आक्रामकता से आप क्या समझते हैं? बच्चों में आक्रामकता के क्या कारण है?
हम सभी के व्यवहार में आक्रामकता कुछ न कुछ मात्रा में पाई जाती है। मनुष्य के सामाजिक व्यवहार का आक्रामकता एक अविभाज्य अंग है। आक्रामकता एक प्रकार का वह व्यवहार है, जिसका उद्देश्य दूसरों को नुकसान या चोट पहुँचाना होता है। आक्रामकता की अभिव्यक्ति में जब हथियारों का विशेष रूप से खतरनाक हथियारों का उपयोग किया जाता है तो आक्रामक व्यवहार हिंसा और विध्वंस का रूप धारण कर लेता है। इस दिशा में आक्रामक व्यवहार विनाशकारी हो जाता है। आक्रामकता का यह रूप मानव जाति के लिए एक बहुत बड़ी समस्या और चुनौती है इसका नियंत्रण हर प्रकार से आवश्यक है।
आक्रामकता का अर्थ
बैरन और बाइनरी ने आक्रामकता को परिभाषित करते हुए लिखा है कि, "आक्रामकता वह व्यवहार है, जिसका उद्देश्य दूसरे जीवित प्राणी या प्राणियों को नुकसान पहुँचाना या चोट पहुँचाना है, जिससे दूसरा प्राणी बचने का प्रयास करता है।"
वार्चेल और कूपर के अनुसार, "आक्रामकता वह व्यवहार है जिसका उद्देश्य विशिष्ट लक्ष्य को हानि पहुँचाना है।"
- आक्रामकता की यद्यपि, कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है फिर भी कहा जा सकता है कि आक्रामकता की प्रकृति बहुत कुछ बैरन और बाइनरी की परिभाषा से स्पष्ट हो जाता है। इस परिभाषा को ध्यान से देखा जाए तो कहा जा सकता है कि आक्रामकता एक व्यवहार है न कि संवेग, आवश्यकता या प्रेरणा है। आक्रामकता के अभिव्यक्ति में संवेग, आवश्यकता और प्रेरणा की उपस्थिति हो भी सकती है और नहीं भी हो सकती है।
- आक्रामकता की परिभाषा में दूसरी विशेषता यह है कि आक्रामक व्यवहार करने वाले व्यक्ति लक्ष्य व्यक्ति को कष्ट या चोट पहुँचाना चाहता है। आक्रामक व्यवहार हमेशा जीवित प्राणी के ही प्रति प्रदर्शित होता है। यदि एक व्यक्ति घर की चीजों को फेंक रहा है, कप-प्लेट, कुर्सी-मेज, फर्नीचर आदि फेंक कर अपने क्रोध की अभिव्यक्ति कर रहा है तो उसका व्यवहार तब तक आक्रामक नहीं कहलाएगा जब तक कि किसी जीवित प्राणी को हानि या चोट न पहुँचे।
- आक्रामक व्यवहार के मुख्यतः दो विशिष्ट प्रकार प्रचलित हैं। प्रथम प्रकार है-शारीरिक आक्रामक व्यवहार-यह वह आक्रामक व्यवहार है, जिसमे व्यक्ति शारीरिक बल का उपयोग करके दूसरे को नुकसान पहुँचाना चाहता है। उदाहरण के लिए, हाथ-पैरों से मारपीट कर सकता है, घूंसा चला सकता है, दाँतों से काट सकता है तथा साथ में कुछ अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग कर सकता है। दूसरा प्रकार है-मौखिक आक्रामक व्यवहार-यह वह आक्रामक व्यवहार है, जिससे व्यक्ति के आक्रामक व्यवहार की प्रधानता रहती है। उदाहरण के लिए, आक्रामक व्यवहार में वह दूसरे व्यक्ति की कटु आलोचना, छींटा-कसी, बेइज्जती और धमकी आदि जैसे व्यवहार सम्मिलित हैं।
- आक्रामक व्यवहार के उपर्युक्त के अतिरिक्त दो अन्य विशिष्ट प्रकार भी हो सकते हैं। प्रथम प्रकार हैं-प्रत्यक्ष आक्रामक व्यवहार-यह वह आक्रामक व्यवहार है, जिसमें लक्ष्य व्यक्ति के प्रति प्रत्यक्ष रूप से आक्रामक व्यवहार किया जाता है। दूसरा प्रकार है-अप्रत्यक्ष आक्रामक व्यवहार-यह वह आक्रामक व्यवहार है जिसमें लक्ष्य व्यक्ति के प्रति अप्रत्यक्ष रूप से आक्रामक व्यवहार किया जाता है।
बालकों में आक्रामकता
पूर्व बाल्यावस्था में लगभग सभी बच्चों का व्यवहार कुछ न कुछ मात्रा में आक्रामक होता है। लगभग पाँच वर्ष की अवस्था तक आक्रामकता का व्यवहार चरम सीमा तक पहुँच जाता है। इसके बाद इस व्यवहार की तीव्रता और आवृत्ति, दोनों कम होने लगती है। आक्रामक व्यवहार बच्चों में अनेक कारणों से उत्पन्न होता है-
(i) माता-पिता का तिरस्कारपूर्ण व्यवहार।
(ii) अधिक ध्यान आकर्षित करने की क्षमता।
(iii) ईर्ष्या उत्पन्न होना।
(iv) बालक या बड़े बच्चे के आक्रामक व्यवहार से तादात्मीकरण।
(v) बालक की गलतियों के लिए उसे मार-पीटकर दण्डित किया जाना।
(vi) पारिवारिक तनाव के कारण बालक में उत्पन्न संवेगात्मक तनाव ।
(vii) अपनी उच्चता प्रदर्शित करने की इच्छा।
(viii) उसके आवश्यक लक्ष्य में व्यवधान।
इस आयु का बालक जब आक्रामकता का व्यवहार अपनाता है, तब वह हाथ-पैर पटक सकता है। जिस व्यक्ति के प्रति आक्रामक व्यवहार अपनाता है। उससे मार-पीट कर सकता है। लगभग पाँच वर्ष की अवस्था से उसका आक्रामकता सम्बन्धी व्यवहार प्रत्यक्ष की अपेक्षा अप्रत्यक्ष होता जाता है। अध्ययनों में यह देखा गया है कि बालक आक्रामक व्यवहार बहुधा परिचित बच्चों के प्रति ही अधिक प्रदर्शित करता है।
बच्चों की आक्रामकता को रोकने के उपाय
बच्चों की आक्रामकता को निम्नलिखित तरीके अपनाकर रोका जा सकता है-
बच्चों की बातों को ध्यानपूर्वक सुनें-
- आज के भागमभाग वाले समय में माता-पिता के पास अपने बच्चों की बातों को सुनने का समय नहीं है, जबकि ये बेहद जरूरी है। उनकी बातों को ध्यानपूर्वक सुनें, उनकी समस्याओं को आराम से समझे और बिना गुस्सा हुए अपनी बात कहें। बच्चों को नकारात्मक (निगेटिव) बोलने का मौका नहीं दें। ठीक तरह से समस्या को सुलझाएँ।
बच्चों को डाँटने से बचें-
- ऐसे बच्चे को झिड़क देना, उसे डांटना या सजा देना बहुत आसान है। लेकिन जरूरी तो यह है कि इस दौरान आप सोच-समझकर रिएक्ट करें। यह ध्यान रखिए कि आपका बच्चा हर समय आपसे सीखता रहता है। पहले से ही नाराज और गुस्सैल बच्चे पर कभी नहीं चीखना चाहिए। इससे बच्चा और चिड़चिड़ा हो सकता है और संभव है कि वह कुछ ऐसा कर जाए जिसकी आशा आपने न की होगी।
जहाँ तक हो सकें शान्त रहें-
- आपका बच्चा चाहे जितना भी चीख-चिल्ला रहा हो, वे तभी रिलैक्स करेंगे। जब आप रिलैक्स करेंगी। भले ही आपको उनके इस व्यवहार पर बहुत गुस्सा आ रहा हो। जरूरी यह है कि आप शान्त रहें। संभव हो तो उन्हें उनके कमरे में भेज दीजिए। यदि वह आपकी बात नहीं मान रहा है तो खुद अपने कमरे में चले जाइए।
अपनी इमोशंस और इच्छाओं को जाहिर करें-
- अपने इमोशंस और इच्छाओं को छिपाने की बजाय जाहिर कीजिए। यदि आप किसी बात पर खुश हैं तो उसे सेलिब्रेट कीजिए। किसी बात से दुःखी हैं तो उसे भी जाहिर कीजिए। यदि किसी बात से डर रही हैं तो उसे भी जाहिर करना बेहतर होगा। जरूरी यह है कि आपके बच्चे जानें कि हर तरह की फीलिंग्स आना स्वाभाविक है। आप उन्हें सिखाएँ कि इमोशंस को कैसे कंट्रोल किया जाता है।
इनाम दें-
- कुछ माता-पिता का मानना है कि इनाम देन घूस के समान है। लेकिन यह जरूरी भी है। हालाँकि इसकी अपनी सीमा होनी चाहिए। छोटे बच्चों के साथ यह बड़े बच्चों के लिए भी आवश्यक है, जो अपनी आक्रामक भावनाओं को रोक नहीं पा रहे। यदि आपका बच्चा कुछ अच्छा करता है तो उसे दोस्तों के घर जाने की इजाजत जैसे उपहार दीजिए।
डायरी बनाएँ और समस्याओं को उसमें नोट करें-
- सम्भव है कि सुबह-सुबह उसे उठाने से वह चिढ़ जाता हो या टीवी पर कोई फेवरेट कार्टून वह न देख पाए तो भी चिल्ला उठता हो। इसलिए जरूरी है कि आप जानें कि आपके बच्चे को कौन-सी बात चिड़चिड़ा बना देती है। यहाँ आपका यह काम है कि आप उस परिस्थिति से अपने लाड़ले को बचाएँ। यदि आप इस पर गौर नहीं कर पा रहे हैं तो एक डायरी बना लें और उसमें रोजाना बच्चे के एग्रेसिव (आक्रामक) होने के समय और स्थिति को नोट करें। इसके बाद उस परिस्थिति से बच्चे को बचाने के बारे में सोचें।
खुद बनें रोल मॉडल-
- खुद रोल मॉडल बनिए। आप जो काम खुद नहीं कर सकती हैं तो उसकी आशा किसी और से नहीं कीजिए, खासकर अपने बच्चे से। आपके द्वारा कही गई बातों का बच्चे अपने हिसाब से मतलब निकाल लेते हैं। इसलिए न केवल अपनी हरकतों पर निगरानी रखिए, बल्कि अपने शब्दों पर भी कंट्रोल कीजिए। इससे बच्चे यह जानेंगे कि उन्हें खुद को कैसे जाहिर करना है, फिर चाहे कोई अच्छी बात कहनी हो या बुरी। यदि कोई बीमार है तो उससे मिलने जरूरी जाएँ, साथ में फल लेकर जाएँ। अपने बच्चे को साथ लेकर जाएं, इससे आपका बच्चा सीखेगा कि उसे कैसे दूसरों के साथ व्यवहार करना है। आप जिस तरह का बच्चा चाहते हैं, पहले खुद उस तरह का बनने की कोशिश करें।
सजा देने से बचें-
- आक्रामक व्यवहार वाले बच्चों को सजा देने से बचें। यदि आप बच्चे पर ध्यान नहीं देंगे तो वह भविष्य में दोबारा कोई हरकत करेगा और आक्रामक रवैया अपनायेगा। इस तरह से बच्चों के साथ विशेष रूप से पेश आना चाहिए।