कालिदास की काव्य नाट्यकला- प्रकृति-वर्णन | Kalidas Natrue Description in Hindi

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 कालिदास की काव्य नाट्यकला- प्रकृति-वर्णन

कालिदास की काव्य नाट्यकला- प्रकृति-वर्णन | Kalidas Natrue Description in Hindi
 

कालिदास की काव्य नाट्यकला- प्रकृति-वर्णन

  • कालिदास प्रकृति देवी के प्रवीण पुरोहित थे। उनकी सूक्ष्मदृष्टि ने प्रकृति के को सावधानता से हृदयगम किया था। उनके प्राकृतिक वर्णन इतने सजीव हैं कि वर्णित वस्तु हमारे नेत्रों के सामने नाच उठती है। बाह्य प्रकृति का सूक्ष्म निरीक्षण करना तथा सूक्ष्म रहस्यों उसका मार्मिक अंश ग्रहण करना कालिदास की महती विशेषता है। 


  • मनुष्य तथा प्रकृति दोनों का मंजुल सम्पर्क तथा अद्भुत एकरसता दिखाकर कवि ने प्रकृति के भीतर स्फुरित होने वाले हृदय को पहचाना है। भारतीय प्राकृतिक वर्णनों में एक विचित्रता है। पाश्चात्य कवियों के वर्णन प्राय: आवरणहीन होते हैंपरन्तु संस्कृत कवियों के वर्णन अलंकृत होते हैं- ये महाकवि प्रकृति को सुन्दर अलंकारों से सजाकर पाठकों के सामने लाते हैं। कालिदास के वर्णन नितान्त सूक्ष्मसुन्दर तथा संश्लिष्ट रूप में होते है।

 

  • मेघदूत भारतीय कवि की अद्भुत प्रतिभा के द्वारा चित्रित भारतश्री का एक नितान्त सरस चित्रण है। 'ऋतुहारमें समस्त ऋतुएँ अपने विशिष्ट रूप में प्रस्तुत होकर पाठकों का मनोरंजन करती हैं। 


  • रघुवंश के प्रथम सर्ग (49-53 श्लोक) में तपोवन का तथा त्रयोदश में त्रिवेणी का (54-57 श्लोक) सुन्दर वर्णन कल्पना के साथ निरीक्षण शक्ति का मंजुल सामन्जस्य है। कालिदास की निरीक्षण शक्ति अत्यन्त सूक्ष्म तथा पैनी है। उनका प्राकृतिक वर्णन वैज्ञानिक तथा प्रतिभामण्डित है। इसके रमणीय उदाहरण सर्वत्र दीख पड़ते हैं। पर्वत के झरनों पर जब दिन के समय सूर्य की किरणें पड़ती हैं तब उनमें इन्द्रधनुष चमकने लगता हैपरन्तु सन्ध्या के समय सूर्य के पश्चिम ओर लटक जाने पर उनमें इन्द्रधनुष नहीं दिखलाई पड़ते। इस वैज्ञानिक तथ्य तथा निरीक्ष- चातुरी का प्रत्यक्ष वर्णन कालिदास ने इस पद्य में किया है (कुमार 08/31)

 

सीकर-व्यतिकरं मरीचिभिर्दुरयत्यवते विवस्वति । 

इन्द्रचापपरिवेषशून्यतां नितरास्वत पितुर्वजन्त्यमी ॥

 

किन्तु झरनों में इन्द्र धनुष के न दिखलाई पड़ने पर भी तालाबों के जल में लटकते हुए सूर्य की समतल कान्ति पड़ने से ऐसा जान पड़ता है मानो उनके ऊपर सोने का पुल बना हो (कुमार0 8/34)

 

पश्य पश्चिम-दिगन्तलग्बिना निर्मितं मितकथे विवस्वता । 

लब्धया प्रतिमया सरोम्भसां तापनीयमिव सेतु- बन्धनम् ।।

 

  • ये उक्तियों रूढि का अनुसरण करने वाले कवि की नहीं हो सकतीवरन् ये उक्तियाँ उस कवि की हैं जो मुग्ध दृष्टि से प्रकृति की शोभा देखते हुए सब कुछ भूल जाता है। इस तथ्य का प्रत्यक्ष दृष्टान्त हिमालय का वर्णन है। 


  • संस्कृत कवियों में कालिदास को हिमालय सबसे अधिक प्यारा था और गाढ़ परिचय होने से उनके वर्णन नितान्त तथ्य- मण्डितवैज्ञानिक तथा शोभन हैं। वृष्टि से उद्वेलित ऋषिजनोंका धूपवाले शिखर का आश्रय लेनाहाथियों के द्वारा विघटित सरल द्रुमों (चीड़ के पेड़) से बहनेवाले दूध का हवा के झोंके से सर्वत्र फैलनाजलवृष्टि का करका के रूप में परिवर्तन होना- आदि हिमालय प्रदेश की भौतिक विशेषताएँ कवि की सूक्ष्म अवलोकन-शक्ति के जागरूक दृष्टान्त हैं।

 

कालिदास का प्रकृति वर्णन

  • कालिदास के प्रकृति  वर्णन में अनेक वैशिष्ट्य हैं- कवि मान-सौन्दर्य की तीव्रता तथा यथार्थता के अभिव्यंजन के निमित्त प्रकृति का आश्रय लेता हैतो कहीं वह प्रकृति के ऊपर मानव भावों तथा व्यापारों का ललित आरोप करता है। 
  • कहीं वह प्रकृति और मानव के बीच परस्पर गाढ़ मैत्रीसहज सहानुभूति तथा रमणीय रागात्मक वृत्ति का सम्बन्ध जोड़ता हैतो कहीं प्रकृति को भगवान् की ललित लीला का निकेतन मानकर आनन्द से विभोर हो जाता है। 
  • नि:सन्देह कालिदास प्रकृति के अन्त्: स्थल के सूक्ष्म पारखी महाकवि हैंजिनकी दृष्टि प्रकृति के सौम्य-रूपमाधुर्यमय प्रवृत्ति तथा स्निग्ध सौन्दर्य के ऊपर रीझती है तथा उग्रतं और भीषणता से सदा पराड़मुख रहती है। 

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