कांट का नीतिशास्त्र- निरपेक्ष आदेश का सिद्धान्त' या कर्त्तव्य मूलक सिद्धान्त | Kant Ka Niti Shashtra

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कांट का नीतिशास्त्र- निरपेक्ष आदेश का सिद्धान्त' या कर्त्तव्य मूलक सिद्धान्त 

कांट का नीतिशास्त्र- निरपेक्ष आदेश का सिद्धान्त' या कर्त्तव्य मूलक सिद्धान्त | Kant Ka Niti Shashtra

कांट का नीतिशास्त्र

 

  • इसके पहले स्वार्थवादसुखवाद एवं उपयोगितावाद के रूप में जिन नैतिक विचारों का उल्लेख किया गया हैवे सभी परिणाम सापेक्ष एवं इंद्रियानुभव पर आधारित है। इन सभी सिद्धान्तों में एक बात पर सहमति दिखाई देती है कि मनुष्य के वही कर्म नैतिक माने जा सकते है जिनसे मनुष्य को 'सुख की प्राप्ति हो और दुःख का निषेध होदूसरे शब्दों में ऐसे सभी कर्म जो मनुष्य के लिए उपयोगीहोउसे सुख प्रदान करने में सहायक होउन्हें ही नैतिक दृष्टि से उचितया 'शुभमाना जा सकता है। कांट परिणाम सापेक्ष नैतिक दृष्टि का निषेध करते है और इसके स्थान पर परिणाम निरपेक्ष नैतिक दृष्टि को सामने रखते हैं। कांट के सिद्धान्त को निरपेक्ष आदेश का सिद्धान्तया कर्त्तव्य मूलक सिद्धान्त भी कहा जाता है।

 

  • कांट ने मानवीय ज्ञान के स्रोतसीमा एवं वैधता के प्रश्न से अपने चिंतन का प्रारम्भ किया और संश्लेषणकर्त्ताके रूप मनुष्य के वास्तविक स्वरूप- आत्मा की विवेचना किया। मनुष्य को अपने स्वरूप का बोध ज्ञानात्मक प्रक्रिया के निष्कर्ष-संश्लेषणकर्त्ता के रूप में होता है और उसी क्षण उसे इंद्रिय प्रदत्तों के संश्लेषित स्वरूप - वस्तु का ज्ञान होता है। ठीक इसी तरह मनुष्य के कर्त्तव्यों का निर्धारण करने के पूर्व कांट यह जानना चाहते है कि ऐसी कौन सी वस्तु है जो स्वयं में शुभ एवं वांछनीय है तथा जिसकी शुभता देशकालपरिस्थितियोंमनुष्य की भावनाओं या इच्छाओं पर निर्भर नहीं है दूसरे शब्दों में जो सर्वत्र एवं सर्वदा निरपेक्षतः शुभ है। कांट के अनुसार 'शुभ संकल्पही निरपेक्ष एवं बिना किसी शर्त के शुभ होता है।

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