आशाएँ बाँध ली जाती हैं तथा परिवार के बच्चों पर सामाजिक अनुरूपता स्थापित करने पर जोर दिया जाता है। बालकों पर इस बात का भी दबाव रखा जाता है कि वे कोई ऐसा कार्य न करें, जिससे परिवार की बदनामी हो। बच्चों पर संरक्षकों द्वारा परिवार का सामाजिक स्तर बनाए रखने के लिए जो दबाव पड़ता है, उसके कारण पारिवारिक सम्बन्धों में मनमुटाव आ जाता है।
(v) रिश्तेदार-
- पारिवारिक सम्बन्धों को रिश्तेदार भी प्रभावित करते हैं। रिश्तेदारों के किसी परिवार में आने पर परिवार की स्त्री पर कार्य का बोझ बढ़ जाता है। रिश्तेदारों की देखभाल करना माता का कार्य होता है। बच्चों को भी यह सिखाया जाता है कि रिश्तेदारों का सम्मान करो। रिश्तेदारों के कारण परिवार एवं बच्चों के सम्बन्ध में मनमुटाव तब उत्पन्न हो जाता है, जब वे बच्चों पर अपना प्रभुत्व जमाना चाहते हैं अथवा बालक की आलोचना करते हैं।
4. परिवार का आकार, बनावट एवं अन्तः क्रियाएँ-
- संरक्षकों की अभिवृत्तियों के अतिरिक्त परिवार का आकार और बनवाट तथा भाई-बहनों के परस्पर सम्बन्ध भी परिवार एवं बच्चे के सम्वन्धों को प्रभावित करते हैं। अध्ययनों में यह भी देखा गया है कि बड़े परिवारों की अपेक्षा छोटे परिवारों में पारिवारिक सम्बन्ध अधिक अच्छे होते हैं। छोटे परिवारों में अधिकतर माता-पिता तथा भाई-बहन होते हैं। इसलिए पारिवारिक अन्तः क्रियाएँ भी कम होती हैं।
5. एक संरक्षक के लिए वरीयता-
- बालकों में प्रायः देखा गया है कि कभी उनके लिए उनकी माँ अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है तो कभी पिता। यदि बालक अपनी माँ को अधिक वरीयता देता है तो निश्चय ही वह अपने पिता को कम पसन्द करेगा। इस प्रकार यदि वह अपने पिता को अधिक वरीयता देता है तो वह अपनी माँ को कम पसन्द करेगा। दोनों ही स्थितियों में बालक के पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की सम्भावना रहती है।
6. पारिवारिक कार्य के प्रत्यय (Concept of Family Roles) - पारिवारिक कार्यों के कुछ प्रमुख प्रत्यय निम्न प्रकार हैं-
(i) माता-पिता का प्रत्यय-
एक मध्यवर्गीय परिवार में माता वह स्त्री होती है, जिसका विकासात्मक कार्य होता है। वह अपने पति की मदद से बच्चों का पालन-पोषण करती है तथा संकट के समय उनकी सहायता करती है। पारिवारिक सम्बन्धों में मनमुटाव तब उत्पन्न होता है, जब माता-पिता अपने प्रत्ययों के अनुसार कार्य नहीं करते हैं। एक मध्यवर्गीय बालक को लिए पिता वह व्यक्ति है, जो बच्चों की शीघ्र समझ लेता है, बच्चों का साथी होता है, बच्चों को शिक्षा देता है, उनके विकास के लिए समय-समय पर निर्देश देता है।
(ii) रिश्तेदारों का प्रत्यय-
यद्यपि बच्चों के जीवन पर रिश्तेदारों का बहुत कम प्रभाव पड़ता है। अतः रिश्तेदारों के सम्बन्ध में बच्चों में प्रत्यय अनुभवों के आधार पर बनते हैं। बच्चे अपने दादा, दादी, नाना, नानी आदि जिसके भी सम्पर्क में जितना अधिक आते हैं, उनके सम्बन्ध में प्रत्यय भी उतनी ही शीघ्र बनते हैं।
(iii) अभिभावक संप्रत्यय-
अभिभावक वह व्यक्ति होता है, जो बच्चों को जन्म देता है या उनकी देखभाल करता है। इस देखभाल की आवश्यकता उस समय अधिक होती हैं, जब बच्चे छोटे होते हैं। वे अभिभावक अच्छे कहलाते हैं, जो अपने बच्चों को अधिक से अधिक सुविधाएँ प्रदान करते हैं। कार्य की दृष्टि से देखा जाये तो संरक्षकों के दो प्रकार के प्रत्यय होते हैं।
(अ) परम्परागत प्रत्यय-
इस तरह के प्रत्यय युक्त अभिभावक प्रभुत्वशाली भूमिका का निर्वाह करते हैं। अपनी प्रभुत्वशाली भूमिका के आधार पर वह बालकों को धार्मिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों को सीखने के लिए बाध्य करते हैं।
(ब) विकासात्मक प्रत्यय-
इस प्रकार के प्रत्यय वाले अभिभावक अनुमति युक्त भूमिका का निर्वाह करते हैं। बच्चे उन अभिभावकों को अधिक अच्छा मानते हैं, जो उनकी सहायता करते हैं तथा उन्हें सुविधाएँ प्रदान करते हैं तथा उन अभिभावकों को बुरा समझते हैं, जो उनकी सहायता नहीं करते हैं और उन्हें निराश करते हैं। सहायक, अनुभूतियुक्त, अच्छा अनुशासन, प्यार करने वाले, आदर्श, उत्तम प्रकृति युक्त, स्नेहपूर्ण बातचीत करने वाले, सहानुभूतिपूर्ण और घर को खुशहाल रखने वाले अभिभावको को बच्चे अच्छा अभिभावक मानते हैं। इसके विपरीत, दण्ड देने वाले, तनाव और अशान्ति उत्पन्न करने वाले, दोषारोपण करने वाले, आलोचना करने वाले, दोस्तों के साथ खेलने से मना करने वाले, खेलों में कम रुचि लेने वाले, दुर्घटना होने पर बच्चे को डाँटने वाले, कम स्नेह करने वाले, बालकों पर दबाव रखने वाले अभिभावकों को बच्चे बुरा अभिभावक समझते हैं।
(iv) बालक प्रत्यय-
एक अच्छा बालक वह माना जाता है, जो अपने माता-पिता अथवा संरक्षक की आज्ञा का पालन करता है, उनका सहयोग करता है, उन्हें खुश रखता है और सीखने के लिए तत्पर रहता है। बच्चे अपनी भूमिका के सम्बन्ध में क्या प्रत्यय बनायेंगे, यह इस बात पर निर्भर करता है कि बालक के प्रति संरक्षकों के क्या प्रत्यय हैं। यदि संरक्षक बालक को आश्रित समझते हैं तो बालक भी यह भूमिका सीख सकता है।