शैक्षिक वातावरण का निर्माण | Educational Environment

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शैक्षिक वातावरण का निर्माण

शैक्षिक वातावरण का निर्माण | Educational Environment


 

शैक्षिक वातावरण का निर्माण

  • 'शैक्षिक वातावरण का निर्माणकरने से आशय बालक के लिये एक ऐसा माहौल तैयार करने से है जिसमें बालक में अध्ययन के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न हो तथा बालक शिक्षा को भार नहीं समझे अर्थात् खेल ही खेल में शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये शैक्षिक वातावरण को जन्म देना या तैयार करना ही शैक्षिक वातावरण का निर्माण करना है। शैक्षिक वातावरण के निर्माण में पारिवारिक स्तर पर घर-परिवार एवं समाज की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। वालक ने जिस घर में जन्म लिया है और उसके माता-पिता जैसे परिवार व समाज में रहते हैं उसी के आधार पर सर्वप्रथम वालक की शिक्षा के सम्बन्ध में यह तय करना होता है अथवा निर्णय लेना होता है कि उस घर-परिवार या समाज में नये प्राणी अथवा उस व्यक्ति के लिये जो अभी आया हैजिसने जन्म लिया हैउसे भविष्य में किस स्वरूप में देखा जाना है। इसी तरह समाज की ओवश्यकता पर भी बालक की शिक्षा के सम्बन्ध में वातावरण के निर्माण हेतु विचार करना। आवश्यक होता है। जिस समाज में पुरुषों का अभाव हो वहाँ नये बालक को विदेशी शिक्षा के लिये विदेशों में नहीं भेजा जाता है और इसी प्रकार जिस समाज में जनसंख्या बढ़ रही हो तथा एक ही पेशे/धन्धे से सभी जीवनयापन करने में लगे होंवहाँ पर नये बालक के लिये परम्परागत कार्य से भिन्न कार्य करने के लिये सोचना पड़ता है। इस प्रकार विभिन्न स्थितियों व प्रक्रियाओं में होकर गुजरने के बाद ही एक शैक्षिक वातावरण का निर्माण हो पाता है।


 इसके लिये अग्रलिखित बातें महत्वपूर्ण हैं- 

1. माता-पिता का शिक्षित होना- 

  • शैक्षिक वातावरण के लिये माता-पिता का शिक्षित होना आवश्यक है। शिक्षित होने का तात्पर्य पढ़े-लिखे होने से ही नहीं है बल्कि बालक को जिस प्रकार के विद्यालय में दाखिला दिलाया गया है उस प्रकार की शिक्षा का वातावरण माता-पिता को अपने घर में रखना आवश्यक होता है। इसमें माध्यम महत्वपूर्ण होता है अर्थात् यदि आप इतने शिक्षित (Educated) नहीं है कि अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय की सामान्य वार्तालाप और सामान्य व्यवहार की बातों से भी अनभिज्ञ हैं तो ऐसी स्थिति में बालक का ऐसे विद्यालय में सफल होना बड़ा कठिन होता है। इसलिए आजकल अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में बालक के साथ-साथ बालक के माता-पिता का भी साक्षात्कार लिया जाता है।

 

2. सामाजिक स्तर-

  • शैक्षिक वातावरण के निर्माण में सामाजिक स्तर का भी बहुत कुछ प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी बच्चे के माता-पिता शैक्षिक वातावरण की दृष्टि से परिपूर्ण होते होते हैं परन्तु जिस समाज में उन्होंने जन्म लिया हैवह पिछड़ा हुआ समाज होता हैउस समाज में अन्धविश्वासों का बोलबाला होता हैआडम्बर व अनावश्यक रीति-रिवाजों का सर्वाधिक प्रचलन होता है और वह समाज संकीर्णताओं का दास होता है तो ऐसी स्थिति में बालक को शिक्षा और समाज में विरोध नहीं कर सकता है। बालक को ऐसी स्थिति में शिक्षा सत्र के मध्य में या शिक्षा के एक स्तर से पूर्व ही अपना शिक्षा का माध्यमशिक्षा का स्कूल और शिक्षा के समस्त क्रियाकलाप बदलने पड़ते हैं। अतः सामाजिक स्तर की भी शैक्षिक वातवरण के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

 

3. पड़ोस-

  • मनुष्य जहाँ रहता है उसके आस-पास के घर-परिवार व समाज उसका पड़ोस होता है। हम चाहे अपने आप में सभी दृष्टि से परिपूर्ण हों परन्तु हमारा आस-पड़ोस हमारे अनुकूल नहीं है तो भी हम अपने बच्चों के लिये अपने मुताबिक वातावरण का निर्माण नहीं कर सकते हैंक्योंकि बच्चा खेलता भी हैबोलता भी है और अपने समकक्ष उम्र के बालकों के साथ घूमने-फिरने की भी इच्छा रखता है। इसी प्रकार हम अपने घर में तो नियन्त्रण रख सकते हैं परन्तु पास-पड़ोस से आने वाली आवाज और भाषा व शब्दावाली पर तो नियन्त्रण नहीं रख सकते हैं। ऐसी स्थिति में हमारे बालक भी उसी भाषा और शब्दावली के शिकार हो जाते हैं। चूंकि मनुष्य की यह प्रकृति है कि वह बुरी चीज को अथवा अपने से घटिया वस्तु को शीघ्रता से ग्रहण करता है। अतः हमारे पास-पड़ोस का भी शैक्षिक वातावरण के निर्माण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए आजकल हम नया मकान बनाने से पूर्व उस क्षेत्र व पास-पड़ोस को भी प्राथमिकता देते हैं।

 

4. यातायात व संदेशवाहन के संसाधन-

  • शैक्षिक वातावरण के निर्माण में आवागमन व संप्रेषण के साधन भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। आप सभी दृष्टि से परिपूर्ण हो सकते हैं परन्तु जहाँ आप रहते हैं वहाँ से उस स्कूल तक कोई यातायात के साधन आसानी से उलब्ध नहीं हैं और संदेशवाहन के साधनों में डाकघर व दूरभाष केन्द्र भी बहुत दूर है तो ऐसी स्थिति में भी हम एक अच्छा शैक्षिक माहौल तैयार नहीं कर सकते हैं। चूंकि इनके अभाव में समय के अनावश्यक खर्च के साथ-साथ मानसिक एवं शारीरिक खर्च भी बढ़ाता है अतः इनका होना भी अनिवार्य है।

 

5. मित्र-मण्डली-

  • एक अच्छे शैक्षिक वातावरण के निर्माण में हमारी मित्र-मण्डली का भी महत्वपूर्ण योगदान होता है। कहते हैं 'जैसा अन्न वैसा मनऔर जैसी संगत वैसा असर। अतः जैसा हम सम्पर्क रखेंगेजैसे लोगों के साथ हम मित्रता रखेंगे वे सभी ही तो हमारे यहाँ आते हैं तथा जाते हैं और हम भी उनके यहाँ आते-जाते हैं। ऐसी स्थिति में बालक हमारे मित्र अर्थात् बालक के अंकल के यहाँ जैसा देखते हैं और जैसा सुनते हैं वैसा ही अपने से व्यवहार और प्रश्न करते हैं। इसीलिए कभी-कभार आपने किसी बालक को यह कहते तो सुना ही होगा कि "पापा! अंकल जैसा कम्प्यूटर अपने भी ले आओ।" या पापा! अंकल तो तम्बाकू या पान चबाते रहते हैं।" आदि-आदि

 

6. अखबार व पत्र-पत्रिकाएँ-

  • बच्चे के शैक्षिक वातावरण का एक मुख्य अंग हमारे समाज मेंपरिवार में तथा घर में पढ़े जाने वाले अखवार और पत्र-पत्रिकाएँ भी होती है। अंग्रेजी माध्यम के घर-परिवार व समाज में हिन्दी माध्यम के अखबारों व पत्र-पत्रिकाओं का कोई महत्व नहीं होता है। परन्तु निरन्तर ये ही आते रहें तो बालक उसी के अनुरुप पढ़ना सीख लेता है। इसी प्रकार इन पत्र-पत्रिकाओं में अनेक शैक्षिक लघु कहानियाँ भी प्रकाशित होती रहती हैंकई संस्थाओं द्वारा विभिन्न पाठ्यक्रमों के सम्बन्ध में आकर्षक विज्ञापन छापे जाते हैं। इन सबसे प्रभावित होकर भी हमारे बालक शिक्षा के प्रति जागरूक बनते हैं। इनमें प्रेरणात्मक लघु कहानियों को पढ़कर भी बालक व माता-पिता शैक्षिक वातावरण के सृजन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है।

 

7. तकनीकी साधन-

  • जिस घर-परिवार व समाज में रेडियोंदूरदर्शन (Television), टेलीप्रिन्टरवर्तमान में कम्प्यूटर जैसे तकनीकी साधनों का विविध प्रकार से उपयोग किया जाता हैऐसे परिवार व समाज में भी एक पृथकशैक्षिक वातावरण जन्मता है। कई सामान्य वस्तुओं व उनके प्रयोग की जानकारी बालकों को दूरदर्शन पर प्रकाशित विज्ञापन मात्र से हो जाती है।

 

8. शिक्षकों की दिक्षा-

  • शैक्षिक वातावरण में शिक्षकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। आदर्श शिक्षक ही आदर्श शिक्षा का पाठ पढ़ा सकते हैं। शिक्षक जिस प्रकार के शिक्षण कार्य में निपुण/दक्ष अथवा कुशल होता हैउसी कुशलता के आधार पर शिक्षा प्रदान करने में उसकी महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। इसीलिए प्रशिक्षित अध्यापकों को ही प्राथमिकता दी जाती है।

 

9. राजकीय नीतियाँ-

  • शैक्षिक दृष्टि से किसी राष्ट्र का विकसित होना उस राष्ट्र की शैक्षिक नीतियों पर भी निर्भर करता है। भारत में 1986 की नई शिक्षा नीति का होनाप्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम चलनाशिक्षाकर्मी योजना का चलना और कई अनौपचारिक शिक्षा जैसे अनेक कार्यक्रमों का चलना इस बात का ही परिणाम है कि भारत सरकार व सम्बद्ध राज्य सरकारें राष्ट्र व राज्य के शैक्षिक विकास के लिये चिन्तित और प्रयत्नशील हैं।

 

10. अन्य-

  • शैक्षिक वातवारण के निर्माण के लिये उक्त के अतिरिक्त राष्ट्र का आर्थिक दृष्टि से उत्पन्न होनाराष्ट्र में बैंकबीमागोदामवाणिज्यिक संस्थानों का उदयकृषि क्षेत्र में विकास करना इत्यादि कई अन्य बिन्दु भी महत्पूर्ण हैं।

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