भक्तिकालीन युग एवं परिवेश | Bhaktikalin Yug me Parivesh

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भक्तिकालीन युग एवं परिवेश

भक्तिकालीन युग एवं परिवेश | Bhaktikalin Yug me Parivesh


भक्तिकालीन युग एवं परिवेश 

युगीन परिस्थितियाँ साहित्यिक प्रवृत्तियों को निर्मित करती हैउन्हें प्रेरितप्रभावित करती हैं। रचनाकार जिस युग एवं परिवेश की उपज होता है। वह उससे उदासीन नहीं रह सकता। वह रचना में अपने युग के अभिव्यक्त ही नहीं करताबड़ा रचनाकार युगीन सीमाओं का अतिक्रमण कर अपने युग को नए मूल्य-माननया स्वप्न संकल्प भी देता है। पूर्व मध्यकाल राजनीतिक सत्तासामाजिक अवस्थासांस्कृतिक परिवेश में बड़े परिवर्तनों और उलट-फेर का काल है। मुसलमानों के आक्रमण एवं मुसलमानी सत्ता की स्थापना से समाज पर एक गहरा प्रभाव पड़ानयी आर्थिक-सामाजिक स्थितियाँ निर्मित हुई जो भक्ति आंदोलन के उदय में सहायक हुई। अतः भक्ति कालीन कविता को समझने के लिए तत्कालीन राजनीतिक आर्थिकसामाजिकसांस्कृतिक परिस्थितियों का परिचय आवश्यक है। आइए हम क्रमवार इन्हें देखे

 

1 भक्तिकालीन युग में राजनीतिक परिस्थिति

 

भक्तिकाल राजनीतिक दृष्टि से तुगलकवंश से लेकर मुगल बादशाह शाहजहाँ के शासन तक का काल है। दसवीं शताब्दी में पश्चिममोत्तर भारत में तुर्कों के कई आक्रमण हुएतत्कालीन भारतीय राजाओं की आपसी फूट एवं प्रतिस्पर्धा के कारण धीरे-धीरे मुसलमानों का राज उत्तर भारत में स्थापित हो गया। पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच 1192 में लड़े गए तराइन के युद्ध में गोरी की विजय होती है। पृथ्वीराज उस समय का सबसे प्रतापी राजा था। भारतीय इतिहास में यह युद्ध काफी निर्णायक माना जाता हैइस युद्ध ने भारत में तुर्कों की सत्ता स्थापित करने की जमीन तैयार कर दी। 1194 के चंदावर युद्ध में कन्नौज के शासक जयचंद को भी गोरी ने परास्त कर दिया। अब तुर्कों की ताकत से टकराने वाला कोई नहीं था । गोरी विजित भारतीय क्षेत्रों का शासन अपने गुलाम सेनापतियों को सौंपकर वापस गजनी लौट गया। 1206 में तुर्की गुलाम कुतबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में गुलाम वंश की नींव डाली। उधर गजनी में चल्दोज गोरी का उत्तराधिकारी बनाउसने दिल्ली पर अपना दावा पेश किया। तभी से दिल्ली सल्तनत ने

 

गजनी से अपना सम्बन्ध विच्छेद कर लिया। इससे मध्य एशिया की राजनीति से अलग दिल्ली सल्तनत का अपना स्वतंत्र विकास हुआ। तुर्कों की अपनी सत्ता स्थापित करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। उन्हें तुर्की अमीरों के आतंरिक विरोधराजपूत राजाओं और विदेशी आक्रमण से खतरा था। किंतु अन्ततः सभी बाधाओं पर काबू पा लिया गया और एक सुदृढ़ और विस्तृत तुर्की राज्य बना। बलबन गुलाम वंश का सबसे प्रभावशाली शासक सिद्ध हुआ। प्रसिद्ध कवि अमीर खुसरो एवं अमीर हसन उसी के दरबार में रहते थे।

 

1290 से 1320 तक दिल्ली सल्तनत पर खिलजी वंश का शासन रहा । अदाउद्दीन खिलजी (1296-1316) ने अपनी आक्रामक नीति से जहाँ दिल्ली सल्तनत को दक्षिण तक फैलाया वहीं बाजार नियंत्रणराजस्व व्यवस्था के पुर्नगठन द्वारा शासन व्यवस्था को भी मजबूती प्रदान किया। अमीर खुसरों का उसका राजाश्रय प्राप्त था। 1320 में गयासुद्दीन तुगलक ने तुगलक वंश की नींव डाली। गयासुद्दीन के पश्चात् मुहम्मद बिन तुगलक उत्तराधिकारी बना। मध्यकालीन सुल्तानों में वह सर्वाधिक योग्यशिक्षित और विद्वान था। अपनी दो योजनाओं (1) दिल्ली से दौलताबाद राजधानी परिवर्तन (2) सांकेतिक मुद्रा का प्रचलन के कारण वह इतिहास में प्रसिद्ध है। अफ्रीकी यात्री इब्नबतूता उसी के शासन काल में भारत आया था। उसी के शासनकाल में विजयनगर और बहमनी राज्य नामक दो स्वतंत्र राज्य अस्तित्व में आते हैं। मुहम्मद बिन तुगलक के पश्चात् फिरोज तुगलक दिल्ली सल्तनत की गद्दी पर बैठा। वह अपने सुधार निर्माण कार्यों के लिए प्रसिद्ध हैउसने लगभग 300 नये नगरों की स्थापना कीजिनमें हिसारफिरोजाबादफतेहाबादजौनपुरफिरोजपुर आदि प्रमुख हैं। तुगलक वंश के पश्चात् 1398 में तैमूर का आक्रमण होता हैउसने दिल्ली को तहस-नहस कर दिया। दिल्ली सल्तनत पर क्रमशः सैय्यद और लोदी वंश का शासन रहा। अंतिम लोदी सुल्तान इब्राहिम शाह लोदी के समय में पंजाब के शासक दौलत खां लोदी के निमंत्रण पर बाबर ने भारत पर आक्रमण। पानीपत के प्रथम युद्ध 1526 ई. में उसने इब्राहिक शाह लोदी को पराजित कर मुगल वंश की नींव डाली। पानीपत के पश्चात् खानवाचंदेरी और घाघरा के युद्धों में विजय हासिल कर उसने मुगल राज्य को सुरक्षित एवं सुदृढ़ बना दिया। बाबर एक सफल सेनानायकसाम्राज्य निर्माता ही नहीं अपितु एक साहित्यकार भी थाउसने 'बाबरनामानाम से अपनी आत्मकथा लिखी। 1530 में बाबर की मृत्यु के पश्चात् उसका पुत्र हुमायूँ उत्तराधिकारी बना। उसका शासनकाल संकटों और चुनौतियों से भरा रहा। 1540 में बिलग्राम युद्ध में अफगान वंशीय शेरशाह सूरी ने हुमायूँ को पराजित कर आगरादिल्ली पर कब्जा कर लिया। हुमायूँ को सिंध भागना पड़ा। जहाँ उसे 15 वर्षों तक निर्वासित जीवन जीना पड़ा। शेरशाह एक कुशल योद्ध और शासक था। कुशल प्रशासन और केन्द्रीकृत व्यवस्था द्वारा उसने व्यापार को बढ़ावा दियाउसने ग्रांड ट्रक रोड की मरम्मत करवाईपाटिलपुत्र को पटना के नाम से पुनः स्थापित कियाडाक प्रथा का प्रचलन करवाया। 1545 में कालिंजर के किले को जीतने के क्रम में उसका असामयिक निधन हो गया। मौका पाकर 1555 में हुमायूँ पंजाब के शूरी शासक सिकंदर को पराजित कर पुनः दिल्ली पर कब्जा करने में सफल रहा। 1556 में पुस्तकालय की सीढ़ियों से गिरकर उसकी मृत्यु हो गई। उसी वर्ष पंजाब के कलानौर में 13 वर्ष की अल्पायु में हुमायूँ के पुत्र अकबर का राज्याभिषेक हुआ। 1556-60 तक बैरम खाँ उसका संरक्षक रहा। अकबर के शासनकाल में मुगल साम्राज्य भलीभाँति भारत में स्थापित हो गया। उसका साम्राज्य पश्चिम में अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में असम तकउत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में अहमद नगर तक विस्तृत था। वह दूरदर्शीउदार और साहित्य कला का संरक्षक शासक था। अकबर के पश्चात् जहाँगीर ( 1605-1627) और शाहजहाँ (1628-58) बादशाह बनते हैं। इनका शासनकाल प्रायः शांतिपूर्ण रहा यह व्यापार वाणिज्य साहित्यकलासंस्कृति के उन्नति का काल था। सल्तनत काल में विजयनगरबहमनी राज्यजौनपुरकाश्मीर बंगालमालवागुजरातमेवाड़खानदेश स्वतंत्र राज्य भी थेकालांतर में इन पर मुगल साम्राज्य का आधिपत्य हो गया।

 

2 भक्तिकालीन युग में आर्थिक परिस्थिति 

सल्तनत काल एवं मुगल काल में स्थिर एवं केन्द्रीकृत व्यवस्था के कारण अर्थव्यवस्था में प्रगति हुई। कुछ अपवादों को छोड़ कर यह कालखण्ड प्रायः शांतिपूर्ण था। शासन व्यवस्था सुव्यवस्थित थीराजस्व वसूली की एक नियमित व्यवस्था थी। सुचारू प्रशासन के लिए मुगल साम्राज्य का बँटवारा सूबों मेंसूबों का सरकार मेंसरकार का परगना या महाल मेंमहाल का जिला या दस्तूर मेंदस्तूर ग्राम में बँटे थे। केन्द्रीय प्रशासन के साथ स्थानीय शासन व्यवस्था भी थी। ये परिस्थितियाँ आर्थिक प्रगति में सहायक सिद्ध हुई। अलाउद्दीनशेरशाह सूरीअकबर ने भूराजस्व प्रणाली को व्यवस्थित बनाया। अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थी । कृषि के विकास के लिए अलग से कृषि विभाग (दीवाने को ही) की स्थापनाउत्पादकता के हिसाब से भूमि का वर्गीकरणसिंचाई हेतु नहरों का निर्माण कराया गया।

 

इस काल में आगरापटनादिल्लीजौनपुरहिसार आदि कई नए नगरों का उदय हुआ। इससे कामगारकारीगर वर्ग को रोजगार के लिए अवसर मिले और उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। नए नगर व्यापार वाणिज्य के केन्द्र के रूप में भी विकसित हुए। तुर्कों के आगमन से भारत में कई नयी तकनीकि भी आईजैसे चरखाधुनकीरहतकागजचुम्बकीय कुतुबनुमासमयसूचक उपकरणतोपखाना आदि। इसका प्रभाव उद्योग-धंधे एवं व्यापार पर पड़ा। वस्त्र उद्योगधातु खननहथियार निर्माणकागज निर्माणइमारती पत्थर का कामआभूषण निर्माण उस समय के प्रमुख उद्योग धंधे थे। आगरा नील उत्पादन के लिएसतगाँव रेशमी रजाईयों के लिएबनारस सोनेचाँदी एवं जड़ी काम के लिएढाका मलमल के लिए प्रसिद्ध था।

 

इस काल में व्यापार-वाणिज्य की खूब उन्नति हुई । व्यापक पैमाने पर नयी सड़कों का निर्माण एवं पुरानी सड़कों की मरम्मत कराया गया। सड़कों के किनारे सराय बनवाये गए। राहगीरों एवं व्यापारियों की सुरक्षा का प्रबंध किया गया। इसका सीधा प्रभाव व्यापार पर पड़ा। देशीय व्यापार के साथ विदेशी व्यापार की स्थिति भी अच्छी थी। यहाँ से सूती एवं रेशमी वस्त्रचीनीचावलआभूषण आदि का निर्यात होता था । देवल अंतर्राष्ट्रीय बंदरगाह के रूप में प्रसिद्ध था।

 

निस्संदेह मध्यकाल में उद्योगव्यापार में प्रगति हुईकृषि में सुधार हुआ। किंतु गाँवों में किसानों की स्थिति अच्छी नहीं थी । लगान और अकाल के कारण उन्हें काफी मुसीबतों सामना करना पड़ता था। अकाल और भूख से बेहाल किसान की पीड़ा को तुलसी ने व्यक्त किया है- 'कलि बारहि बार दुकाल परै। बिनु अन्न दुखी सब लोग मरे।उस समय यदि एक वर्ग खुशहाल था तो दूसरा वर्ग भूखगरीबीबेकारी से त्रस्त थातुलसी लिखते हैं

 

खेती न किसान को भिखारी को न भीख बलि

बनिक को बनिजन चाकर को चाकरी । 

जीविका विहीन लोग सीघमान सोच बस

कहै एक एकन सों 'कहाँ जाई का करी ॥

 

3 भक्तिकालीन युग में सामाजिक स्थिति

 

इस काल में हिंदू समाज वर्णों और जातियों में विभक्त था। सामाजिक व्यवस्था में ब्राह्मणों का सर्वोच्च स्थान थाशूद्रों की निम्न स्थिति थी । जातिगत श्रेष्ठता एवं छुआछूत की भावना तत्कालीन परिवेश में व्याप्त थी। मुसलमानों के आक्रमण एवं उनकी सत्ता स्थापित से परंपरागत भारतीय समाज को एक धक्का लगा। सामंतों एवं पुरोहितों की स्थिति कुछ कमजोर हुई। एक तरफ जहाँ परम्परागत सामाजिक संरचनाको बचाये रखने के लिए वर्णाश्रमधर्म की मर्यादा का कठोरता से पालन करने पर जोर दिया गयावहीं दूसरी तरफ समानता और आप भाईचारे पर आधारित इस्लाम के प्रति हिंदू समाज की निचली जातियाँ आकर्षित हुई। बहुतों ने धर्मांतरण कर इस्लाम स्वीकार कर लिया। धर्मांतरण स्वेच्छा में भी हुआ और मुस्लिम शासकों द्वारा बलात् भी कराया गया। ऊँच-नीच की भावना सिर्फ हिंदू समाज में ही नहीं मुस्लिम समाज में भी विद्यमान थी। अफगानीतुर्कीईरानी एवं भारतीय मुसलमानों में नस्लगत श्रेष्ठता एवं प्रतिस्पर्धा की भावना थी। मुसलमान शासक भारत में आक्रांता के रूप में आए थेहिंदुओं में उनके प्रति अलगावविरोधशंका का भाव होना स्वाभाविक था। किंतु दोनों कौमों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान एवं सामंजस्य भी बढ़ रहा था। सूफियों का इस दृष्टि से महत्वपूर्ण योगदान है। मुस्लिम शासकों एवं राजपूत शासकों में वैवाहिक संबंध भी स्थापित हुए।

 

उस काल में सामान्यतः संयुक्त परिवार का प्रचलन था। तत्कालीन समाज में स्त्रियों की बहुत अच्छी नहीं थी। हिन्दू समाज में बाल विवाहबहुपत्नी प्रथापर्दा प्रथासती प्रथा स्थिति प्रचलित थी। मुस्लिम समाज में भी स्त्रियों की स्थिति हिंदू स्त्रियों की तरह ही थी । विदेशी यात्रियों के विवरणों से पता चलता है कि उस समय दास प्रथा का भी प्रचलन था।

 

4 भक्तिकालीन युग में सांस्कृतिक स्थिति

 

संस्कृति किसी देश समाज की मूलभूत प्रवृत्तियों उसकी सौन्दर्यबोधात्मक एवं मूल्यबोधों क्रियाकलापों-उपलब्धियोंउसके आचार-विचार का समन्वित रूप हैं। धर्मकलासाहित्यसंगीतशिल्प आदि संस्कृति के विभिन्न तत्व हैं। मध्यकालीन भारतीय समाज धर्मप्राण समाज है। हिंदूमुस्लिमबौद्धजैनसिक्ख उस समय प्रचलित प्रमुख धर्म थे। बहुसंख्यक जनता हिंदू धर्मावलंबी थी। हिंदू धर्म भी शैवशाक्तवैष्णव आदि कई संप्रदायों में विभक्त था। इन विभिन्न संप्रदायों में परस्पर संघर्ष एवं सामंजस्य दोनों स्थितियाँ दिखलाई पड़ती हैं। मूर्तिपूजातीर्थाटनअवतारवादबहुदेव उपासनागौ एवं ब्राह्मण का सम्मानशास्त्रों के प्र श्रद्धाकर्मफलवादस्वर्ग-नरक की अवधारणाआदि हिंदू धर्म एवं समाज की विशेषता थी । पश्चिम भारत में जैनियों की बहुलता थीबौद्ध धर्म को मानने वाले पूर्वी भारत में ज्यादा थे। बौद्ध धर्म तंत्रयानमंत्रयानब्रजयान आदि शाखाओं में विभक्त थाउसका मूल स्वरूप विकृत हो गया था और वह कई प्रकार की रूढ़ियोंकर्मकाण्डोंअंधविश्वासों का शिकार हो गया था। फलतः उसका पहले जैसा प्रभाव और आकर्षण नहीं रह गया था। सिद्धों और नाथों का तत्कालीन समाज पर गहरा असर था। धर्म का जहाँ तक शास्त्रीय रूप थावहीं उसका एक लोकवादी रूप भी था स्थानीय देवताओं की पूजाजादू-टोना आदि इसी के अंतर्गत आता है। मध्यकाल में साधनाओं एवं संप्रदायों की एक बाढ़ सी दिखलाई पड़ती है। धर्म के आवरण में मिथ्याचारअनाचारव्यभिचार भी पनप रहा था, ' धर्मक्षेत्र में एक अराजकता-सी स्थिति उत्पन्न हो गयी थी। इन्हीं परिस्थितियों के बीच भक्ति आंदोलन का उदय और विकास होता हैजिसने भारतीय समाज को काफी गहरे तक प्रभावित किया।

 

इस काल में साहित्यकलावास्तुसंगीत में प्रगति दिखलाई पड़ती है । इस्लामी एवं भारतीय संस्कृति के मेल से कला की नयी शैलियों का जन्म होता है।

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