प्रतिस्पर्धा का अर्थ प्रकार परिणाम | Competition Meaning Types and Reason

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प्रतिस्पर्धा का अर्थ प्रकार परिणाम 

( Competition Meaning Types and Reason)

प्रतिस्पर्धा का अर्थ प्रकार परिणाम | Competition Meaning Types and Reason


 


 

प्रतिस्पर्धा का अर्थ 

फेयरचाइल्ड के अनुसार, "प्रतिस्पर्धा सीमित वस्तुओं के उपभोग या अधिकार के लिए किए जाने वाले परिश्रम को कहते हैं।

 

बीसेंज और बीसेंज के अनुसार, "प्रतिस्पर्धा दो या अधिक व्यक्तियों के समान उद्देश्यों को जो कि इतना सीमित है कि सब उसके भागीदार नहीं बन सकतेपाने के प्रयत्न को कहते हैं।"

 

अकोलकर के अनुसार, "प्रतिस्पर्धा दो या अधिक व्यक्तियों अथवा समूहों के बीच धनसामाजिक स्थितिप्रसिद्धिलोकप्रियताशक्ति को दूसरों की तुलना में अधिक प्राप्त करने के लिए होने वाली एक दौड़ है। यह उस समय उत्पन्न होती है जब इच्छित वस्तु की मात्रा सीमित होती है। बड़े शहरों को छोड़कर हवापानी आदि के लिए कभी भी कोई प्रतिस्पर्धा नहीं करता है।"

 

  • उपयुक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रतिस्पर्धा एक प्रकार की दौड़ (Race) या प्रयत्न हैजो माँग पूरी न होने के कारण सीमित समान उद्देश्यों के लिए होती है। यह अवैयक्तिक (Impersonal) और निरन्तर प्रयत्न है। यह प्रयत्न अचेतन स्तर पर भी हो सकता है। प्रतिस्पर्धा चेतन और अचेतन दोनों स्तरों पर होती है। प्रतिस्पर्धा तब तक चलती है जब तक व्यक्ति को उद्देश्यों की प्राप्ति नहीं हो जाती है या तब तक चलती है जब तक कि व्यक्तियों को पूर्ण असफलता का अनुभव नहीं होता है। यह एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है अर्थात् प्रत्येक प्रकार के समूहों और समाज में पाई जाती है। चाहे विद्यार्थी होचाहे श्रमिकचाहे नेता होआदि। आधुनिक समाज में जीवन के अनेकों क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है क्योकि प्रतिस्पर्धा व्यक्तियों को कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है। प्रतिस्पर्धा के द्वारा व्यक्ति अपने सामाजिक स्थिति (Social Status) को ऊँचा उठाना चाहते हैं। प्रतिस्पर्धा कार्यक्षमता (Efficiency) को भी बढ़ावा देती है। बीसेंज और बीसेंज (Biesanz and Biesanz) के अनुसार, "हम इस बात से सहमत हैं कि यदि सहयोग कार्यों को पूर्ण कराता है तो प्रतिस्पर्धा यह आश्वासन देती है कि वह कार्य ठीक प्रकार से किए जाएँगे।" अकोलकर के अनुसार, "प्रतिस्पर्धा एक उन्नतिशील शक्ति हैजो अनावश्यक रूप से नष्ट न करके पूर्ण करती है।"

 

  • प्रतिस्पर्धा के कारण इच्छाओंरुचियों और मूल्यों की पूर्ति होती है। प्रतिस्पर्धा के कारण जब एक वस्तु की माँग बढ़ जाती है तो उस माँग की पूर्ति के लिए नए-नए आविष्कार होते हैं और नए उपाय ढूँढे जाते हैं। कभी-कभी यह देखा गया है कि प्रतिस्पर्धा के कारण यौन सम्बन्धी चुनाव बहुत अच्छे ढंग से हो जाया करते हैं। उदाहरण के लिए एक स्त्री को जीवन साथी बनाने के लिए पुरुषों में होड़। जिन राजनैतिक पार्टियों में जितनी ही अधिक प्रतिस्पर्धा होती है उनसे चुनाव में जीतने की उतनी ही अधिक सम्भावना होती है। प्रतिस्पर्धा के द्वारा प्राप्त वस्तुओं में व्यक्तियों को अपेक्षाकृत अधिक सुख मिलता है। सामूहिक स्तर पर प्रतिस्पर्धा लोगों को संगठित कर सकती है। उदाहरण के लिए शिक्षकवकीलडॉक्टर आदि अपनी प्रगति के लिए संघ और समितियाँ बनाकर अपने हितों की रक्षा करते हैं। प्रतिस्पर्धा की दौड़ में आगे निकलने की चाह में लोग बुरे तरीके भी अपनाते हैं और हिंसात्मक कार्य तक कर बैठते हैं। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा व्यक्ति और समाज दोनों के लिए लाभदायक है। इसके महत्व को बताते हुए रॉस ने कहा है कि, "प्रतिस्पर्धा का कार्य प्रत्येक व्यक्ति के लिए सामाजिक दुनिया में उसका स्थान निश्चित करना है। प्रतिस्पर्धा एक प्रगतिशील शक्ति हैजो चीजों को पूर्ण करती है न कि नष्ट।"

 

  • प्रतिस्पर्धा के अनेकों निर्धारक तत्व हैंइनमें से कुछ प्रमुख निर्धारक इस प्रकार हैं-(क) मूल्य व्यवस्था (Value System), (ख) समूह संरचना (Group Structure) (ग) व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और कार्य (Social Status and Role) (घ) संस्कृति (Culture)

 

प्रतिस्पर्धा के प्रकार-

  • प्रतिस्पर्धा मुख्यत दो प्रकार की होती हैं। प्रथम प्रकार की प्रतिस्पर्धा वैयक्तिक प्रतिस्पर्धा (Personal Competition) है। यह वह प्रतिस्पर्धा है जो दो परिचित व्यक्तियों या समूहों में पाई जाती है। उदाहरण के लिएदो खिलाड़ियों या विद्यार्थियों के बीच पाई जाने वाली प्रतिस्पर्धा वैयक्तिक प्रतिस्पर्धा है। द्वितीय प्रकार की प्रतिस्पर्धा अवैयक्तिक स्पर्धा (Impersonal Competition) है। यह वंह स्पर्धा है जो दो अपरिचित व्यक्तियों या समूहों के बीच पायी जाती हैं। उदाहरण के लिएकिसी भी परीक्षा में बैठने वाले सैकड़ों या हजारों परीक्षार्थी अपरिचित होते हुए भी एक-दूसरे के प्रति प्रतिस्पर्धा रखते हैं। उदाहरण के लिएपीएससी परीक्षा में बैठने वाले परीक्षार्थियों में अवैयक्तिक प्रतिस्पर्धा होती है। यह दोनों प्रकार की प्रतिस्पर्धा अधिकांशतः चेतन स्तर (Conscious level) पर ही होती है। कभी-कभी प्रतिस्पर्धा का स्तर अचेतन (Unconsious) भी हो सकता है।

 

प्रतिस्पर्धा के रूप 

गिलिन और गिलिन के अनुसारप्रतिस्पर्धा के चार रूप हैं- (क) आर्थिक प्रतिस्पर्धा, (ख) सामाजिक प्रतिस्पर्धा, (ग) सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा तथा, (घ) प्रजातीय प्रतिस्पर्धा।

 

1. आर्थिक प्रतिस्पर्धा-

आर्थिक क्षेत्रों जैसे उत्पादनवितरण और उपभोग के क्षेत्र में जो प्रतिस्पर्धा पाई जाती हैवह आर्थिक प्रतिस्पर्धा कहलाती है। एक उद्योगपति प्रदेश या देश का सबसे बड़ा उद्योगपति बनने के लिए अपने उद्योग का उत्पादन बढ़ाकरकम मुनाफा लेकरअपने उत्पादन को अधिक बेचकर अन्य उद्योगपतियों से स्पर्धा कर सकता है। आर्थिक प्रतिस्पर्धा उस समय अधिक होती हैजब आर्थिक वस्तुएँ सीमित होती हैं। व्यक्ति इन वस्तुओं की प्राप्ति के लिए स्पर्धा करते हैं।

 

2. स्थिति एवं कार्य के लिए प्रतिस्पर्धा-

समूह या समाज में प्रत्येक व्यक्ति का कुछ न कुछ स्थान होता है और स्थिति के अनुसार ही उसका कुछ न कुछ कार्य (Role) होता है। साथ ही साथ प्रत्येक व्यक्ति में यह इच्छा होती है कि वह अपने समूह में अपनी स्थिति और कार्य को आगे बढ़ाए। अधिक महत्त्वपूर्ण कार्यों को करने के लिए और समाज में उच्च स्थिति प्राप्त करने के लिए जो प्रतिस्पर्धा होती हैवह सामाजिक प्रतिस्पर्धा कहलाती है। उदाहरणएक कक्षा मैं विद्यार्थियों में प्रतिस्पर्धाखेल के समूह में प्रतिस्पर्धा आदि।

 

3. प्रजातीय प्रतिस्पर्धा-

विभिन्न प्रजातियों के व्यक्तियों में श्रेष्ठता या हीनता की भावना होती है। एक प्रजाति वाले व्यक्ति अपने से श्रेष्ठ तथा दूसरे व्यक्तियों को हीन समझते हैं। श्रेष्ठता और हीनता की भावना के कारण एक प्रजाति के व्यक्ति प्रतिस्पर्धा कर दूसरे व्यक्तियों से आगे निकलना चाहते हैं। उदाहरण के लिएगोरी प्रजाति और काली प्रजाति में उपस्थित प्रतिस्पर्धा प्रजातीय प्रतिस्पर्धा है। विभिन्न प्रजातियों में प्रतिस्पर्धा इसलिए भी पाई जाती है कि प्रजातियों की श्रेष्ठता का कोई प्रमाण नहीं हैअतः सभी प्रजातियाँ एक-दूसरे से अपने को श्रेष्ठ सिद्ध करने में प्रतिस्पर्धा करती हैं।

 

4. सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा-

विभिन्न संस्कृति के व्यक्तियों में इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा पाई जाती है कि एक संस्कृति के व्यक्ति अपने व्यवहारोंआदर्शोंविश्वासों और संस्थाओं को अन्य संस्कृति से अच्छा समझते हैं। दूसरी संस्कृतियों के व्यक्ति भी इसी प्रकार की भावना रखते हैं और दूसरे की अपेक्षा व्यवहारोंआदर्शोंविश्वासों तथा संस्थाओं को ऊँचा उठाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।

 

उपर्युक्त चार प्रकार की प्रतिस्पर्धा के अतिरिक्त अन्य और भी प्रकार हैंजिनमें राजनैतिक प्रतिस्पर्धा (Political Competition) प्रमुख हैं। यह सामाजिक प्रतिस्पर्धा का ही एक प्रकार है। जब दो राजनैतिक पार्टियाँ समाज में अपने पद को दूसरी पार्टी से अधिक ऊँचा उठाने के लिए होड़ करती हैं तो यह प्रतिस्पर्धा राजनैतिक प्रतिस्पर्धा कहलाती हैं। प्रतिस्पर्धा व्यक्तिगत स्तर पर भी हो सकती है और सामूहिक स्तर पर भी। जब दो या कुछ व्यक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा होती है तो इसे व्यक्तिगत प्रतिस्पर्धा (Personal Competition) कहते हैं। इसी प्रकार दो या अधिक समूहों के बीच होने वाली प्रतिस्पर्धा को सामूहिक प्रतिस्पर्धा कहते हैं।

 
प्रतिस्पर्धा के परिणाम
 

प्रतिस्पर्धा के परिणाम अच्छे भी हो सकते हैं और बुरे भी। प्रतिस्पर्धा के कुछ प्रमुख परिणाम इस प्रकार हैं- 

(1) संगठनात्मक परिणाम- 

शिक्षकविद्यार्थीखिलाड़ीडॉक्टरवकीलव्यापारी आदि जब व्यक्तिगत उन्नति के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। यह प्रतिस्पर्धा चाहे व्यक्तिगत स्तर पर हो चाहे एसोसिएशन बनाकर सामूहिक स्तर पर होइस प्रकार की प्रतिस्पर्धा के परिणाम संगठनात्मक होंगे।

 

(2) विघटनात्मक परिणाम-

प्रतिस्पर्धा चाहे व्यक्तिगत स्तर पर हो चाहे सामूहिक स्तर पर होप्रतिस्पर्धा करने वाले व्यक्तियों में यदि प्रतिस्पर्धा गला काटने वाली होती है तो ऐसी प्रतिस्पर्धा के परिणाम विघटनात्मक होते हैंक्योंकि इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा में प्रतिस्पर्धा करने वाले व्यक्ति एक-दूसरे को नुकसान पहुँचाना चाहते हैं। नुकसान पहुँचाने में कभी-कभी वह हिंसात्मक उपाय भी अपनाते हैं।

 

(3) व्यक्तित्व से सम्बन्धित परिणाम-

कूले के अनुसार जब प्रतिस्पर्धा सुव्यवस्थित ढंग से चलती है तो प्रतिस्पर्धा करने वाले व्यक्तियों में विस्तृत सामाजिक अनुभूति का विकास होता है। इस प्रकार की प्रतिस्पर्धा से सामान्य और समाज के अनुकूल व्यक्तित्व का विकास होता है। सुव्यवस्थित प्रतिस्पर्धा व्यक्ति को संगठनात्मक कार्यों को करने के लिए प्रेरित करती हैं। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा व्यक्ति को प्रगतिशील बनाती है। अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा से असामान्य व्यक्तित्व का विकास होता है। अकोलकर ने रास (E.A. Ross) के विचारों को लिखते हुए कहा है कि मोटे तौर पर प्रतिस्पर्धा का कार्य प्रत्येक व्यक्ति का उसकी सामाजिक दुनिया में उसका स्थान निश्चित करना है। प्रतिस्पर्धा चीजों को विनष्ट न कर परिपूर्ण करती हैयह एक प्रगतिशील शक्ति है।

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