मानव विकास के अध्ययन की प्राकृतिक विधि|Natural Method of Study of Human Development

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मानव विकास के अध्ययन की प्राकृतिक विधि 

Natural Method of Study of Human Development



मानव विकास के अध्ययन की प्राकृतिक विधि  Natural Method of Study of Human Development




प्राकृतिक अध्ययन स्पष्ट तथा सरल अवलोकन पर निर्भर करता है। शोधकर्ता बच्चे को प्राकृतिक परिस्थिति या वास्तविक परिस्थिति में देखता है जिससे उसे प्रायोगिक फेरबदल कर व्यवहार में परिवर्तन करने का प्रयास ना करना पड़े। शोधकर्ता प्राकृतिक अध्ययन घर, डे केयर सेंटर, स्कूल, खेल के मैदान या अस्पताल में कर सकता है। प्राकृतिक अध्ययन हमें सामान्य सूचनाएं या उस व्यवहार की जानकारी देता है जो सामान्य रूप से सभी बच्चों द्वारा किया जाता है। यह आंकड़े व्यक्ति समूह के औसत पर या फिर व्यक्ति विशेष के इतिहास पर आधारित होते हैं।

 मानव विकास के प्राकृतिक अध्ययन के प्रकार

 

1. बच्चे का चरित्र लेख

  • इस विधि से बहुत उपयोगी और गहरी जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। मुख्य रूप से सामान्य विकास से सम्बंधित जानकारियाँ इस विधि द्वारा हमें प्रत्येक बच्चे के व्यक्तित्व की जानकारी प्राप्त होती है। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टि से इसकी कुछ कमियां भी सामने आती हैं जैसे अक्सर इसमें व्यवहार को केवल रिकॉर्ड किया जाता है, उसकी व्याख्या नहीं की जाती। यह रिकॉर्डिंग अक्सर माता-पिता द्वारा की जाती है जो पर्यवेक्षक पूर्वाग्रह या पक्षपात पूर्ण व्यवहार से प्रभावित हो सकते हैं जिसमे वो बच्चे के केवल सकारात्मक पहलुओं पर जोर देते हैं तथा नकारात्मक को रिकॉर्ड नहीं करते। इसके अतिरिक्त यह विधि एक बच्चे के सम्बन्ध में बहुत जानकारी देती है लेकिन क्योंकि प्रत्येक बच्चे की अपनी अलग विशेषता होती है अतः एक बच्चे से प्राप्त जानकारी को सभी बच्चों पर लागू नहीं कर सकते।

 

2. प्राकृतिक अवलोकन

  • प्राकृतिक अवलोकन करने के लिए शोधकर्ता बहुत सारे बच्चों का अवलोकन करता है तथा विभिन्न आयु वर्ग में उनके विकास से सम्बंधित जानकारियों को रिकॉर्ड करता है जिससे कि विभिन्न कौशल, व्यवहार, तथा वृद्धि के दिखायी देने की औसत आयु का पता लग सके। इस विधि में शोधकर्ता ना तो प्रायोगिक परिवर्तन करता है और न ही व्यवहार का वर्णन करने का प्रयास करता है।

 

3. समय प्रतिदर्श विधि

  • इस विधि में शोधकर्ता दिए गए समय में एक निश्चित प्रकार के व्यवहार के प्रकट होने को रिकॉर्ड करते हैं जैसे गुस्सा करना, बबलाना या रोना आदि। उदाहरणार्थ पिता शिशु संबंधों का अध्ययन करने के क्रम में शोधकर्ता 24 का टेप बनाने के लिए छह अलग अलग मौकों पर दस घरों पर जाते हैं तथा वह प्रत्येक 24 घंटे की अवधि में पिता अपने बच्चे से बात करने में कितने मिनट खर्च करता है उनकी संख्या गिनने के लिए टेप का विश्लेषण करते हैं।

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