पैतृकात्मकता (Parenting)
बाल पोषण अभ्यास (Child Rearing Practices)
पैतृकात्मकता (Parenting)
- अभिभावक तथा बालक का सम्बन्ध बहुत निकट का होता है। परिवार में विभिन्न प्रकार के सम्बन्ध होते हैं, इन्हें पारिवारिक सम्बन्ध कहा जाता है। परिवार में बच्चों के माता-पिता, भाई-बहनों के साथ सम्बन्ध भी आते हैं। माता-पिता अपने नवजात शिशु की परवरिश करते हैं, इससे ही सम्बन्धों का विकास होता है। नवजात शिशु अपने अभिभावकों पर पूर्णतः आश्रित होता है, परन्तु आयु बढ़ने के साथ-साथ उसकी आश्रितता कम होती जाती है और प्रौढ़ावस्था तक यह आश्रितता पूर्णतया समाप्त हो जाती है। बच्चे के व्यक्तित्व का निर्माण माता-पिता की परवरिश पर निर्भर करता है। बालक को शैशवकाल से ही अच्छाइयों की ओर प्रवृत्त करना अधिक आसान होता है। प्रारम्भ में ही स्नेहपूर्ण वातावरण में परवरिश करने पर तथा मनमुटाव एवं कलह तथा संघर्ष की स्थिति उत्पन्न न होने देने पर पारिवारिक सम्बन्ध अच्छे बने रहते हैं। माता-पिता में यदि अधिक मात्रा में लड़ाई-झगड़ा होता है तो वे कितना भी प्रयास क्यों न करें, उनके पुत्र एवं पुत्रियों में मधुर सम्बन्धों का निर्माण कभी नहीं हो सकता है।
- बच्चे की परवरिश किस वातावरण में की जा रही है इसका बालक के व्यक्तित्व पर बहुत प्रभाव पड़ता है। बालकों को अतिसंरक्षित वातावरण प्रदान करने पर बालकों में उतावलापन, आश्रितता तथा एकाग्रता की कमी जैसी कमजोरियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। उसी प्रकार अधिक छूट देने पर बच्चे नियन्त्रण से बाहर चले जाते हैं। प्रभुत्वशाली माता-पिता कठोर अनुशासन अपनाते हैं। इस वातावरण में बालक की परवरिश करने पर बच्चों में अति संवेदनशीलता, अधिक शर्मीलापन, हीनता की भावना उत्पन्न हो जाती है। छोटे परिवारों में बच्चों की परवरिश अच्छी प्रकार से हो जाती है। ऐसे परिवार अपने बच्चों की शिक्षा पर भी विशेष ध्यान देते हैं, जबकि संयुक्त परिवारों में जिन बच्चों की परवरिश होती है, उन बच्चों को कर्ता की मनमानियों का सामना करना पड़ता है। जिन बच्चों की परवरिश अनुकूल वातावरण में होती है उनमें आत्मविश्वास तथा आत्मसम्मान की भावना तीव्र होती है। भिन्न-भिन्न आकार के परिवारों में बच्चों की परवरिश भी भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। समाजशास्त्रियों के अनुसार मध्यम आकार का परिवार सर्वश्रेष्ठ होता है। ऐसे परिवार में बच्चे सीमित होते हैं। जिन परिवारों का सामाजिक, आर्थिक स्तर अच्छा होता है उन परिवारों के बच्चों को सभी आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। ऐसे बच्चों की परवरिश अच्छे माहौल में होने के कारण उनके माता-पिता के साथ अच्छे सम्बन्ध बनते हैं।
- ऐसे किशोर जिन्हें अपने माता-पिता का कम स्नेह प्राप्त होता है, वे अपने माता-पिता से तिरस्कृत या अस्वीकृत प्रकार के होते हैं या वे स्वयं अपने माता-पिता से दूरी बनाए रखते हैं, दोहरे व्यक्तित्त्व वाले होते हैं। ऐसे किशोरों को अपनी पहचान स्थापित करने में बहुत अधिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
(ब) बाल पोषण अभ्यास (Child Rearing Practices)
बालक के पारिवारिक सम्बन्ध इस बात पर निर्भर करते हैं कि बालक का पालन-पोषण किस विधि से किया जा रहा है तथा बालक अपने पालन-पोषण को किस रूप में देखता है। बाल पोषण अभ्यास की प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं-
1. अनुमतिपूर्ण विधि-
इस विधि में अभिभावक वालक को उतनी ही छूट देते हैं जितना बालक चाहता है या जितनी छूट से बालक खुश हो जाता है। इस विधि के अनुयायी अभिभावक यह समझते हैं कि बालक जब अपने किए गए बुरे कार्यों का परिणाम भोगेगा तो स्वयं ही सुधर जाएगा। एक अध्ययन में यह देखा गया है कि केवल अत्यधिक शिक्षित माता-पिता ही अनुमतिपूर्ण विधि को अधिक अपनाते हैं।
2. प्रजातान्त्रिक विधि-
इस विधि में अभिभावक बालक को विभिन्न आदतें सिखाने में अधिक अनुमति देने वाले या छूट देने वाले होते हैं। अभिभावक उदारता का प्रदर्शन करते हैं तथा कम दण्ड देते हैं। वे बालक की योग्यताओं और क्षमताओं के अनुसार उसे प्रशिक्षण देते हैं। यदि बाल-पोषण विधि प्रजातान्त्रिक वातावरण से सम्बन्धित है तो बालक में स्वतन्त्र चिन्तन, अधिक सृजनात्मकता, अधिक सहयोग जैसे लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं। इन लक्षणों की उपस्थिति से बालक के पारिवारिक सम्बन्ध अच्छे हो सकते हैं। इस विधि से बच्चों में अनुशासनप्रियता विकसित नहीं होती है।
3. प्रभुत्वपूर्ण विधि-
इस विधि में अभिभावक बालक के साथ बहुत सख्तीपूर्ण व्यवहार करते हैं और बालक को समय-समय पर शारीरिक दण्ड भी देते हैं। इस प्रकार के वातावरण में पोषित बच्चों में बात न मानने की प्रवृत्ति विकसित हो सकती है, जिसके कारण पारिवारिक सम्बन्धों के बिगड़ने की अधिक सम्भावना होती है।