कालिदास की काव्य नाट्यकला - पात्र-चित्रण | Kalidaas ka patra Chitran

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कालिदास की काव्य नाट्यकला - पात्र-चित्रण

 

कालिदास की काव्य नाट्यकला - पात्र-चित्रण | Kalidaas ka patra Chitran

कालिदास की काव्य नाट्यकला - पात्र-चित्रण

  • कालिदास के पात्र जीवनी शक्ति से सम्पन्न जीते-जागते प्राणी हैं। उनकी शकुन्तला प्रकृति की कन्याआश्रम की निसर्ग बालिका हैजिसके जीवन को बाह्य प्रकृति ने अपने प्रभाव से कोमल तथा स्निग्ध बनाया है। 
  • हिमालय की पुत्री पार्वती तपस्या तथा पातिव्रत का अपूर्व प्रतीक हैजिसके कठोर तपश्चरण के आगे ऋषिजन भी अपना माथा टेकते है। धीरता की मूर्तिधारिणीचपल प्रेम की प्रतिमा मालविकाउन्मत्त प्रेम की अधिकारिणी उर्वशीपारस्परिक ईर्ष्या तथा प्रणयमान की प्रतिनिधि इरावती संस्कृत साहित्य के अविस्मरणीय स्त्री-पात्र हैं। आदर्श पात्रों के सर्जन में रघुवंश अद्वितीय है। 


  • देवता ब्रह्मण में भक्तिगुरूवाक्य में अटल विश्वासमातृरूपिणी पयस्विनी की परिचर्याअतिथि की इष्टपूर्ति के लिए धरिणीधर राजा की व्याकुलता, , लोकरंजन के निमित्त तथा अपने कुल को निष्कलंक रखने के लिए नरपति के द्वारा अपनी प्राणोपमा धर्मपत्नी का निर्वासन- कालिदासीय आदर्श सृष्टि के कतिपय दृष्टान्त हैं। कालिदास रमणी-रूप के चित्रण में ही समर्थ नहीं हैप्रत्युत नारी के स्वाभिमान तथा उदात्त रूप के प्रदर्शन में भी कृतकार्य है। 

 

  • रघुवंश के चतुर्दश सर्ग (61-67 श्लोक) में चित्रितराजाराम के द्वारा परित्यक्तजनक नन्दिनी जानकी का चित्र तथा उनका राम को भेजा गया संदेश कितना भावपूर्णगम्भीर तथा मर्मस्पर्शी है। राम को 'राजाशब्द के द्वारा अभिहित करना विशुद्ध तथा पवित्र चरित्र धर्मपत्नी के परित्याग के अनौचित्य का मार्मिक अभिव्यन्जक है (रघु014/21) 


वाच्यस्त्वया मद्वचनात् स राजा व ह्रौ विशुद्धामपि यत् समक्षम् । 

मां लोकवादश्रवणादहासी: श्रुतस्य किं तत् सदृशं कुलस्य ॥

 

  • सीता के चरित्र की उदारताका परिचय इसी घटना से लग सकता है कि इतनी विषम परिस्थिति में पड़ने पर भी वह राम के लिए एक भी कुशब्द का प्रयोग नहीं करतीबल्कि अपने ही भाग्य को कोसती हैं तथा अपनी ही निन्दा बारम्बार करती हैं। पुरूष पात्रों का चित्रण भी उतनी ही स्वाभाविक तथा भावपूर्ण है। 


  • गुरु की आज्ञा से नन्दिनी का सेवक दिलीप चरित्र में जितना सुन्दर हैवरतन्तु की इच्छापूर्ति करने वाला वीर रघु उतना ही श्लाघनीय है। रामचन्द्र का चरित्र इस महाकवि ने बड़ी कोमल तूलिका से चित्रित किया है। राम प्रजारंजक हैं और साथ ही साथ मानव भी हैं। वै देही की निन्दा सुनकर राम के हृदय के विदरण की समता आग में तपे हुए अयोधन द्वारा आहत लोहे के साथ देकर कवि ने राम के हृदय की कठोरता तथा कोमलता दोनों की मार्मिक अभिक्ति एक साथ देकर कवि ने राम के हृदय की कठोरता तथा कोमलता दोनों की मार्मिक अभिव्यक्ति एक साथ की है। (रघु0 14/33)

 

  • राम का हृदय लोहे के समान कठोरअथ च तप्त होने पर कोमल है। अकीर्ति की उपमा अयोघन (लोहे का घन) के साथ देकर कवि उसकी एकान्त कठोरता की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कर रहा है। राम का स्वाभिमानी हृदय कहीं व्यक्त होता है (14/41), तो कहीं उनकी मानवता राजभाव के ऊपर झलकती है ( 14/84)। लक्ष्मण के लौटने पर सीता का सन्देश सुनाने पर राम की आँखों में आँसु छलकने लगते हैंयह राजभाव के ऊपर मानवता की विजय है (रघु0 14/84)

 

बभूव रामः सहसा सवाष्पस्तुषारवर्षीव सहस्य-चन्दः । 

कौलीनभीतेन गृहान्निरस्ता न तेन वैदेहसुता मनस्त: ॥

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