अनुवाद : उत्कल में सुविधा - असुविधा |उपेक्षित अनुवाद आलोचना | Anuvaad Utkal Me Suvidha Asuvidha

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अनुवाद : उत्कल में सुविधा - असुविधा

अनुवाद : उत्कल में सुविधा - असुविधा |उपेक्षित अनुवाद आलोचना | Anuvaad Utkal Me Suvidha Asuvidha
 

अनुवाद : उत्कल में सुविधा - असुविधा

  • अब रेवेंशा विश्वविद्यालयरमादेवी कालेज और खलिकोट कालेज में तीन जगह एम. ए. तक पढ़ाई होने लगी हैकेंद्रीय हिन्दी संस्थान का भुवनेश्वर और हिन्दी शिक्षण संस्थान कटक में बी.एड. की पढ़ाई होने लगी है । बीस-पच्चीस जगह आनर्स एवं सैकड़ों कालेजों में +3 व +2 हिन्दी पढ़ाई जाने लगी है इससे हिन्दी के अच्छे जानकार सामने आ रहे हैं। आगामी दशक बतायेगा इसका लाभ अनुवाद क्षेत्र को कितना मिल रहा है ! पहले तो पी. जी. के लिए इलाहाबादशांतिनिकेतन आदि बाहरी जगह जाने की (आर्थिक) क्षमता वाले ही लाभ उठा पाते थे । अब स्थिति और हवा हिन्दी के पक्ष में है । हिन्दी से जुड़ी हर किताब आज बुकस्टाल पर पा सकते हैं। नौकरियों के लिए सबसे ज्यादा संभावनाएँ हिन्दी में दिख रही हैं यद्यपि अनुवाद प्रशिक्षण की कोई विधिवत व्यवस्था नहीं है । सिर्फ इग्नू के केंद्रों पर डिस्टेंस एजूकेशन के तहत एक दो केंद्रों पर ओड़िशा में अनुवाद के पी. जी. डिप्लोमा के लिए सुविधा हुई है इनमें से एक भी साहित्यिक अनुवादक अब तक उभर कर नहीं आ सका । कोर्स में तो साहित्यानुवाद और प्रयोजनमूलक अनुवाद दोनों पर बराबर जोर दिया गया है परंतु साहित्यानुवाद के लिए आवश्यक वह सांस्कृतिक एवं साहित्यिक बोध वाली शिक्षा देने में ये केंद्र सक्षम नहीं हो सके । इतनी बड़ी सुविधा का विशेष फल ओड़िया - हिन्दी अनुवाद क्षेत्र में नहीं दिख सका ।

 

  • अनुवादक को कुछ शब्दकोश भी मिल जाते हैं । बिंबाधर मिश्र संकलित 'त्रिभाषी कोशकी सामग्री एवं सकलन बहुत अच्छा होते हुए भी उसमें प्रूफ की गलतियों के कारण वह प्रचारित नहीं हो पाया। केंद्रीय हिन्दी निदेशालय ने राधाकांत मिश्र संपादित हिन्दी - ओड़िया एवं ओड़िया - हिन्दी कोश का प्रकाशन किया थापरंतु वह ज्यादातर कार्यालयीन काम का हैकविता-कहानीउपन्यासनाटक अनुवाद करने वालों के लिए सीमित उपयोग वाला है। छोटी-सी शब्दावली का संग्रह और अनुवाद होता तब सहायक सामग्री बन जाती । इस संबंध में संदर्भ ग्रंथ भी बहुत थोड़े हैं । राष्ट्रभाषा रजत जयंती ग्रंथ और उत्कल दर्शन (ब्रजराजनगर में बिड़लाओं के सहयोग से प्रकाशित) काफी दिन पहले छपे थेअब वे कहीं उपलब्ध नहीं । वैसे ही उत्कल संस्कृति पर डा. बी. गुप्ता एवं अशोक पांडेय आदि के सहयोग से एक संदर्भ ग्रंथ छपा था । संदर्भ सामग्री संतोषजनक थी पर संपादन के अभाव में इसका बहुत ज्यादा प्रचार न हो सका । वह भी अब कहीं नहीं मिलता । इस प्रकार अनुवादक के पास क्या बचता हैसहायता करने के रूप में आसपास का वातावरण । जो लोग हिन्दी - ओड़िया दोनों जानते हैं । कुछ हिन्दी अखबारजहाँ कभी-कभी अनुवाद के लिए सहायक संदर्भ सामग्री मिल जाती है । ओड़िशा के पन्नों पर जो छपता है उससे कई बार उत्कलीय शब्द हिन्दी में उपलब्ध हो जाते हैं लेकिन यों ओस पीकर क्या प्यास बुझ सकती है बस यहाँ के रचनाकार ही उसके सबसे बड़े संदर्भ ग्रंथसहायक सामग्रीशब्दकोशशब्द संग्रह कुछ भी कह लेंउनके साथ चर्चा कर अपनी राह सुगम बना सकता है। इससे बेहतर मार्ग अभी तक ओड़िया - हिन्दी अनुवादक के लिए ( मार्ग तो दूरपगडंडी तक) नहीं बन पायी चाहे अनपढ़ हो, देहाती होउस ओड़िया भाषी से कोई प्रचलित शब्द पूछें - एक संकल्पना (Concept) दे ही देता है । अब अनुवादक अपना मार्ग उसी पर तय करे । यह संस्कृति सचेतनता एक तो श्रीजगन्नाथ के प्रभाव से सर्वत्र मिल जाती है । दूसरे ओड़िया का संस्कृत के साथ घनिष्ठ संपर्क है । अत: भाषागत संस्कारों की गहराई सहज ही उपलब्ध है । अत: सर्वाधिक सुरक्षित साधन आम आदमी ही है ।

 

  • परंतु प्रकाशन के लिए दिल्ली - इलाहाबाद जाना और उनकी कृपा पर निर्भर रहना स्वाभिमान के लिए कम जंचता राष्ट्रभाषा प्रचार सभा के बाद प्रचार संस्थाओं की सबकी आर्थिक स्थिति दुर्बल रही केवल 'परिवेशहिन्दी में अपना प्रकाशन कार्यक्रम जारी रखे हैं । गैर व्यवसायिक प्रकाशक के रूप में श्रीगोपीनाथ साहु के सुपुत्र श्रीसाहु ने अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का अनुवाद करा कर प्रकाशित किया है । प्रोफेशनल प्रकाशन के रूप में 'शबनम पुस्तक महलकेवल हिन्दी प्रकाशन का संकल्प लेकर सामने आया परंतु लेखकोंपाठकों के अनुरोध पर इस संस्था को अपनी गतिविधि विस्तार करनी पड़ी । प्रकाशन जगत इसे हिन्दी प्रकाशक के रूप में ही मान्यता देता है बहुत कम समय में यहाँ से ओड़िया के अनेक प्रसिद्ध ग्रंथ अनूदित होकर हिन्दी पाठकों तक पहुँच चुके हैं इनमें मनोज दासचंद्रशेखर रथराजेंद्र पंडासीताकांत महापात्ररमाकांत रथवीणापाणि महांतिप्रतिभा रायप्रतिभा शतपथी हरप्रसाद दाससौभाग्य मिश्रब्रजनाथ रथ आदि के महत्वपूर्ण ग्रंथ अनूदित होकर प्रकाशित हुए हैं । पिछले कुछ अर्से से ..... यहाँ से कविताकहानीउपन्यासनाटकआदि अनेक विधाओं की कृतियाँ प्रकाशित हुई हैं पाठकों का ध्यान आकर्षित करने में ये अनुवाद काफी हद तक सफल हुए हैं । विद्यासागर प्रकाशन ने कई नाटककहानी संग्रह... का प्रकाशन कर हिन्दी प्रकाशन में अपनी पहचान बनाये रखी है विश्वमुक्ति की गतिविधि भी प्रसन्न पाटशाणीडॉ. शंकरलाल पुरोहित व शशांक के नेतृत्व में आगे आयी हैं सचित्र ओड़िया साहित्यपैगामहिन्दी प्रचार संस्थाओं की पत्रिकाएँ (राष्ट्रभाषा पत्रकलिंग ज्योति, .. ओड़िया साहित्य को सजो कर हिन्दी में प्रस्तुत करने में महती भूमिका निभाती रही हैं ।) वैसे भी साहित्य में कम बिकने वाली विधा में अनुवाद का स्थान है फिर ओड़िशा में प्रकाशित अनुवादों का बिक्रय क्षेत्र सीमित हो जाता है । कारण कई हो सकते हैं । परंतु सारतः कहा जा सकता है कि ओड़िया साहित्य के लिए अच्छे अनुवादकों का अभाव हो सकता हैप्रकाशकों का अभाव आज कहीं नहीं । उनके बिना यह स्थानीय प्रांतीय साहित्य मर्यादा खो देगा । इधर सुव (भारतीय राजभाषा परिषद) के अधीन परोक्ष अनुवाद प्रकाशन में आगे आए हैं। जगदीश चंद्र बसु की बंगला जीवनी को ओड़िया के माध्यम से हिंदी में अनुवाद कर प्रकाशित किया है ।

 

  • इधर राजा राम मोहनराय लाइब्रेरी फाउंडेशनकेंद्रीय हिन्दी निदेशालय आदि की थोक बिक्री योजनाओं को ध्यान में रख कर भी हिन्दी में अनुवाद का निर्णय होता है । लेकिन यह बात स्पष्ट है पुरस्कृत (ज्ञानपीठसरस्वतीमोदीसारला... आदि की पुस्कृत कृतियाँ ) साहित्य का अनुवाद होने और प्रकाशन में ज्यादा समय नहीं लगता । साहित्य अकादमी एवं ने. बु,टू.भा.भा. परिषद एवं भारतीय अनुवाद परिषद ऐसी पुरस्कृत एवं उत्कृष्ट रचनाओं के प्रकाशन में सदा तत्पर रहती हैं । परंतु इनके अनुवाद प्रकाशन की प्रक्रिया इतनी जटिल और समय सापेक्ष्य है कि उभय अनुवादक और लेखक दोनों ऊब जाते हैं । फिर भी ज्यादातर ग्रंथ इसी प्रक्रिया के तहत सामने आ रहे हैं । परंतु इसमें प्रचार-प्रसार और भी धीमा होता है । अत: कई स्वाभिमानी रचनाकार इसमें विशेष रुचि नहीं ले पाते ।

 

  • पत्र-पत्रिकाओं में 'सचित्र ओड़िसा साहित्यऔर 'राष्ट्रभाषा पत्रकुछ समय चल कर बंद हुपरंतु अनुवाद वाहक ब्रजसुन्दर पाढ़ी के कारण 'वार्तावाहकअभी भी पंद्रह वर्ष से प्रकाशन की नियमितता रखे है अनुवाद के लेखन और प्रकाशन के बाद उसका विक्रय बड़ी समस्या बन जाता है 'महाभारत' (सारलादास) का एक खंड दिल्ली से प्रकाशित हुआ । अब ओड़िशा साहित्य अकादेमी इस महत्व ग्रंथ को प्रकाशित करने की योजना कर रही है उसके बाद वितरण की कठिन समस्या थी । स्वयं अनुवादक प्रकाशन करे तो वह उन्हें किस माध्यम से प्रसारित करे यह जटिल समस्या है ।

 

  • परंतु अनुवाद के मूल्यांकन की बात आज भी कोई नहीं करता । उत्कल में अनुवाद का मूल्यांकन बहुत कम जगह हो पाता है ।

 

उपेक्षित अनुवाद आलोचना :

 

  • ओड़िया से हिन्दी अनुवाद प्राय: आलोचकों की उपेक्षा का शिकार होता रहा है । अपने आप हिन्दी अनुवाद की सामग्रिक आलोचना बहुत कम होती है । फलतः पाठक अनुवाद की विशेषता से वंचित रहता है । कम समय में इतना सारा पढ़ कर उस पर टिप्पणी प्रस्तुतिकरण की बात कल्पना मात्र है । चर्चा किये बिना हिन्दी पाठक ग्रंथ के प्रति अवधारणा नहीं बना पाता अतः अनुवाद - आलोचना का महत्व असंदिग्ध है । अनुवाद शास्त्र के आधार पर उसकी कहीं चर्चा नहीं हो पाती पाठकीय मार्ग दर्शन का काम प्रायः नहीं हो पाता । प्रचार-प्रसार के अभाव में सूचना भी दुर्लभ होती है । ऐसे में अनुवाद छप कर भी पाठकीय पृष्ठपोषकता नहीं पा रहे। यह भी एक जटिल समस्या है । पाठकीय उत्साह बिना नये-नये अनुवादकों को संबल नहीं मिल पाता है ।

 

  • एक समय था जब मूल लेखन और अनुवाद कर्म की तुलना कर अनुवाद को हेय कहा जाता । अंग्रेजी में अनुवादकों के लिए सैकड़ों गालियाँ ( जैसे धोखेबाजदगाबाजदलालब्यूटिफुल या फेथफुल ...) ऐसे फतवे देकर अनुवाद को ओछा कहा जाता । जो होयहाँ तक भी कहा गया - जिसमें हिन्दी लेखन की प्रतिभा नहीं हैवह ओड़िया अनुवाद कर अपने को लेखक कहाने का शौक पूरा करता है अगर वास्तव में रचनात्मकता है तो उसे सृजन (कविताकहानीउपन्यासनाटक आदि ) जैसे कार्य में नियोजित होना चाहिए । ओड़िया - हिन्दी भाषाओं (जैसे बांग्ला- ओड़िया में है) के निकट संपर्क के कारण अनुवाद एक आसान सा गलियारा है । यह तो कोई भी कर लेगा । इसमें 'प्रतिभाकी क्या बात है ?

 

  • इस तरह की टिप्पणियाँ कुछ हद तक सत्य हैं। पर उन्हें पूर्ण सत्य के रूप में स्वीकार कर अनुवाद के प्रति हीन दृष्टि किसी रूप में संगत नहीं लगती । राजभाषा या कामकाजी अनुवादों का अनुवाद संधिकाल में जरूरी है । शायद बाद में इनकी वहाँ जरूरत न पड़े । परंतु ओड़िया साहित्य एक स्वतंत्र मर्यादावंत भाषा का साहित्य है । इसे अपनी लिपि और भाषा के दायरे में सीमित रखने की बात मानवता के प्रति अन्याय हैअपराध है । इसे देश की मर्यादाशील क्लासिकल भाषा की मान्यता भी मिल चुकी है । आज हम एक तरफ वैश्वीकरण की बात करते हैं। उधर विश्व ग्राम को स्वीकार करते हैं । सारी दुनिया का ज्ञानअनुभवभाव-जगत सर्वजन करने को महत्व देते हैं। ऐसे में अपने को भाषा और लिपि के दायरों में बंद रखने का तत्व समझ में नहीं आता वैसे भी हर अभिव्यक्ति एक समुदाय से बढ़ कर संपूर्ण मानवता की निधि बनेइसे आदर्श स्थिति कह सकते हैं इसमें हिन्दी अनुवाद एक कदम आगे जाने जैसा है। कुछ भी हो यहाँ सीमा तोड़ने का प्रयास तो है ही । इसे और आगे लेने का - प्रयास अन्य भाषा-भाषी करेंगे जब तक मानवता की एक सामान्य भाषा और लिपि नहीं हो जाती - कम से कम एक राष्ट्र के रूप में अपने लिए हमने देवनागरी लिपि और हिन्दी को स्वीकार किया है । अतः ओड़िया साहित्य का अनुवाद सर्वभारतीय स्तर पर उपलब्ध कराने के लिए हिन्दी अनुवाद तो होते रहना ही चाहिए । यहाँ अंग्रेजी अनुवाद से तुलना अनावश्यक है । अंग्रेजी इस राष्ट्र के सिर्फ दो - तीन प्रतिशत लोगों तक ही पहुँच बना पाती हैभारत की जनता में व्यापक उपस्थिति हिन्दी से ही दर्ज हो सकती है इसके अलावा अन्य भारतीय भाषायें भी अपने लिए इस सामग्री का उपयोग कर सकती हैं । आदान-प्रदान की दृष्टि से यह सदियों की परंपरा अब वैज्ञानिकतकनीकी एवं कलात्मक धरातल पर नई जमीन की मांग करती है । अतः इसमें रोड़े अटकानाअड़चनें डालनाहीन कहना आत्मघाती है। अंग्रेजी अनुवाद का महत्व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है । उसकी बात अलग है । राष्ट्रीय धारा में हिन्दी अनुवाद और अंग्रेजी अनुवाद कहीं प्रतिद्वंदी नहीं ठहरते । विश्व स्तर में ओड़िया की कृति जाने के लिए अंग्रेजी का महत्व निश्चित है ।

 

विभिन्न पुरस्कार : 

  • सम्मान एवं ऐसे समारोह भी प्रोत्साहन के लिए किये जाते हैं । परंतु इनमें कुछ कमियाँ रह जाती हैं - उचित समय पर सम्मानउचित लोगों / कृतियों का सम्मान और उचित अवसर / व्यक्ति / संस्था के जरिये सम्मान इसके महत्व को बढ़ाता है। अनुवाद कार्य आर्थिक दृष्टि से प्राय: बहुत आकर्षक नहीं होता । ये सम्मानपुरस्कार आदि उसमें उत्साहप्रेरणा के सूत्र हैं । अत: इन्हें नगण्य नहीं समझा जाना चाहिए । राज्य स्तर पर ओड़िया से हिन्दी अनुवाद के लिए पुरस्कार प्रोत्साहन की किसी स्तर पर कोई योजना या व्यवस्था नहीं है राज्य के बाहर (जैसे भोपालदिल्लीलखनऊआगरापटना में) अनुवाद को सम्मान देने के लिए कई मंच हैं। अब इनकी संख्या में और भी वृद्धि हो रही है । भारतीय अनुवाद परिषद इस दृष्टि से एकमात्र संस्था है जो अनुवाद और उससे जुड़ी विविध गतिविधियों से जुड़ी हैं । इसमें पुरस्कार एवं सम्मान भी शामिल हैं। केंद्रीय हिन्दी निदेशालयउ. प्र. हिन्दी संस्थान एवं केंद्रीय हिन्दी संस्थान के अलावा भारतीय भाषा संस्थान भी इन गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है । इन सब में ओड़िया साहित्य को अनुवादों के जरिये सम्मान मिला हैं । भारतीय ज्ञानपीठ अनुवाद को कोई पुरस्कार नहीं देताहाँपुरस्कृत कृतियों के हिन्दी अनुवाद छापता है । वैसे ही सरस्वती सम्मान प्राप्त कृतियों के अनुवाद में भी हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप वाले सहयोग करते हैं । राज्य की अनेक संस्थायें ओड़िया कृतियों को तो सम्मानित करती हैंपरंतु अनुवाद के लिए सम्मान या प्रोत्साहन की कोई बात ध्यान में नहीं आयी । ओड़िसा साहित्य अकादमी में ओड़िया अनुवादों को सम्मानित करने की प्रथा जरूर है। एक बार गंगाधर फाउंडेशन ने नंदिनी शतपथी को उनके अनुवाद (ओड़िया में ) के लिए एक लाख रुपये से सम्मानित किया था । उत्कल साहित्य समाज कटक अनुवाद पुरस्कार स्थापित हुआ है । 

 

अनुवाद प्रशिक्षण :

 

  • इसी क्रम में देखें तो स्पष्ट होगा कि ओड़िशा में हिन्दी अनुवाद के लिए किसी तरह के प्रशिक्षण की कहीं कोई सुनिश्चित व्यवस्था नहीं है । देश के किसी पाठ्यक्रम में इस बारे में कोई स्तरीय प्रावधान नहीं हुआ । यही कारण है कि प्रशिक्षित ओड़िया - हिन्दी अनुवादक (साहित्यिक एवं प्रयोजनमूलक भाषा के लिए) मिलना दुरुह है जो भी इस काम में लगे हैं सब 'करत-करत अभ्यास के...अभ्यस्त होते गए हैं । एक बार रेवेंशा विश्वविद्यालय (रवेंशा कालेज) में अनुवाद का पाठ्यक्रम खुला थापरंतु उसके पूरा रूप लेने से पूर्व ही वह बंद हो गया । उसी प्रकार केंद्रीय हिन्दी संस्थान के भुवनेश्वर केंद्र में अनुवाद पाठ्यक्रम की बात तो शुरू से ही चल रही है । इस विस्तार की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता । तीन हिन्दी ट्रेनिंग संस्थाओं में शिक्षक प्रशिक्षण से हट कर कोई पाठ्यक्रम शुरू करने की कल्पना भी कहीं दिखाई नहीं की (दुर्भाग्य से अब तो एक ही संस्थान बचा रह गया है जो हिन्दी शिक्षण डिग्री पाठ्यक्रम चला रहा है ) हालांकि कुछ समय पूर्व वर्णमालाने एक गतिशील पाठ्यक्रम और नियमावली ओड़िया हिन्दी एवं ओड़िया - अंग्रेजी अनुवाद पाठ्यक्रम को लेकर बनाई थी । परंतु उसके लागू होने से पूर्व ही संस्था निष्क्रय हो गई । बसउत्कल विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में अनुवाद का नियमित पाठ्यक्रम है वहाँ बराबर गतिविधियाँ चलती रहती हैं। पर वे तो अंग्रेजी या ज्यादा से ज्यादा ओड़िया अनुवाद से जुड़े हैं । हिन्दी अनुवाद की ओर संभवतः उनका कभी ध्यान नहीं गया । आजकल कालेजों में पांच-दस नंबर का अनुवाद पाठ्यक्रम आनर्स स्तर पर प्रायः सब विश्वविद्यालयों में स्वीकृत है । परंतु वह अपना विशेष महत्व नहीं बना पाया है । 'राजभाषा प्रशिक्षणजैसे पेपरों में कुछ ज्यादा महत्व दिया गया है। परंतु उसके पठन-पाठन के लिए कोई विशेष व्यवस्था न होने के कारण छात्र उस सुविधा का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं ।

 

अनुवाद सहायक सामग्री : 

  • अनुवाद के लिए सहायक सामग्री की बात करें तो ओड़िशा ही क्योंसारे देश की स्थिति पर नजर डालेंबड़ी मायूसी हाथ लगती हैं । बसअनुवादक का न कोई सहायक होता हैन कोई सहायक सामग्री होती है रवीन्द्रनाथ की एक पंक्ति कहा करते थे हंस कुमार तिवारी 'तुमार डाक सुने केउनाय आसेएकला चलो एकला चलोरे !वैसे उत्कल में एक सुविधा है सबसे बड़ा कोश गोपाल प्रहराज निर्मित भाषाकोश है इसका पुनर्मुद्रण हो गया है। बाकी दो-तीन ओड़िया - हिन्दी कोश हैं पं. बिंबाधर मिश्र ने ओड़िया हिन्दी - अंग्रेजी (त्रिभाशी कोश) बनाया था प्रकाशित भी हुआ परंतु खूब श्रम पूर्वक किया गया कार्य प्रूफ की त्रुटियों के कारण किसी काम का न रहा । एक बड़ा प्रयास असफल हो गया । बाकी व्यावसायिक घरानों ने छोटे-मोटे हिन्दी - ओड़िया कोश बनाये हैं । स्टेट बैंक ने अपने व्यवहार के लिए तीन दशक पूर्व एक आंतरिक व्यवहार हेतु ओड़िया - हिन्दी कोष बनाया था । पर वह साहित्यिक अनुवाद में उतना सहायक नहीं हो सकता ।

 

  • केंद्रीय हिन्दी निदेशालय ने प्रो. राधाकांत मिश्र द्वारा संपादित ओड़िया - हिन्दी एवं हिन्दी ओड़िया शब्दकोश छापा था । प्रो. मिश्र ने काफी सोच-विचार कर शब्द सूची बनाई थी । समांतर हिन्दी शब्दों के चयन में कोई त्रुटि नहीं रही । परंतु अब उसके अद्यतन बनाने और शब्द संख्या का विस्तार कर अनुवादक उपयोगी बनाया जाना चाहिए। कुल मिला कर अनुवादक को अपने आसपास से ही समस्याओं का (पूछ-पूछ कर ) समाधान करना होता है। वह घर का नौकर हो या फिर विश्वविद्यालय thaड़िया विभाग का प्रोफेसर । हिन्दी अनुवाद के लिए कोई विधिवत व्यवस्था नहीं मिल सकती । जब अनुवादक कुछकहीं से सहयोग नहीं पाता तो अपने सीमित ज्ञान के सहारेअनुभव करअनुवाद करता रहता है । कई बार मूल रचनाकार स्वयं (हिन्दी भाषी क्षेत्र में काफी समय रह चुकने के कारण) अनुवादक को मार्ग दिखाने आगे आ जाता है । अंत में वह स्वविवेकस्वानुभूतिस्वचिंतन के बल पर अर्थान्तर का प्रयास करता है । इन अनचली राहों (Untrodden path) का पथिक जो ठहरा । ऐसे में कहीं रोड़ाकहीं कांटाकहीं ऊंचा नीचा (ऊबड़-खाबड़ ) हर तरह की जमीन मिलती है ।

 

  • कुछ भी होमार्ग न होसाधन न होंप्रकाशक न होंपाठक न हों... सारे 'नहीं-नहींके वातावरण में भी उसे 'अस्तिका मंत्र जाप करना होता हैइस विपरीतमुखी धारा में मनुष्य आगे गति करता है । अनुवादक एक बड़ी धारा के आखरी मोड़ पर खड़ा है। युगों में शैली बदलीआवश्यकताएँ बदलीबहुत कुछ बदलते-बदलते आज मशीनी अनुवाद और वैश्वीकरण के छोर पर खड़ा है । अनुवादक के लिए पहले से यह ज्यादा बड़ी चुनौती है। उसका पाठक केवल भारत ही नहीं है - विश्व में कहीं भी मिल जाता है (एक बार भारतीय भाषा संस्थान के क्षेत्रीय निदेशक डा. अपन्ना प्रधान - जो अमेरिका यात्रा कर लौटे थे- कहने लगेहिन्दी का अनुवादक ओड़िया साहित्य लेकर विस्कांस विश्वविद्यालय में मुझ से भी बहुत पहले पहुँच चुका है ! यह देख कर अनुवादक से ईर्ष्या हो रही हैवैसे हृदय से उन्हें इस अग्रिम यात्रा के लिए मेरी बधाई !) ओड़िया साहित्य हिन्दी के माध्यम से विश्व में कहीं भी मिल जायेगा । तो फिर अनुवादक को इस पर प्रसन्न होना चाहिए । उसका दायित्व भी बढ़ जाता है । आज अनुवाद को जिस गौरव गरिमा से देखा जा रहा है वह इस कार्य को और गंभीरता से करने के लिए प्रेरित करता हैं । अब तो इंटरनेट आ जाने के बाद किसी न किसी रूप में यह अनूदित सामग्री वेबसाइट पर मिल ही जाती है । वैश्वीकरण का प्रभाव ओड़िया- हिंदी अनुवाद पर क्यों नहीं पड़ेगा लोगों में जानने की उत्कंठा बहुत बढ़ गई है । लंबे और मोटे ग्रंथों से वैश्विक पाठक उतना लगाव नहीं रख पाता । यही कारण है कि अब तो लेखक अपनी वेबसाइट बना कर महत्वपूर्ण कृतियों को इंटरनेट पर देने लगे हैं । कुछ ओड़िया लेखकों ने भी इस ओर पहल की है । आशा है आने वाले युग में बहुत निकट भविष्य में यह कामना भी पूरी हो जायेगी । 


अनुवाद : अधूरी पहचान का मुद्दा :

 

  • पिछले दिनों एक प्रश्न पूछा गया - सच्चिराउत राय का 'चित्रग्रीवहिन्दी में क्यों नहीं मिलता इस प्रश्न की ओट में अनेक समस्यायें छुपी हैं वह दुःखती रग है जिस की चर्चा कोई अनुवादक नहीं करता । अनूदित साहित्य में अनेक महत्वपूर्ण कृतियों को हिन्दी पाठक तक पहुँचने का सौभाग्य नहीं मिला । जैसे सच कहा जाय तो व्यंग्यात्मक उपन्यास बहुत अधिक नहीं हैंजो हैं वे तो उत्कृष्ट होने के बावजूद हिन्दी नहीं हो सके । उदाहरण के तौर पर 'नाकटा चित्रकारफतूरानन्द की तीखी व्यंग कृति है । अभी कान्हुचरण महांति का जन्मशती वर्ष है । वे ओड़िया के शीर्षस्थ उपन्यासकार हैं । उनका एक भी उपन्यास ('काको छोड़ दें जो अब बजार में नहीं मिल सकता) ढंग से अनूदित होकर प्रकाशित नहीं हुआ मनोज दास के एक और कहानी संग्रहउपन्यास के अलावा भी हिन्दी के लिए उनकी कृतियों की कमी नहीं । गायत्री बसुमलिक की सुपाठ्य कृतियाँ हिन्दी में कहाँ महापात्र नीलमणि साहू की कथा महानदी नहीं पार कर सकी । बड़े कथाकार विभूति पटनायक से हिन्दी जगत अपरिचित हैं ।

 

  •  । नई पीढ़ी का कथानक तो अनछूआ है नई पीढ़ी का प्रयोग हमें अपने युग के साथ-साथ चलने के अहसास में भर देता है इन रचनाकारों की या तो अनुवादक तक पहुँच नहीं हैअथवा हिन्दी प्रकाशकों को वे प्रभावित नहीं कर पाये हैंअथवा ये संकोचवश अनुवादक को अपनी कृतियों से परिचित नहीं करा सके । कारण जो भी हिन्दी होअनुवाद की यह दुखती रग है। युवा स्वर कितना भी तेज होअब तक अनुवाद में हिन्दी पाठकों तक इनका कोई खास साहित्य नहीं पहुँच सका । दिल्ली के प्रकाशकों पर हिन्दी अनुवाद का काफी दबाव है । अगर इसे विस्तृत कर दें और हैदराबाद से पटनालखनऊ कानपुर की तिहरी भूमिका में पहुँचा दें तो काफी लाभ होगा । इधर बनारसइलाहाबादआगराजयपुर के प्रकाशक भी काफी महत्वपूर्ण साहित्य छाप रहे हैं। ओड़िया की नई पीढ़ी के उपन्यासों की ओर उनका ध्यान आकृष्ट हो तो बड़ा अभाव दूर हो सकता हैएक कंस्ट्रेंट हटे । विश्व में अनुवाद का क्षेत्र कितना बढ़ गया । यूरोप और अमेरिका के प्रतिष्ठानों के अपने अनुवाद विभाग हैं। अपने एजेंटों से भी वे अनुवाद करा लेते हैं । भारत में ऐसा कुछ भी नहीं है । फिर भी भारतीय और विश्व मानचित्र में अपना स्थान बनाने हेतु ऐसे स्वप्निल परिवेश की जरूरत है । अनुवाद को इस स्थिति से आगे लेने में इसमें ओड़िशा की पुरस्कार देने वाली छोटी-बड़ी संस्थायें एवं हिन्दी की सर्वभारतीय संस्थायें भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं । सचमुच इस नई पीढ़ी के प्रवेश बिना ओड़िया साहित्य की पहचान अधूरी बनी रहेगी । हमारा लक्ष्य राष्ट्रीय एकताआपसी सौमनस्यकला की सर्वोत्तम अभिव्यक्ति साहित्य के प्रचार-प्रसारवैश्विक चुनौतियों के वातावरण में वैश्विक भाव के पनपते स्वरूप से रूबरू होने जैसी बातों के लिए ठोस - कुछ करना जरूरी है । ओड़िया भाषा संस्थान के जरिये इसे प्रोत्साहन दिया जा सकता है । 'एषणा परिषदइस संबंध में कुछ मार्ग दर्शन कर सकती है । 'आत्म प्रकाशनीको एक वृहत्तर संस्था के रूप में अनुष्ठान बनाकर इंस्टीच्यूट की तरह सक्रिय किया जा सकता है । ओड़िया साहित्य समाजसारला अवार्डसारला साहित्य संसद जैसी संस्थायें हिन्दी की विभिन्न गैर सरकारीअर्धकारी संस्थाओं के साथ सहयोग कर ओड़िशा से अनूदित हिन्दी पांडुलिपि भिजवायेंउधर से वे ओड़िया मं अनूदित पांडुलिपि भेंजे - संपर्क सूत्र बनें - रास्ते बहुत हैंसंभावनाएँ असंख्य हैं - पाठक भी हैं । केवल आत्मिक संकल्प लेकर कोई पहल करें ! शायद यह प्रेरणा स्वयं जगन्नाथ ही प्रदान कर सकते हैं। आज तक सारलादास -ओड़िया साहित्यके शिखर पुरुष के महाभारत का एक खंड ही हिंदी पाठक को दे सके हैं इन महाप्रभु की कृपा हुई तो संपूर्ण महाभारत भारतीय साहित्य का गौरव ग्रंथ हिंदी बन कर सामने आ सकेगा । यह अनुवाद की भारतीय साहित्य को महत्वपूर्ण देन होगी । एकता का अनूठा सूत्र बनेगा ।

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