रामायण मानवता की कसौटी: आदिकवि वाल्मीकि की दृष्टि में | Manavta Balmiki Ki Drishti Me

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मानवता की कसौटी: आदिकवि वाल्मीकि की दृष्टि में 

रामायण मानवता की कसौटी: आदिकवि वाल्मीकि की दृष्टि में | Manavta Balmiki Ki Drishti Me



मानवता की कसौटी: आदिकवि वाल्मीकि की दृष्टि में


महर्षि वाल्मीकि की दृष्टि में 'चरित्रही मानवता की कसौटी है। चरित्र से युक्त मनुष्य की खोज तथा उसका विशद वर्णन ही रामायण का मुख्य उद्देश्य है। 


  • वाल्मीकि ने महर्षि नारद से यही जिज्ञासा की है- 'चारित्रेण च को युक्त: ?”

 

  • चरित्र ही मानव को देवता बनाता है। इस चरित्र का पूर्ण विकास मर्यादा पुरुषोत्तम रामचन्द्र में दृष्टिगोचर होता है। रामचरित्र ही आर्यचरित्र का आदर्श है और वह मानवता की चरम अभिव्यक्ति है। राम में मानसिक विकास की ही पूर्णता लक्षित नहीं होती हैअपि तु शारीरिक सौन्दर्य का भी मंजुल पर्यवसान उनमें उपलब्ध होता है (द्रष्टव्य सुन्दर काण्ड अध्याय 35 ) राम में धैर्य का चूडान्त दृष्टान्त हमें मिलता है।

 

  • साधारण मनुष्य जीवन के साफल्यभूत राज्य से बहिर्भूत होने पर कितना व्यथित तथा आहत होता है यह अनुभव से हमें भली-भाँति पता चलता हैपरन्तु राम के ऊपर इस निर्मम घटना का तनिक भी प्रभाव नहीं पड़ता वे महनीय हिमालय के समान अडिग तथा अडोल खडे होकरविपत्ति के दुर्दान्त तरंगों को अपने विशाल वक्षःस्थल के ऊपर सहते हैंऔर उनके चित्त में किसी प्रकार का विकार लक्षित नहीं होता :- (2/19/33) 


न वनं गन्तुकामस्य त्यजतश्च वसुन्धराम् 

सर्वलोकातिगस्येव लक्ष्यते चित्तविक्रिया ॥

 

  • इसका कारण यह था कि उनमें ममत्व बुद्धि का विलास दृष्टिगोचर नहीं होता। भगवद्गीता के अनुसार आदर्श मानव में जिन गुणों का सद्भाव रहता हैरामचन्द्र उन समग्रगुणों की जीवन्त मूर्ति थे। विषमबुद्धि व्यक्ति ही परिस्थिति के विपर्यय से परिताप का आश्रय बनता हैपरन्तु समबुद्धि व्यक्ति विषम विपर्यय में भी परिताप को अपने पास फटकने नहीं देता। समबुद्धि तथा समदर्शी राम परिताप करने से इसीलिए कोसों दूर हैं। राम क्षात्र धर्म के साकार विग्रह हैं।


  • भारतवर्ष का क्षत्रियत्व राम के नस-नस में व्याप्त हो रहा है। ऋषियों के विशेष आग्रह करने पर राम राक्षसों के मारने की विकट प्रतिज्ञा करते हैं। सीता क्षात्रधर्म के सेवन से बुद्धिके मलिन होने की बात सुनाकर उन्हें इस कार्य से विरत करना चाहती हैं (31958), परन्तु राम इस प्रेममय उपालम्भ का तिरस्कार कर डंके की चोट क्षत्रियत्व के आदर्श को प्रकट करते हैं:-क्षत्रियैर्धार्यर्ते चापो नार्त-शब्दो भवेदिति ( 10/3)। क्षत्रियों के द्वारा धनुष धारण करने की यही आवश्यकता है कि पीड़ितों का शब्द ही कहीं न हो। जगत् की रक्षा का भार धनुर्धारो क्षत्रियों के ऊपर सर्वदा रहता ही है।

 

राम सत्य तथा प्रतिज्ञा पालन के महनीय व्रती हैं। सत्यनिष्ठा तथा प्रतिज्ञा निर्वाह के महनीय व्रत के कारण वे संसार में महिमा सम्पन्न माने जाते हैं। जाबालि ने राम को अयोध्या लौट जाने तथा सिंहासन पर आसीन होने के लिए किन युक्तियों का व्यूह नहीं रचापरन्तु राम अपने सत्य सेपिता के सामने की गई प्रतिज्ञा से रंच मात्र भी विचलित नहीं हुए। उन्होंने बड़े आग्रह से कहा कि न तो लोभ सेन मोह सेन अज्ञान से मैं सत्य के सेतु को तोडूंगा। पिता के सामने प्रतिज्ञा का निर्वाह अवश्य करूँगा (अयोध्या0 109/17)


 नैव लोभान्न मोहाद्वा नह्यज्ञानात् तमोऽन्वितः । 

सेतुं सत्यस्य भेत्स्यामि गुरोः सत्यप्रतिश्रवः ॥

 

  • सीता जी के द्वारा बारम्बार क्षात्रधर्मानुकूल प्रतिज्ञा-पालन से पराड़गुख किये जाने पर राम का क्षत्रियत्व उबल उठता है। वे डंके की चोट पुकार उठते हैं- मैं अपने प्राणों को भी छोड़ सकता हूँहे सीतेलक्ष्मण के साथ तुम्हें भी छोड़ सकता हूँ परन्तु प्रतिज्ञा कभी नहीं छोड़ सकताविशेष कर ब्राह्मणों के साथ की गई प्रतिज्ञा तो मेरे लिए नितान्त अपरिहार्य है (अरण्य0 1019 )

 

अप्यहं जीवितं जह्यां त्वां वा सीते सलक्ष्मणाम् । 

नतु प्रतिज्ञां संश्रुत्य ब्राह्मणेभ्यो विशेषतः ॥


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