चित्त वृत्ति के भेद -विपर्यय वृत्ति ,विकल्प वृत्ति, निद्रा वृत्ति,स्मृति वृत्ति | Chitt Vriti Ke Prakar

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 चित्त वृत्ति के भेद -विपर्यय वृत्ति 

चित्त वृत्ति के भेद -विपर्यय वृत्ति ,विकल्प वृत्ति, निद्रा वृत्ति,स्मृति वृत्ति | Chitt Vriti Ke Prakar

चित्त वृत्ति के भेद -विपर्यय वृत्ति ,विकल्प वृत्ति, निद्रा वृत्ति,स्मृति वृत्ति


प्रमाण वृत्ति के बारे में पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें 

 

विपर्यय वृत्ति 

विपर्यय का तात्पर्य मिथ्याज्ञान से है। मिथ्याज्ञान को ही विपर्यय कहा जाता है। मिथ्याज्ञान अर्थात् झूठाज्ञान । महर्षि पतंजलि ने विपर्यय का वर्णन इस प्रकार किया है- 

'विपर्ययोमिथ्याज्ञानमतद्रूपप्रतिष्ठम् ।' 1 / 8 पा० योसू० 


  • अर्थात् विपर्यय मिथ्याज्ञान है। जो उस पदार्थ के रूप में प्रतिष्ठित नहीं है। अर्थात् किसी भी वस्तु को देखकर या सुनकर हम उस वस्तु से भिन्न किसी अन्य वस्तु को समझ  लेते है। यही विपर्यय वृत्ति हैं। जैसे अन्धकार के कारण रस्सी को सॉप समझ लेना तथा सीपी में चाँदी की भ्रान्ति हो जाना तथा मरूस्थल में जल की भ्रान्ति हो जानाजिसे मृगमरीचिका कहते हैआदि विपर्यय वृत्ति को अविद्या भी कहते है। 
  • जब तक मनुष्य देह आदि को आत्मा समझता रहता है तब तक वह भविष्य में डूबा रहता है। इस अनित्य संसार को नित्य समझता रहता है। योग साधना द्वारा ही इस अविद्या का नाश होता है।

 

  • मनुष्य जब इस मिथ्याज्ञान को अपना कर योग साधना की ओर प्रवृत होता है जब यह मिथ्याज्ञान मन में प्रसन्नता उत्पन्न करें तब यह अक्लिष्ट विपर्यय वृत्ति है। जैसे मिट्टी के पार्थिव में प्राण प्रतिष्ठित शिव का रूप देख कर पूजा अराधना करना। जिससे चित्त शान्त व प्रसन्न होता है। वही जब यह वृत्ति संसार व भोगो की तरफ प्रवृत होती है तब वह क्लिष्ट वृत्ति होती है। जिससे मन में दुख व भय उत्पन्न होता है।

 

विकल्प वृत्ति

 

किसी वस्तु के उपस्थित न रहते हुए भी शब्द ज्ञान मात्र से उत्पन्न चित्त वृत्ति को विकल्प कहते है। योगदर्शन में विकल्प का वर्णन करते हुए कहा है-

 

'शब्द ज्ञानानुपाती वस्तुशून्यो विकल्पः ।' 1 / 9 पा० यो० सू०

 

अर्थात् वस्तु के ना रहते हुए भी शब्द ज्ञान मात्र से उत्पन्न चित्त वृत्ति को 'विकल्पकहते है।

 

  • विकल्प वृत्ति में शब्दो की प्रमुखता होती है। शब्दो को ही प्रमाण मान लेते है। शब्दो से उत्पन्न ज्ञान तथा उसके पीछे चलने का जिसका स्वभाव है। जबकि वह वस्तु उस स्थान पर नही होती है। तथा शब्दो को सुनकर ज्ञान प्राप्त होता है। वही विकल्प वृत्ति है। विकल्प वह वृत्ति हैजब कोई वस्तु के ना होने पर शब्द ज्ञान मात्र से जो कल्पना कर सकते है । प्रायः देखा जाता है कि संसार के कोई भी कार्य करने से पहले कल्पना ही होती है। सभी वैज्ञानिक उपलब्धियाँसंगीत व कविताएं आदि मनुष्य की कल्पनाएं है। यह कल्पनाएं चित्त की एक वृत्ति है। इन कल्पनाओं का उपयोग सकारात्मक कार्यों में किया जाए तब यह अक्लिष्ट वृत्ति है।

 

  • जैसे साधक ने ईश्वर का स्वरूप कभी देखा नही है। साधक ग्रन्थों को पढ़ कर व सुनकर ईश्वर के स्वरूप कीउसके आलौकिक स्वरूप की कल्पना कर ध्यान लगाता है। तथा ध्यान के द्वारा क्लेशो के नाश के साथ-साथ उसे आनन्द की प्राप्ति होती है। ऐसा विकल्प अक्लिष्ट कहलाता है। यदि मनुष्य का मन काल्पनिक उड़ानो को भर कर भोगविलाससंसारिक राग में लगता रहता हैजो कि दुख का हेतु बनता है। यह विकल्प वृत्ति क्लिष्ट है. 

 

निद्रा वृत्ति -

 

  • जाग्रत तथा स्वप्नावस्था की वृत्तियों के अभाव की जो प्रतीति करती हैवह वृत्ति निद्रा है। निद्रा एक प्रकार की वृत्ति ही है। कई विद्वान व आचार्य निद्रा को वृत्ति नही मानते है। परन्तु योग में आचार्यों ने निद्रा को वृत्ति ही माना है। सांख्य के मतानुसार प्रमाणविपर्ययविकल्प के समान निद्रा भी एक वृत्ति है। 


निद्रा वृत्ति का स्वरूप महर्षि पतंजलि ने इस प्रकार प्रस्तुत किया है - 

'अभाव प्रत्ययालम्वनावृत्तिनिद्रा ।' 1 / 10 पा० योसू० 

  • अर्थात् अभाव की प्रतीति को विषय करने वाली वृत्ति निद्रा है। यहाँ पर ज्ञान के अभाव की प्रतीति रहती है। इन्द्रियों से होने वाले ज्ञान का उस अवस्था में अभाव रहता है। यह वह सुषुप्ति अवस्था हैजिसे जाग्रत अवस्था और स्वप्न अवस्था में इन्द्रिय ज्ञान होते रहते है। ऐसा ज्ञान सुषुप्ति अवस्था में नही होता हैं। अतः निद्रा नामक वृत्ति को सुषुप्ति अवस्था कहा जाता है।

 

  • इस अवस्था को लोक व्यवहार में गाड़ी निद्रा या गहरी नींद कहते हैं। क्योंकि जब व्यक्ति निद्रा से जागता है तब वह कहता है कि आज मैं सुखपूर्वक सोया। निद्रा में भी उसे यह ज्ञान है कि वह सुखपूर्वक सोया । यह ज्ञान निद्रा की अवस्था में होता है तथा इसी का नाम निद्रा है। जो कि हमें नींद में भी सुख का अनुभव कराती है।

 

  • जब गहरी नींद में मनुष्य को यह ज्ञान रहता है कि आज मैं सुखपूर्वक सोयाआज गहरी नींद आयी। जब निद्रा से जाग जाने पर एक सुखद अनुभूति होआनन्द की अनुभूति होशरीर में किसी प्रकार का आलस्य ना रहेइन्द्रियाँ प्रसन्न हो तब उसे अक्लिष्ट वृत्ति कहते है। वही जब मनुष्य के जागने पर शरीर में तमो गुण की अधिकताथकान की अनुभूति होआसक्ति उत्पन्न हो तब वह क्लिष्ट कहलाती है।

 

  • उदाहरण - जिस प्रकार अन्धेरे कमरे में सभी वस्तुए छिपी रहती है। अन्धकार के कारण दिखाई नहीं दे रही है। किन्तु सभी वस्तुओं को छिपाने वाला अन्धकार स्वयं दिखता हैं। और वह वस्तुओं के अभाव की प्रतीति कराता है। इसी प्रकार तमोगुण सुषुप्ति अवस्था में अन्धकार की तरह चित्त की सभी वृत्तियों को दबाकर स्वयं स्थिर रूप में प्रधान रहता है। परन्तु इस अवस्था में रजोगुण तनिक मात्र में रहते हुए वह इस अभाव की प्रतीति कराता है। चित्त के ऐसे परिणाम को निद्रा वृत्ति कहा जाता है। 


स्मृति वृत्ति 

महर्षि पतंजलि स्मृति का वर्णन योग दर्शन में इस प्रकार से किया है-

 'अनुभूतविषयासम्प्रमोषः स्मृतिः। 1 / 11 पा० यो० सू० 


अनुभव किये हुए विषय का फिर उभर आना स्मृति है। अनुभव के आधार पर जब हमें किसी विषय का ज्ञान प्राप्त होता है। उसी को अनुभूत विषय कहते है।

 

  • सूत्र में 'असम्प्रमोषः' पद में सम् + प्र + मुष् (स्तेये = चोरी करना ) + धम् प्रत्यय हुआ है। जिसका अर्थ है - अच्छी प्रकार से भूल जाना अथवा चुराया जाना तथा (सम्प्रमोष) से नत्र समास करने पर उससे अर्थ भिन्न हो जाता है। इस प्रकार इसका अर्थ है कि अनुभूत विषय का पूर्ण रूपेण व्यक्ति के अधिकार में बने रहना। मनुष्य जो कुछ भी अनुभव करता है। उसके संस्कार मन में एकत्र हो जाते हैं। और वे संस्कार कुछ समय पश्चात उचित निमित्त को पाकर उपस्थित हो जाते हैं। चित्त की इस वृत्ति को स्मृति कहते हैं। हमारे चित्त में अनुभव के अनुरूप संस्कार बनते हैं। और संस्कार के अनुरूप स्मृति होती है।

 

  • स्वप्न की दशा में स्मृतियॉ अव्यवस्थित होती है। इसका कारण रजोगुण व तमोगुण होता है। क्योकि यह सत्य है कि अनुभव के बिना कोई भी स्मृति नही हो सकती है। जैसे जो जन्मान्ध हो उन्हे रूप वाली वस्तु का स्वप्न नही आता है।

 

  • क्योकि जब हम किसी भी वस्तु का अनुभव करते है तभी वह वस्तु और उसका ज्ञान दोनो प्रकाशित रहते है। उन अनुभव से ही चित्त पर संस्कार पड़ते है। उन संस्कारों से ही स्मृति होती है। यह स्मृति भी दो प्रकार की होती है। जो स्मृति हमे उत्साहश्रद्धावैराग्य की ओर उन्मुख करेजो वृत्ति हमें योग साधना की ओर आत्म ज्ञान में सहायक होती है। वह अक्लिष्ट वृत्ति होती है। तथा जो वृत्ति योग साधना में बाधक बनती है। वह क्लिष्ट वृत्ति है।

 

  • उदाहरण माता पिता द्वारा हमें जो संस्कार मिले होते है। वह स्मृति रूप में मन में एकत्र होते है। बचपन में सिखाये गये अच्छे उपदेश या ये संस्कार कभी नष्ट नही हो सकते है। तथा ना ही उन्हें कोई चुरा सकता । क्योकि जो ज्ञान हमें सिखाया जाए या अनुभव द्वारा ग्रहण किया जाए वह ज्ञान नष्ट नहीं होता है। आवश्यकता पड़ने पर वह ज्ञान स्मृति के रूप में हमारे सामने आ जाता है।

 

  • अतः प्रिय विद्यार्थियों उक्त पॉचो वृत्तियों ( प्रमाणविपर्ययविकल्पनिद्रा व स्मृति) को महर्षि पतंजलि ने तीनो गुणों से युक्त बताये हुए निरोध करने योग्य बताया है। क्योकि ये वृत्तियाँ क्लिष्ट होती है। तथा क्लेशो का कारण होती है। ये अविद्या रूपी क्लिष्ट वृत्ति सभी दुःखो का मूल है। तथा सुख की वृत्तियाँ सुख के विषयों में राग उत्पन्न करें जब उस सुख के विषयों और सुख के साधनो में विघ्न उत्पन्न हो तो द्वेष उत्पन्न होता है। इस प्रकार ये वृत्तियॉ क्लिष्ट होने पर क्लेश जनक है। इन सभी वृत्तियों के निरोध हो जाने पर सम्प्रज्ञात योग सिद्ध होता है।

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