पद्मावत: कथासार सारांश संक्षिप्त कथा वस्तु | पद्मावत की कहानी संक्षिप्त में | Jaysi Padmavat Summary in Hindi

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पद्मावत: कथासार सारांश संक्षिप्त कथा वस्तु , पद्मावत की कहानी संक्षिप्त में

पद्मावत: कथासार सारांश संक्षिप्त कथा वस्तु | पद्मावत की कहानी संक्षिप्त में | Jaysi Padmavat Summary in Hindi



पद्मावत प्रस्तावना (Introduction) 

पद्मावत फारसी में प्रचलित मसनवी शैली के आधार पर लिखा गया महाकाव्य है। अतएव इसकी कथा भारतीय महाकाव्यों की तरह सर्गों में विभाजित न होकर खण्डों में विभाजित है। यहाँ प्रत्येक खण्ड की कथा का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।

 

पद्मावत की संक्षिप्त कथा वस्तु

 

पद्मावत की रचना मसनवी पद्धति में होने के कारण सर्गों के स्थान पर 57 खण्डों में विभक्त हैं। इन खंडों की कथा का सारांश प्रस्तुत किया जा रहा है

 

1. स्तुति खंड - 

प्रथम खंड का आरम्भ जायसी ने सृष्टिकर्ता की स्तुति या स्मरण से किया है। भरतार द्वारा वैविध्यमयी सृष्टि की रचना का वर्णन होने के उपरान्त पैगम्बर मुहम्मद और उनके चार मित्रों (खलीफाओं) का वर्णन किया है। तदुपरान्त उन्होंने तत्कालीन शासक शेरशाह के रूप, गुण और यशादि का वर्णन करते हुए अप गुरु-परम्परा पर प्रकाश डाला है। अंततः कवि ने अपना जीवन-परिचय देते हुए अपने चार मित्रों का उल्लेख किया है और कृति के रचनास्थल और काल के साथ-साथ पद्मावत की कथा का सारांश भी प्रस्तुत किया है।

 

2. सिंहलद्वीप वर्णन खंड 

द्वितीय खंड में सिंहलद्वीप (पद्मावती की जन्मस्थती) को कवि ने सातों द्वीपों में सर्वश्रेष्ठ चित्रित करते हुए वहाँ की नारियाँ पद्मिनी जाति की दिखाई हैं। सिंहलद्वीप का शासक गन्धर्वसेन उल्लिखित किया गया है, जिसका वैभव स्वर्ग-तुल्य है । वहाँ के बागों में आम, कटहल आदि अनेक प्रकार के वृक्ष दिखाए गए हैं।

 

3. जन्म खंड - 

इस खंड की कथा गन्धर्वसेन की रानी चम्पावती के गर्भ से पद्मावती के जन्म लेने से आरम्भ की गई है। इस अत्यधिक सुन्दरी कन्या का नाम कन्या राशि में जन्म लेने के कारण पद्मावती रखा जाता है। बारह वर्षीया पद्मावती को सयानी हुई समझकर गन्धर्वसेन ने सात खंड वाले धवलगृह में रहने का प्रबन्ध कर दिया। पद्मावती के साथ उसकी कुछ सहेलियाँ और एक चतुर तोता भी रहता था, जिसका नाम हीरामन था । वह तोते के साथ धर्म चर्चा किया करती थी। पद्मावती पूर्ण चौवना हो चुकी थी किंतु गंधर्वसेन ने उसका विवाह नहीं किया.

 

क्योंकि वह अपने समकक्ष किसी को मानता ही नहीं था। पद्मावती अपना विवाह न होने की कसक को हीरामन से कह देती थी जिसका राजा को पता चल गया और उसका यह अभिप्राय ग्रहण किया कि हीरामन तोता ही पद्मावती को इस प्रकार की अनुचित बातें सिखाता रहता है। फलतः उसने हीरामन तोते को मारने की आज्ञा दे दी। पद्मावती द्वारा छिपा लेने के कारण हीरामन की प्राण रक्षा तो हो गई किंतु वह अन्यमनस्क होकर वहाँ से चले जाने की इच्छा व्यक्त करने लगा। पद्मावती के आग्रह के कारण वह वहाँ से जा न सका।

 

4. मानसरोदक खंड-

एक बार पूर्णमासी के अवसर पर पद्मावती अपनी समवयस्काओं के साथ मानसरोवर में स्नान करने गई । पद्मावती के अनिंद्य सौन्दर्य को देखकर सरोवर भी मोहित हो गया। पद्मावती को साक्षी बनाकर सखियाँ जल में एक खेल खेलने लगीं जिसकी शर्त यह थी कि जो खेल में हार जाएगी, वह हार देगी। एक सखी उस खेल में निपुण न होने के कारण हार खो बैठी और रोने लगी। सब सखियों ने डुबकियाँ लगा लगाकर उस हार को खोजने का प्रयत्न किया। अंततः पद्मावती के पद स्पर्श को धन्य मानते हुए सरोवर ने स्वयं ही हार ऊपर तैरा दिया जिसे लेकर सभी प्रसन्न हो गई।

 

5. सुआ - खंड - 

पद्मावती अपनी सखियों के साथ उछल कूद में लगी हुई असावधान थी कि मौके का लाभ उठाकर हीरामन तोता उड़ गया। बन के पक्षियों ने हीरामन का स्वागत किया। कुछ दिनों तक तो वह वन पक्षियों के साथ आनन्दपूर्वक रहा, किन्तु अन्त में एक बहेलिए द्वारा पकड़ लिया गया।

 

6. रत्नसेन- जन्म खंड- 

प्रस्तुत खंड में कृति नायक रत्नसेन का चित्तौड़गढ़ के चित्रसेन नामक राजा के यहाँ जन्म लेना चित्रित किया गया है। पंडितों और ज्योतिषियों ने उसके भविष्यफल के विषय में बताया कि यह बड़ा होगा। प्रतापी राजा होगा। उन्होंने यह भी बताया कि रत्नसेन जोगी बनकर सिंहलद्वीप जाएगा और वहाँ से पद्मावती को विवाह करके चित्तौड़ लाएगा। यह ऐश्वर्य में राजा भोज और विक्रमादित्य के तुल्य होगा . 

 

7. बनिजारा खण्ड- 

इस सातवें खण्ड में चित्तौड़गढ़ का एक बनजारा व्यापार के लिए सिंहलद्वीप जाते चित्रित किया गया है। उसके साथ एक गरीब ब्राह्मण भी सिंहलद्वीप गया। वह किसी से थोड़ा-सा कर्ज ले गया था। वह सिंहलद्वीप की हाट में बहुमूल्य वस्तुओं में से कुछ भी नहीं खरीद सका तभी वह बहेलिया हीरामन को लेकर हाट में आया और उस ब्राह्मण ने हीरामन को खरीद लिया। इस समय तक रत्नसेन चित्तौड़ का राजा बन चुका था। जब उसने यह सुना कि सिंहलद्वीप से लौटे व्यापारी बहुमूल्य वस्तुओं के साथ एक उत्तम गुणों से ओत-प्रोत तोता भी लाए हैं, तो उसने तोते को अपने यहाँ मँगवा लिया। हीरामन से परिचय पूछने पर उसने उत्तर दिया कि मैं वेदज्ञ पंडित हूँ और तुम्हें पद्मावती से मिलवा दूंगा यह सुनकर राजा ने हीरामन को एक लाख में खरीद लिया।

 

8. नागमती - सुआ खण्ड- 

हीरामन को राजमहल में रहते हुए कुछ दिन ही व्यतीत हुए थे कि एक दिन राजा शिकार खेलने गया । रत्नसेन की पत्नी नागमती अत्यधिक रूपवती थी। उसने शृंगार किया और अपने सौन्दर्य को दर्पण में देखकर उस पर गर्व करते हुए हीरामन के समीप आकर बोली कि तुमने सिंहलद्वीप आदि स्थानों की स्त्रियाँ देखी हैं। बताओ क्या सिंहलद्वीप में कोई मुझसे भी ज्यादा सुन्दर नारी है? पद्मावती की सुन्दरता को याद करते हुए हीरामन ने सोचा कि जिस सरोवर में हँस नहीं आता वहाँ लोग बगुला को ही हँस समझते है। उसने उत्तर दिया कि वैसे तो उसी स्त्री को सुन्दर समझना चाहिए जिसे उसका प्रियतम प्रेम करता हो, किन्तु जहाँ तक शारीरिक सुन्दरता का प्रश्न है तुम सिंहलद्वीप की नारियों की समता नहीं कर सकतीं। नागमती को आशंका हुई कि कहीं यदि इस तोते है ने ये बातें मेरे पति से कह दीं तो वे मुझे छोड़कर सिंहलद्वीप चले जायेंगे। अतः उसने धाय को उस तोते को मारने का आदेश दे दिया। धाय को राजा का भय था अतः उसने तोते को मारने के स्थान पर छिपा दिया। राजा के आने पर तोते की खोज हुई। नागमती ने तोते को मारने का कारण बताया तो राजा को और अधिक क्षोभ हुआ। उपयुक्त अवसर पाकर धाय ने तोते को लाकर राजा को सौंप दिया।

 

9. राजा - सुआ - संवाद खण्ड 

राजा रत्नसेन के पूछने पर हीरामन ने बता दिया कि में सिंहलद्वीप की पद्मावती का तोता हूँ। सिंहलद्वीप अपने आप में बहुत श्रेष्ठ है और पद्मावती का सौन्दर्य तो अनुपमेय है। यह सुनकर राजा के हृदय में पद्मावती के प्रति प्रेम-भाव जाग्रत हो गया और तोते के मना करने पर भी प्रेम - मार्ग का अनुयायी बन गया ।

 

10. नख - शिख खण्ड- 

इस खंड में कवि ने हीरामन तोते के माध्यम से राजा रत्नसेन के समक्ष पद्मावती के नख - शिख (नाखून से लेकर सिर तक ) शृंगार का वर्णन किया है।

 

11. प्रेम-खण्ड-

पद्मावती के नख-शिख वर्णन को सुनकर रत्नसेन बेहोश हो गया। होश आने पर वह रोने लगा कि मैं तो अमरपुर में पहुँच गया था अब पुनः कहाँ आ गया हूँ? हीरामन तोते ने उसे समझाया कि राज्य के वैभव-सुख को भोगने वाले तुम प्रेम के कठिन मार्ग के पथिक नहीं बन सकते, क्योंकि उसके लिए तो साधना अपेक्षित होती है। राजा के मन में भी यह बात समा गई कि प्रेम मार्ग पर चलने के लिए मुझे राजसी सुखों का परित्याग कर देना चाहिए।

 

12. जोगी खण्ड- 

पद्मावती की अधिप्राप्ति के लिए रत्नसेन ने राज्य छोड़कर योगियों जैसा वेष धारण कर लिया और यात्रा की तैयारी आरम्भ कर दी । ज्योतिषियों ने उसे समझाया भी कि अभी जाने का शुभ मुहूर्त नहीं है, किन्तु रत्नसेन ने यह कहकर उनकी बात नहीं मानी कि प्रेम के मार्ग पर चलने वाला घड़ी मुहूर्त नहीं देखता । रत्नसेन की माता और पत्नी नागमती ने उसे जाने से रोकने की चेष्टा की किन्तु उनका प्रयत्न निष्फल रहा। उसके साथ सोलह सौ अन्य कुंवर भी हो लिए और वे सब ही राजा के साथ सिंहलद्वीप की ओर चल पड़े।

 

13. राजा गणपति संवाद खण्ड- 

एक महीने तक की निरंतर यात्रा के पश्चात् रत्नसेन अपने साथियों के साथ समुद्र-तट पर पहुँच गया। राजा गणपति ने रत्नसेन के आगमन का समाचार सुना तो वह मिलने आया और रत्नसेन का बड़ा आतिथ्य किया । रत्नसेन ने जब गणपति से समुद्र पार करने के लिए नावें माँगी तो उसने रत्नसेन से समुद्र के मार्ग को भयंकर बताते हुए सिंहलद्वीप न जाने का आग्रह किया। रत्नसेन का उत्तर था कि प्रेम-मार्ग पर पथिक इस प्रकार के विघ्नों की चिन्ता नहीं किया करता ।

 

14. बोहित खण्ड-

राजा रत्नसेन को सिंहलद्वीप जाने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ देखकर गणपति ने नावें प्रदान कर दीं और रत्नसेन अपने साथी कुंवरों के साथ रवाना हो गया।

 

15. सात समुद्र खण्ड - 

राजा रत्नसेन सत्य पर स्थिर था जिसके प्रतापस्वरूप वह क्षार-समुद्र, क्षीर समुद्र, उदधि समुद्र, सुरा समुद्र और किलकिला समुद्र को साहसपूर्वक पार करते हुए सातवें समुद्र मानसर में आ पहुँचा। यहां आकर सभी को बड़ा आनन्द अनुभव हुआ।

 

16. सिंहलद्वीप खण्ड - 

सिंहलद्वीप पहुँच जाने पर वहाँ के सुन्दर वातावरण को देखकर राजा ने तोते से पूछा कि हे गुरु सुग्गे ! हम कौन से सुन्दर स्थान पर आ गए हैं? प्रत्युत्तर में हीरामन ने राजा को सिंहलद्वीप के विषय में बताया। उसने राजा को बताया कि माघ मास की पंचमी को पद्मावती शिव मन्दिर में दर्शन करने आएगी, तब तुम उसको देख सकते हो। राजा को शिव मन्दिर के समीप छोड़कर हीरामन पद्मावती के महल में चला गया।

 

17. मंडप गमन खण्ड- 

राजा के हृदय में पद्मावती विषयक विरह भाव उद्दीप्त हो उठा। वह बीस सहस्र शिष्यों के साथ शिव मंडप में पहुँचकर स्तुति करने लगा। तब मन्दिर से एक अस्फुट स्वर सुनाई दिया कि मनुष्य प्रेम द्वारा ही बैकुंठ को प्राप्त कर सकता है। तदन्तर रत्नसेन बाघम्बर पर बैठकर पद्मावती के नाम का बार-बार जाप करने लगा।


18. पद्मावती वियोग खण्ड - 

रत्नसेन के प्रेम के प्रभावस्वरूप पद्मावती का हृदय विचलित होने लगा उसको अज्ञात भाव से ही विरह की अनुभूति होने लगी । यौवन के आगमन पर प्रियतम की अप्राप्ति से खिन्न पद्मावती ने अपने हृदय की खिन्नता अपनी धाय की बतलाई। धाय ने उसे धैर्य रखने का परामर्श दिया और कहा कि यह विरह तभी तक है जब तक तुझको प्रिय की प्राप्ति नहीं होती।

 

19. पद्मावती- सुआ भेंट खण्ड- 

पद्मावती की विरहानुभूति की दशा में ही हीरामन तोता उससे जाकर मिला। जिससे पद्मावती को पर्याप्त समाश्वासन मिला। कुशल-क्षेम और हाल चाल पूछने पर हीरामन ने उसको अपना अब तक का पूरा वृत्तान्त सुनाया। यह सुनकर पद्मावती को पहले तो गर्व हुआ कि योगी उसके योग्य नहीं है किन्तु हीरामन के मुख से प्रशंसा सुनकर उसका हृदय द्रवित हो उठा, उसने हीरामन को आश्वासन दिया कि मैं बसन्त-पूजा के बहाने रत्नसेन से मिलूँगी। हीरामन ने यह समाचार रत्नसेन को पहुँचा दिया।

 

20. वसंत खण्ड - 

वसन्त पंचमी का पर्व आने पर पद्मावती अपनी सखियों के साथ देव-पूजन के लिए आई और देवता से अपने वर के लिए मनौती करने लगी। उससे सखियों ने कहा कि इधर योगियों का एक समूह ठहरा हुआ है। उनका गुरु बत्तीस लक्षणों से ओत-प्रोत कोई राजकुमार प्रतीत होता है। पद्मावती उधर गई तो उसके अनिंद्य सौन्दर्य की आभा से रत्नसेन बेहोश हो गया। पद्मावती ने उसके मस्तक पर चंदन लगाया और फिर उसके हृदय पर चंदन से यह लिखकर लौट गई कि योगी! तुम भिक्षा लेना नहीं जानते। अब तुम्हें सातवें आकाश पर (सत खंडे महल पर) आना पड़ेगा। रात को पद्मावती ने स्वप्न देखा कि सूर्य और चन्द्रमा का मिलन हुआ है, जिसे उसकी सखियों ने एक शुभ स्वप्न बतलाया।

 

21. राजा रत्नसेन - सती खण्ड-

होश में आने पर पद्मावती को न देखकर रत्नसेन को बड़ा दुःख हुआ। और वह स्वयं को धिक्कारने लगा। अतः उसने चिता में जलकर मरने का संकल्प किया क्योंकि उसने जिस पद्मावती की प्राप्ति के लिए योग धारण किया था वह उसे उपलब्ध नहीं हुई थी। हनुमान ने शिव को बताया कि आपके मंडप में जाकर राजा जलकर मर रहा है।

 

22. पार्वती - महेश खण्ड-

मंडप में योगी नरेश के जलने की बात सुनकर शिव पार्वती सहित उपस्थित हुए और उससे जलने का कारण पूछा। कारण ज्ञात होने पर पार्वती ने उसकी परीक्षा ली जिसमें रत्नसेन खरा उतरा। शिव ने राजा को आश्वासन देते हुए बताया कि सिंहलगढ़ उसी प्रकार टेढ़ा है जैसे तुम्हारा शरीर । यदि तुम साहसपूर्वक दुर्ग पर चढ़ने का प्रयास करोगे, तो पद्मावती के समीप पहुँचकर कृतकृत्य हो सकते हो। यह तभी संभव है जब तुम प्राणों का मोह त्यागकर इस दिशा में प्रयत्नशील हो ।

 

23. राजा गढ़-का खण्ड-

रत्नसेन को शिवजी ने एक सिद्धि-गुटका भी प्रदान किया। रत्नसेन ने गणेश का स्मरण करके अपने चेलों के साथ गढ़ को घेर लिया। इससे मचे कोलाहल की सूचना सिंहलगढ़-नरेश तक पहुँचाई गई। राजा ने दूत भेजकर योगियों के इस आचरण का कारण पूछा और कहलाया कि योगी यहाँ से लौट जाएँ। रत्नसेन ने उत्तर दिया कि मैं पद्मावती रूपी भिक्षा प्राप्त करने आया हूँ। यह सुनकर राजा क्रुद्ध तो बहुत हुआ किन्तु उसने योगियों को इसलिए नहीं मरवाया कि उसके मंत्रियों ने इसके विरुद्ध परामर्श दिया था। रत्नसेन ने अपनी वियोग-व्यथा से ओत-प्रोत एक चिट्ठी हीरामन के माध्यम से पद्मावती को भेजी। विरह-विदग्धा पद्मावती ने भी एक पत्र रत्नसेन को भेजा और सूचना दी कि अब तो तुम मुझे जीवन की बाजी लगाकर ही प्राप्त कर सकते हो। पद्मावती का यह संदेश पाकर रत्नसेन को मानो पुनर्जीवन की प्राप्ति हुई है वह गढ़ के द्वार खोलकर ऊपर चढ़ गया। चारों ओर शोर मच गया कि गढ़ में चोर घुस आए हैं।

 

24. गन्धर्वसेन-मंत्री खण्ड -

 सिंहलगढ़-नरेश गंधर्वसेन ने अपने मंत्रियों से इस विषय में परामर्श किया कि इन योगियों को कैसे दण्ड दिया जाना चाहिए। निश्चय यह हुआ कि योगियों को चोरों की भाँति सूली का दण्ड दिया जाना चाहिए । योगियों के विरुद्ध एक बड़ी सेना भेजकर उन्हें पकड़ लिया गया। प्रेम-पंथ के पथिक योगियों ने अपनी गिरफ्तारी का विरोध नहीं किया। पद्मावती तो पहले ही रत्नसेन के वियोग में दुःखी थी। जब उसे रत्नसेन को बंधनग्रस्त कराए जाने का हीरामन के माध्यम से समाचार ज्ञात हुआ तो वह बहुत दुःखी हुई। हीरामन उसे समाश्वासन देने लगा।

 

25. रत्नसेन - सूली खण्ड 

बन्दी बनाए गए सभी योगियों को सूली चढ़ाने के स्थान पर लाया गया। सूली के लिए सर्वप्रथम रत्नसेन को चढ़ाने गया तो वह मंसूर की भाँति प्रसन्न था । लोग उसके सौन्दर्य को देखकर चकित हो रहे थे। तभी वहाँ एक भाट के वेश में आए हुए शिवजी ने गंधर्वसेन को बताया कि यदि तुम इसे सूली दोगे तो भयंकर युद्ध छिड़ जाएगा। उन्होंने रण का घंटा बजाया और तुरन्त ही देवों की सेना एकत्रित होने लगी । गंधर्वसेन के क्रुद्ध होने पर शिव जी ने उसको समझाया कि यह जोगी चित्तौड़गढ़ का राजा है और बड़ा ही गुणवान है। इसको हीरामन तोता सिंहलद्वीप बुलाकर लाया है। हीरामन तोते से पूछने पर गंधर्वसेन को रत्नसेन की सत्यता का पता चल गया। उसने रत्नसेन को बन्धन मुक्त कर दिया और पद्मावती तथा रत्नसेन के विवाह की तैयारियाँ होने लगीं।

 

26. रत्नसेन - पद्मावती विवाह खण्ड-

रत्नसेन से विवाह की तैयारियों होते देखकर पद्मावती बहुत प्रसन्न हुई । सारा नगर भली-भाँति सजाया गया। रत्नसेन ने अपना योगियों वाला वेष त्यागकर नयी साज-सज्जा धारण की। अत्यन्त उल्लास और आनन्द के वातावरण में उनका विवाह सम्पन्न हो गया।

 

27. पद्मावती -रत्नसेन भेंट खण्ड- 

पद्मावती और रत्नसेन की सात खंडों के ऊपर सोने के लिए सेज सजाई गई जो अतीव मृदुल उपकरणों से विनिर्मित थी अपने उन्माद सौन्दर्य की हिलोरे लेती हुई पद्मावती रत्नसेन के समीप पहुँची।

 

28. रत्नसेन-साथी खण्ड -

रत्नसेन के साथी उससे मिलने को समुत्सक थे। अतः वह उनकी सभा में गया । रत्नसेन ने अपने साथियों को भी सोलह हजार पद्मिनी नारियों के साथ सुख के अन्य सामान प्रदान करवा दिए। 29. षट्-ऋतु वर्णन खण्ड - पद्मावती ने अपनी सहेलियों को बुलाकर अपना तथा उनका शृंगार किया और सभी नव विवाहिताएँ अपने-अपने पतियों के समीप काम युद्धार्थ गई। उन्होंने छहों ऋतुओं में स्व- पतियों के साथ सुख भोग किए। 


30. नागमती - वियोग खण्ड-

रत्नसेन के वियोग में सड़पती नागमती की विवशता का तीसवें खंड में जायसी ने बड़ा ही मार्मिक वर्णन किया है। उसका शरीर सूखकर काँटे जैसा हो गया था और उसके मुख से सदैव पी-पी की ध्वनि निकलती रहती है। बारह मासा के साथ में जायसी ने नागमती की वर्ष के बारहों महीनों में कैसी कातर दशा हो गई थी, इस तथ्य का बड़ा ही हृदयग्राही वर्णन किया है।

 

31. नागमती - संदेश खण्ड -

 नागमती स्वपति के वियोग में घूम-घूम कर रोती कलपती रही किन्तु उसको किसी ने भी धैर्य नहीं बंधाया। अंततः एक पक्षी को उस पर दया आ गई और उसने पूछा कि तुम्हें क्या दुःख है। जिसके कारण अर्द्धरात्रि में भी इस प्रकार कलप रही हो। नागमती ने उसे अपनी दयनीय विरहावस्था सुनाने के साथ-साथ यह भी बताया कि उसके पति की माता भी पुत्र-वियोग में उसी प्रकार तड़पकर मर रही है जैसे श्रवणकुमार के वियोग में उसके माता-पिता मर गए थे। वह पक्षी नागमती के वियोग के संदेश को लेकर सिंहलद्वीप आ गया। उसके विरह की आग से वहाँ की वस्तुएँ जलने लगीं। भाग्यवश रत्नसेन भी शिकार खेलता हुआ उधर आ गया और उसने वह वियोग-संदेश सुन लिया। इस संदेश को सुनकर रत्नसेन का अंतर्मन चित्तौड़ को लौटने के लिए व्याकुल हो उठा। उसको उदास देखकर गंधर्वसेन ने उसकी उदासी का कारण पूछा।

 

32. रत्नसेन - विदाई खण्ड 

रत्नसेन ने पद्मावती के पिता को अपनी उदासी का कारण बताया कि कैसे मैंने एक पक्षी से अपनी पत्नी और माता की वियोग-व्यथा का वर्णन सुना है उसे गंधर्वसेन और पद्मावती ने समझाया किन्तु रत्नसेन पर उनका कुछ भी प्रभाव न पड़ा। हारकर गंधर्वसेन ने रत्नसेन को बहुत-सा द्रव्य देकर पद्मावती को उसके साथ विदा कर दिया। उस अपार द्रव्य को देखकर रत्नसेन का अंतर्मन गर्व से भर गया। उसी समय समुद्र एक विप्र के वेश में उससे दान लेने आया किन्तु रत्नसेन तो लोभ के वशीभूत हो उठा था।

 

33. देश-यात्रा खण्ड- 

समुद्र द्वारा याचक के रूप में दान माँगने पर राजा रत्नसेन ने उसकी इच्छापूर्ति नहीं की। परिणाम यह निकला कि समुद्र उससे रुष्ट हो गया और जहाज आधे मार्ग पर ही पहुँच पाए थे कि जोरदार समुद्री तूफान आ गया। वहाँ एक राक्षस माँझी बनकर आया और उसके जहाज को एक गंभीर भंवर में फंसाकर डुबो दिया। रत्नसेन और उसके साथी तितर-बितर हो गए।

 

34. लक्ष्मी समुद्र खण्ड-

समुद्र में डूबने के कारण पद्मावती अचेतावस्था में बहती जा रही थी कि उसको सागर की पुत्री लक्ष्मी ने पकड़ लिया और सचेत कर लिया। संज्ञा को प्राप्त होने पर पद्मावती सती होने का भाग्रह करने लगी किन्तु लक्ष्मी को उसे पर दया आ गई अतः उसने पद्मावती और रत्नसेन का सम्मिलन करा दिया। बहुत से रत्न आदि लेकर वे पुनः चित्तौड़ की ओर चल दिए ।

 

35. चित्तौड़ आगमन खण्ड - 

रत्नसेन के बिल्लोड़ लोटते ही चतुर्दिक आनन्दोत्लास परिव्याप्त हो गया। नागमती की भी प्रसन्नता का पारावार नहीं था। रात्रि समय राजा नागमती के समीप गया।

 

36. नागमती - पद्मावती विवाद खंड- 

सपत्नीजन्य ईर्ष्या भाव के कारण नागमती और पद्मावती में विवाद छिड़ गया तो रत्नसेन ने स्नेह-सिक्त वाक्य कहकर दोनों को शान्त किया। 


37. रत्नसेन संतति खण्ड- 

इस सैंतीसवें खण्ड में नागमती द्वारा नागसेन को पद्मावती द्वारा कंवलसेन को जन्म देने का वर्णन किया गया है।

 

38. राघवचेतन देश निकाला खण्ड- 

पद्मावती के साथ उसके मायके से राघवचेतन नामक एक विद्वान् आया था जो रत्नसेन के दरबार में रहता था । रत्नसेन ने उससे रुष्ट होकर उसे चित्तौड़ से निष्कासित कर दिया। राघवचेतन रुष्ट होकर दिल्ली के तत्कालीन सुल्तान अलाउद्दीन से जा मिला। 


39. राघवचेतन दिल्ली आगमन खण्ड- 

दिल्ली जाकर राघवचेतन ने अलाउद्दीन का मन स्त्रियों के रूप की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया। उसने सुल्तान से पद्मिनी स्त्रियों की प्रशंसा की । 


40. स्त्री-भेद वर्णन खण्ड - 

प्रस्तुत चालीसवें खण्ड में राघवचेतन द्वारा सुल्तान अलाउद्दीन को पद्मिनी, चित्रणी, शंखिनी और हस्तिनी जाति की स्त्रियों के लक्षण सुनाए जाते हैं।

 

41. पद्मावती रूप चर्चा खण्ड- 

राघवचेतन ने अलाउद्दीन को चित्तौड़ की रानी पद्मावती की ओर आकृष्ट करने के लिए उसका नख - शिख वर्णन सुनाया जिसे सुनकर अलाउद्दीन बेहोश हो गया। होश में आने पर उसने पद्मावती को प्राप्त करने का निश्चय किया और राघवचेतन को बहुत सा पुरस्कार दिया। अलाउद्दीन ने सरजा के माध्यम से रत्नसेन को यह पत्र भिजवाया कि वह पद्मावती को अलाउद्दीन को सौंप दे।

 

42. बादशाह-चढ़ाई खण्ड- 

सरजा से मिले अलाउद्दीन के पत्र को पढ़कर रत्नसेन अत्यधिक क्रुद्ध हुआ और सुल्तान को संदेश भिजवा दिया कि यदि वह चाहे तो आक्रमण कर दे, मैं आक्रमण का मुँह तोड़ उत्तर देने को तैयार हूँ । रत्नसेन के इस समाचार को पाकर सुल्तान ने आक्रमण की तैयारी कर दी। दूसरी ओर रत्नसेन ने भी अपनी सेना तैयार कर ली।


 43. राजा - बादशाह युद्ध खंड- 

अलाउद्दीन और रत्नसेन की सेनाएँ एक-दूसरे के सामने डट गई और उनमें भयंकर युद्ध होने लगा। अलाउद्दीन की विशाल सेना का सामना करने में स्वयं को असमर्थ पाकर रत्नसेन ने अपने दुर्ग की शरण ली। अलाउद्दीन ने किले का घेरा डाल दिया और दुर्ग की ओर तोपों के गोले और तीरों की वर्षा की जाने लगी। भीतर से रत्नसेन ने भी इन आक्रमणों का करारा जवाब दिया। इस प्रकार युद्ध चलते बारह वर्ष के लगभग बीत गए । सुल्तान को दिल्ली लौटने का बुलावा आ गया।

 

44. राजा-बादशाह मेल खंड - 

बादशाह ने युद्ध बन्द करके सरजा को सन्धि के लिए प्रेषित किया। सरजा ने छलपूर्वक रत्नसेन को सन्धि के लिए प्रस्तुत करके बादशाह को सन्धि की सूचना भिजवा दी। अलाउद्दीन ने किला देखने की इच्छा व्यक्त की और रत्नसेन ने उसको भोजन पर आमंत्रित कर लिया।

 

45. बादशाह - भोज खण्ड- 

इस खण्ड में बादशाह के भोज के लिए बनाई गई विभिन्न प्रकार की वस्तुओं मांस-मछली, चावल, तरकारी आदि का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है।

 

46. चित्तौड़गढ़-वर्णन खण्ड-

भोजन के उपरान्त बादशाह प्रभात में दुर्ग देखने गया तो वहाँ की समृद्ध बस्ती को देखकर चकित रह गया। गोरा और बादल ने रत्नसेन को समझाया कि वह बादशाह से हेल-मेल न बढ़ाए। किन्तु राजा ने उनकी बातों की ओर ध्यान नहीं दिया। भोजन करते हुए अलाउद्दीन पद्मावती की एक झलक पाने को व्याकुल रहा। अंततः राजा के साथ शतरंज खेलते हुए उसने अपने समीप रखें दर्पण में पद्मावती का प्रतिबिम्ब देख लिया और बेहोश हो गया।

 

47. रत्नसेन बंध खण्ड-

भोजन के उपरान्त रत्नसेन, सुल्तान को विदा करने के लिए उसके साथ-साथ दुर्ग के द्वार तक आया तो सुल्तान ने उसे छलपूर्वक बन्दी बना लिया ।

 

48. पद्मावती नागमती - 

विलाप खण्ड- इस खंड में रत्नसेन को बन्दी बना लिए जाने पर नागमती और पद्मावती द्वारा विलाप करने का मार्मिक वर्णन किया गया है।

 

49. देवपाल दूती खण्ड -

 कुंभलनेर का देवपाल नामक नरेश रत्नसेन के प्रति शत्रुता का भाव रखता था रत्नसेन को बन्दी बनाकर दिल्ली ले जाने का समाचार पाकर कुमुदिनी नामक दूती को पद्मावती को फुसलाकर कुम्भलनेर ले आने के लिए भेजा। दूती ने पद्मावती को बताया कि वह सिंहलद्वीप की ही है और उसके पिता के पुरोहित की पुत्री है। बाद में जब उसने पद्मावती को फुसलाना चाहा तो उसके मंतव्य को जानकर पद्मावती ने रुष्ट होकर उसे पिटवाकर भगा दिया।

 

50. बादशाह दूती खंड- 

सुल्तान अलाउद्दीन ने भी एक नर्तकी को दूती के रूप में पद्मावती के समीप भेजा। यह नर्तकी एक जोगिन के वेश में चित्तौड़ आई और पद्मावती पर अपना प्रभाव जमाने में सफल हो गई, किन्तु अंततः उसका रहस्योद्घाटन हो गया और उसे भगा दिया गया।

 

51. पद्मावती-गोरा-बादल संवाद खण्ड-

स्व पति के बन्दी बनाए जाने से दुःखी पद्मावती उसकी मुक्ति के लिए बहुत-से शूर-सामन्तों से मिली। अंततः गोरा और बादल ने राजा को छुड़ा लाने का वचन देते हुए तदर्थ पान का बीड़ा खाकर यह उत्तरदायित्व संभाल लिया ।

 

52. गोरा-बादल युद्ध - यात्रा खण्ड - 

बादल की माता ने बादल को युद्ध में जाने से रोकने का प्रयास किया। किन्तु उसने अपने वीरोचित उत्तरों से माता को समझा-बुझा दिया । बादल का अभी गौना होकर आया था तो उसकी पत्नी ने भी उसे छोड़कर न जाने की प्रार्थना की, किन्तु बादल को उसके संकल्प से विचलित नहीं कर सकी।

 

53. गोरा-बादल युद्ध खण्ड - 

गोरा और बादल ने आपस में परामर्श करके छल का प्रत्युत्तर छल से देने का निश्चय किया। उन्होंने सोलह सौ पालकियाँ सज्जित करवाकर उनमें हथियारों से लैस योद्धा बिठा दिए। एक पालकी को पद्मावती के नाम से सजाकर उसमें लोहार बैठा दिया गया और यह कहते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े कि रानी पद्मावती दिल्ली जा रही है। दिल्ली पहुँचकर उन्होंने बन्दीगृह के रक्षक को दस लाख मुद्राएँ देकर अपनी ओर मिला लिया और उसके माध्यम से सुल्तान को यह संदेश पहुँचवाया कि पद्मावती आपके पास आने से पूर्व स्वपति से मिलकर उसे दुर्ग की चाबियाँ सौंपने की आज्ञा चाहती हैं। सुल्तान की ओर से यह आज्ञा मिल जाने पर लोहार ने राजा के बन्धन काट दिये और पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार रत्नसेन बादल की संरक्षता में चित्तौड़ की ओर रवाना हो गया। इस षड्यंत्र का रहस्य खुलने पर शाह की सेना ने रत्नसेन को बन्दी बनाने के लिए पीछा करना चाहा किन्तु बादल का चाचा गोरा अपने साथियों के साथ उसे तब तक आगे बढ़ने से रोके रहा, जब तक कि रत्नसेन चित्तौड़ नहीं पहुँच गया। अंततः गोरा वीरगति को प्राप्त हो गया।

 

54. बन्धन-मोक्ष, पद्मावती मिलन खण्ड - 

रत्नसेन के बन्दीगृह से छूट आने की प्रसन्नता में पद्मावती ने बादल के भुजदंडों की पूजा करने के साथ-साथ घोड़ों के पैरों को अपने हाथों से दबाकर अपनी कृतज्ञता और हर्ष प्रकट किया। अवकाश मिलने पर उसने रत्नसेन को देवपाल द्वारा दूती भेजने का समाचार सुना दिया।

 

55. रत्नसेन- देवपाल युद्ध खण्ड -

रत्नसेन को देवपाल द्वारा दूती भेजे जाने का समाचार पाकर बड़ा क्रोध आया और उस पर आक्रमण कर दिया। वह द्वन्द्व युद्ध में बुरी तरह घायल हो गया किन्तु देवपाल उसके हाथों मारा गया। चित्तौड़ की ओर लौटते हुए रत्नसेन रास्ते में बेहोश हो गया ।

 

56. राजा रत्नसेन बैकुण्ठवास खण्ड - 

चित्तौड़ आते-आते रत्नसेन का स्वर्गवास हो गया। मरते समय उसने गढ़ की रक्षा का भार बादल को सौंप दिया।

 

57. पद्मावती-नागमती सती खण्ड- 

पद्मावती और नागमती दोनों ही साध्वी नारियाँ स्व- पति के शव के साथ सती हो गईं। पति के प्रेम में रंगी हुई वे उससे स्वर्ग में जा मिलीं। तभी बादशाह की सेना ने दुर्ग घेर लिया। चित्तौड़ के योद्धाओं ने युद्ध में वीरगति प्राप्त की जबकि स्त्रियों ने जौहर कर लिया। अलाउद्दीन के हाथ रानी पद्मावती की राख ही लगी ।

 

द्मावत की कथा का उपसंहार

द्मावत की कथा का उपसंहार करते हुए कवि ने इस कथा - सम्बन्धी एक रहस्य का उद्घाटन किया है जिससे पूरी कथा एक अन्योक्ति सिद्ध होती है। इस रहस्योद्घाटन के अनुसार ऊपर जो चौदह भुवन हैं वे मनुष्य के अंदर ही है, तन चित्तौड़ है, मन राजा है, हृदय सिंहल है, बुद्धि पद्मिनी है, गुरु सुआ है, नागमती दुनिया-धंधा है, राघवचेतन शैतान है और अलाउद्दीन माया है। जो इस कथा को सुनता है वह प्रेम की पीर से व्याकुल हो उठता है । अंततः अपनी वृद्धावस्था पर खेद व्यक्त करते हुए कवि ग्रन्थ को समाप्त करता है ।

 

द्मावत की कथा का  सारांश (Summary)

 

सूफी कवि जायसी ने भारतीय पौराणिक कथा का आधार लेकर फ़ारसी की मसनवी शैली में पद्मावत महाकाव्य की रचना की।

 

पद्मावत महाकाव्य की नायिका पद्मावती सिंहलद्वीप के राजा गंधर्वसेन की पुत्री थी। पद्मावती के पास एक पालतू तोता (सुआ) था। जो सदैव उसके साथ ही रहता था। एक बार वह तोता उड़कर चित्तौड़गढ़ के राजा रत्नसेन के पास पहुँच गया। तोते ने राजा से सिंहलद्वीप की राजकुमारी पद्मावती के अनुपम सौंदर्य का वर्णन किया। रत्नसेन मन ही मन पद्मावती के सौंदर्य पर मोहित हो गया । पद्मावती के प्रति प्रेमभाव जागृत होने के पश्चात् रत्नसेन अपनी पत्नी नागमती व चित्तौड़गढ़ छोड़कर सिंहलद्वीप के लिए रवाना हो गया। मार्ग में अनेक प्रकार की बाधाएँ पार करते हुए वह अंततः पद्मावती को प्राप्त कर लेता है। दूसरी ओर दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन रानी पद्मावती के प्रेम में आसक्त होकर उसे प्राप्त करने हेतु रत्नसेन से युद्ध करता है। युद्ध में रत्नसेन मारा जाता है और अंत में रानी नागमती व रानी पद्मावता रत्नसेन की चिता के साथ सती हो जाती है।


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