कृष्णा सोबती जीवन परिचय | मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश | Krishna Sobati Biography in Hindi

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 कृष्णा सोबती जीवन परिचय :मियाँ नसीरुद्दीन

कृष्णा सोबती जीवन परिचय | मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश | Krishna Sobati Biography in Hindi


कृष्णा सोबती जीवन परिचय :मियाँ नसीरुद्दीन 

जीवन परिचय - 

  • कृष्णा सोबती का जन्म सन् 1925 ई. में गुजरात (पश्चिमी पंजाब-वर्तमान में पाकिस्तान) नामक स्थान पर हुआ। इनकी शिक्षा लाहौर, शिमला व दिल्ली में हुई। इन्हें साहित्य अकादमी सम्मान, हिंदी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की महत्तर सदस्यता सहित अनेक राष्ट्रीय पुरस्कारों से नवाजा गया।

 

रचनाएँ-

  • कृष्णा सोबती ने अनेक विधाओं में अपनी लेखनी चलाई है। उनके कई उपन्यासों, लंबी कहानियों और संस्मरणों ने हिंदी के साहित्यिक संसार में अपनी दीर्घजीवी उपस्थिति सुनिश्चित की है।


इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं- 

उपन्यास-जिंदगीनामा, दिलोदानिश, ऐ लड़की, समय गरम। 

कहानी-संग्रह - डार से बिछुड़ी, मित्रों मरजानी, बादलों के घेरे, सूरजमुखी अँधेरे के। 

शब्दचित्र, संस्मरण-हम-हशमत, शब्दों के आलोक में।

 

कृष्णा सोबती साहित्यिक विशेषताएँ - 

  • हिंदी कथा-साहित्य में कृष्णा सोबती की विशिष्ट पहचान है। वे मानती हैं कि कम लिखना विशिष्ट लिखना है। यही कारण है कि उनके संयमित लेखन और साफ-सुथरी रचनात्मकता ने अपना एक नित नया पाठक वर्ग बनाया है। उन्होंने हिंदी साहित्य को कई ऐसे यादगार चरित्र दिए हैं, जिन्हें अमर कहा जा सकता है, जैसे-'मित्रों', हम हशमत शाहनी आदि। भारत-पाकिस्तान पर जिन लेखकों ने हिंदी में कालजयी रचनाएँ लिखीं, उनमें कृष्णा सोबती का नाम पहली पंक्ति में रखा जाएगा। यह कहना उचित होगा कि यशपाल के 'झूठा सच', राही मासूम रजा के 'आधागाँव' और भीष्म साहनी के 'तमस' के साथ-साथ कृष्णा सोबती का 'जिंदगीनामा' इस प्रसंग में एक विशिष्ट उपलब्धि है। संस्मरण के क्षेत्र में 'हम-हशमत' शीर्षक से उनकी कृति का विशिष्ट स्थान है। इसमें उन्होंने अपने ही एक दूसरे व्यक्तित्व के रूप में हशमत नामक चरित्र का सृजन कर एक अद्भुत प्रयोग का उदाहरण प्रस्तुत किया है। कृष्णा सोबती के भाषिक प्रयोग में भी विविधता है। संस्कृतनिष्ठ तत्समता, उर्दू का बाँकपन, पंजाबी की जिंदादिली, ये सब एक साथ उनकी रचनाओं में मौजूद हैं।

 

मियाँ नसीरुद्दीन पाठ का सारांश 

  • मियाँ नसीरुद्दीन शब्दचित्र हम हशमत नामक संग्रह से लिया गया है। इसमें खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन के व्यक्तित्व, रुचियों और स्वभाव का शब्दचित्र खींचा गया है। मियाँ नसीरुद्दीन अपने मसीहाई अंदाज से रोटी पकाने की कला और उसमें अपनी खानदानी महारथ बताते हैं। वे ऐसे इंसान का भी प्रतिनिधित्व करते हैं जो अपने पेशे को कला का दर्जा देते हैं और करके सीखने को असली हुनर मानते हैं। 


पाठ का सारांश इस प्रकार है- 

  • लेखिका बताती है कि एक दिन वह मटियामहल के गढ़या मुहल्ले की तरफ निकली तो एक अँधेरी व मामूली-सी दुकान पर आटे का ढेर सनते देखकर उसे कुछ जानने का मन हुआ। पूछताछ करने पर पता चला कि यह खानदानी नानबाई मियाँ नसीरुद्दीन की दुकान है। ये छप्पन किस्म को रोटियाँ बनाने के लिए मशहूर हैं। मियाँ चारपाई पर बैठे बीड़ी पी रहे थे। उनके चेहरे पर अनुभव और आँखों में चुस्ती व माथे पर कारीगर के तेवर थे।

 

  • लेखिका के प्रश्न पूछने की बात पर उन्होंने अखबारों पर व्यंग्य किया। वे अखबार बनाने वाले व पढ़ने वाले दोनों को निठल्ला समझते हैं। लेखिका ने प्रश्न पूछा कि आपने इतनी तरह की रोटियाँ बनाने का गुण कहाँ से सांखा ? उन्होंने बेपरवाही से जवाब दिया कि यह उनका खानदानी पेशा है। इनके वालिद मियाँ बरकत शाही नानबाई थे और उनके दादा आला नानबाई मियाँ कल्लन थे। उन्होंने खानदानी शान का अहसास करते हुए बताया कि उन्होंने यह काम अपने पिता से सीखा।

 

  • नसीरुद्दीन ने बताया कि हमने यह सब मेहनत से सीखा। जिस तरह बच्चा पहले अलिफ से शुरू होकर आगे बढ़ता है या फिर कच्ची, पक्की, दूसरी से होते हुए ऊँची जमात में पहुँच जाता है, उसी तरह हमने भी छोटे- छोटे काम-बर्तन धोना, भट्ठी बनाना, भट्ठी को आँच देना आदि करके यह हुनर पाया है। तालीम की तालीम भी बड़ी चीज होती है।

 

  • खानदान के नाम पर वे गर्व से फूल उठते हैं। उन्होंने बताया कि एक बार बादशाह सलामत ने उनके बुजुर्गों से कहा कि ऐसी चीज बनाओं जो आग से न पके, न पानी से बने। उन्होंने ऐसी चीज बनाई और बादशाह को खूब पसंद आई। वे बड़ाई करते हैं कि खानदानी नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है। लेखिका ने इस कहावत की सच्चाई पर प्रश्नचिन्ह लगाया तो वे भड़क उठे। लेखिका जानना चाहती थी कि उनके बुजुर्ग किस बादशाह के यहाँ काम करते थे। अब उनका स्वर बदल गया। वे बादशाह का नाम स्वयं भी नहीं जानते थे। ये इधर-उधर की बातें करने लगे। अंत में खोझकर बोले कि आपको कौन-सा उस बादशाह के नाम चिट्ठी-पत्री भेजनी है।

 

  • लेखिका से पीछा छुड़ाने की गरज से उन्होंने बब्बन मियाँ को भट्टी सुलगाने का आदेश दिया। लेखिका ने उनके बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि वे उन्हें मजदूरी देते हैं। लेखिका ने रोटियों की किस्में जानने की इच्छा जताई तो उन्होंने फटाफट नाम गिनवा दिए। फिर तुनक कर बोले- तुनकी पापड़ से ज्यादा महीन होती है। फिर वे यादों में खो गए और कहने लगे कि अब समय बदल गया है। अब खाने पकाने का शौक पहले की तरह नहीं रह गया है और न अब कद्र करने वाले हैं। अब तो भारी और मोटी तंदूरी रोटी का बोलबाला है। हर व्यक्ति जल्दी में है।

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