समाजीकरण और सहपाठियों का प्रभाव (Socialization and Peer Influences)
- बालक का विभिन्न विकास जैसे- शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक तथा सामाजिक अपने संगी-साथियों के साथ होता है। बच्चे का भाषागत विकास भी अपने संगी-साथियों के साथ अधिक तीव्र गति से साथ होता है। बच्चे के सहपाठी जैसे होते हैं, उनका भाषागत विकास, बोलने का ढंग, वाक्यों की रचना, शब्द भण्डार आदि सभी बच्चे के विकास पर प्रभाव डालते हैं। विद्यालय में बालक के साथ भिन्न-भिन्न समुदाय, जाति तथा धर्म के बालक होते हैं। प्रत्येक जाति तथा धर्म का अपना इतिहास होता है। बालक अपने संगी-साथियों का चुनाव करते समय जाति, धर्म, स्तर आदि को नहीं देखता है। वह विभिन्न संस्कृतियों के अपने सहपाठियों से उनके रीति-रिवाजों की जानकारी प्राप्त करता है। अपने मित्रों से विभिन्न धर्मों के त्यौहारों के विषय में तथा उनके इतिहास के बारे में जानता है। सभी समुदाय के वालकों से उनकी संस्कृति, रीति-रिवाज, प्रथाएँ तथा परम्पराएँ सीखता है, उनकी भाषा और बोलौ से परिचित होता है, उनके इतिहास तथा साहित्य से परिचित होता है। इस प्रकार उसके संगी-साथियों से भी उसका समाजीकरण होता है।
विद्यालयी संस्कृति (School Culture)
- विद्यालय में परम्परावादी अनुशासन है तथा कठोर तथा निरंकुश वातावरण है, जिसमें शिक्षक सर्वेसर्वा होता है तथा कक्षा अध्यापक कक्षा के सभी क्रियाकलापों का निर्णय लेता है तो ऐसी स्थिति में छात्र कोई रचनात्मक कार्य नहीं कर पाते हैं और छात्रों में विद्रोह के स्वर बढ़ने लगते हैं। छात्रों में निष्क्रियता की प्रवृत्ति अधिक बढ़ जाती है। छात्र अपने सहपाठियों से भी सहयोग नहीं व्यक्त करते हैं। इसके विपरीत यदि विद्यालय में प्रजातन्त्रात्मक वातावरण है। शिक्षक एवं छात्र मिलकर कक्षा में क्या कार्य करना है यह निश्चित करते हैं तो इस प्रकार की संस्कृति रखने वाले विद्यालयों में छात्र कक्षा में अन्य छात्रों के साथ भी मित्रवत् व्यवहार करते हैं। शिक्षक की अनुपस्थिति में भी वे एक-दूसरे के साथ मिलकर कार्य करते हैं। कुछ विद्यालयों में स्वतन्त्रता का वातावरण होता है। ऐसे विद्यालयों में आधुनिकता की संस्कृति होती है। इस प्रकार का वातावरण उन कक्षाओं में होता है जहाँ शिक्षक छात्रों को पूरी छूट दे देते है और कक्षा में पढ़ने वाले छात्रों के सुझावों को बहुत महत्व दिया जाता है। इस प्रकार की कक्षाओं में पढ़ने वाली छात्रों में परस्पर द्वेष का भाव अधिक पाया जाता है। इन छात्रों में रचनात्मकता भी नहीं पायी जाती है क्योंकि इनमें व्यवस्था का अभाव होता है।
शिक्षकों से सम्बन्ध (Relationship with Teachers)
- विद्यालय में एक छात्र का समाजीकरण तथा अधिगम किस प्रकार का होगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि शिक्षक के साथ छात्रों के सम्बन्ध किस प्रकार के हैं। एक शिशु के लिए जिसने अभी-अभी विद्यालय में प्रवेश लिया है के लिए शिक्षिका माँ का प्रतिस्थापन होती है। दूसरी ओर एक बालक के लिए शिक्षक एक वयस्क तथा सम्मान पाने वाला आदरणीय व्यक्ति है, जिसके व्यवहार का अनुकरण उसे करना चाहिए। अतः यह जरूरी है कि शिक्षको में प्रभावशाली आदर्श और अनुकरणीय विशेषताएँ होनी चाहिए। अधिकांशतः कक्षा का वातावरण शिक्षक की अभिवृत्तियों को अभिव्यक्त करता है। यदि कोई शिक्षक कक्षा में छात्रों को भयभीत करके शिक्षा देता है तो कक्षा के छात्रों का स्वभाव भी कठोर हो जाएगा तथा उनके व्यवहार में लचीलापन समाप्त हो जाएगा।
- बालक अनुशासित रहना माध्यम से अपने अभिभावकों तथा अध्यापकों से सीखता है। विद्यालयों में भी अनुशासन के माध्यम से समाज द्वारा मान्य नैतिक व्यवहारों को सिखाया जाता है। विद्यालय का अनुशासन बालक के व्यवहार तथा उसकी अभिवृत्तियों को महत्वपूर्ण ढंग से प्रभावित करता है। जब विद्यालय में प्रभुत्वशाली अनुशासन होता है तो ऐसे वातावरण के कारण छात्र में व्यक्तित्व सम्बन्धी अनेकों विशेषताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। जैसे-संदेह करना, शर्मीलापन, अति संवेदनशीलता, अन्र्तमुखी व्यक्तित्व अकेले रहने की प्रवृत्ति आदि। जब विद्यालय में प्रजातान्त्रिक प्रकार का अनुशासन होता है तो बालकों के व्यक्तित्व में भिन्न विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं। जैसे-सहयोग, आत्म-महत्व, प्रसन्नता आदि।