विष्णु खरे लेखक परिचय: चार्ली चैप्लिन यानी हम सब | Vishnu Khare Biography in Hindi

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 विष्णु खरे लेखक परिचयचार्ली चैप्लिन यानी हम सब 

विष्णु खरे लेखक परिचय: चार्ली चैप्लिन यानी हम सब | Vishnu Khare Biography in Hindi

विष्णु खरे लेखक परिचयचार्ली चैप्लिन यानी हम सब  

जन्म - 9 फरवरी, 1940 

मृत्यु- 19 सितम्बर, 2018

 

जीवन परिचय – 

विष्णु खरे का जन्म 9 फरवरी, 1940 छिंदवाड़ा (म. प्र.) में हुआ था। मृत्यु 19 सितम्बर, - सन् 2018 को . 

 

शिक्षा

  • इन्होंने 1963 में क्रिश्चियन कॉलेज इंदौर में अंग्रेजी साहित्य में एम. ए. किया। व्यक्तित्व - ये उन विशेषज्ञों में से हैं जिन्होंने फिल्म को समाज, समय और विचारधारा के आलोक में देखा तथा इतिहास, संगीत, अभिनय, निर्देशन की बारीकियों के सिलसिले में उसका विश्लेषण किया। कवि, लेखक, पत्रकार, आलोचक थे।

 

रचनाएँ- 

  • एक गैर रूमानी समय में, खुद अपनी आँख से, सबकी आवाज के पर्दे में- (कविता संग्रह), आलोचना की पहली किताब, सिनेमा पढ़ने के तरीके, यह चाकू समय।

 

भाषा -

  • इनकी कविताएँ विचारपरक, रचनात्मक और आलोचनात्मक हैं। सिनेमा लेखन को वैचारिक गरिमा और गंभीरता दी है।

 

पुरस्कार - 

  • रघुवीर सहाय सम्मान, हिन्दी अकादमी (दिल्ली) का सम्मान, शिखर सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, फिनलैंड का राष्ट्रीय सम्मान, नाइट ऑफ दी आर्डर ऑफ दी व्हाइट रोज सम्मान।

 

चार्ली चैप्लिन यानी हम सब - पाठ का सारांश 

  • जिस वर्ष चार्ली चैप्लिन की जन्मशती वर्ष थी वही वर्ष उनकी पहली फिल्म 'मेकिंग ए लिविंग' के 75 वर्ष पूरे किए थे। पौन शताब्दी से चालों कला की दुनिया के सामने हैं और पाँच पीढ़ियों को मुग्ध कर चुके हैं। विकासशील दुनिया में जैसे-जैसे टेलीविजन और वीडियो का प्रसार हो रहा है वैसे-वैसे एक बहुत बड़ा दर्शक वर्ग नए सिरे से बालों को घड़ी 'सुधारते' या जूते 'खाने' की कोशिश करते हुए देख रहा है।

 

  • चार्ली की फिल्में भावनाओं पर टिकी हैं बुद्धि पर नहीं। मेट्रोपोलिस, द सैक्रिफाइस जैसी फिल्में दर्शक से एक उच्चतर अहसास की माँग करती है। चैप्लिन ने न सिर्फ फिल्म कला को लोकतांत्रिक बनाया बल्कि दर्शकों की वर्ग तथा वर्ण व्यवस्था को तोड़ा। वह इशारे से बता देता है कि राजा भी उतना ही नंगा है जितना मैं हूँ और भीड़ हँस देती है।

 

  • एक परित्यक्ता दूसरे दर्जे की स्टेज अभिनेत्री का बेटा होना, बाद में भयावह गरीबी और माँ के पागलपन से संघर्ष करना, साम्राज्य, औद्योगिक क्रांति, पूँजीवाद तथा सामंतशाही से मगरूर एक समाज द्वारा दुरदुराया जाना इन सबसे चैप्लिन को वे जीवन-मूल्य मिले जो करोड़पति हो जाने के बावजूद अंत तक उनमें बने रहे। भारतीय खानाबदोश, यूरोप की जिप्सी नानी थी। पिता यहूदीवंशी थे।

 

  • चार्ली की कला को देखकर फिल्म समीक्षकों ने माना है कि सिद्धांत कला को जन्म नहीं देते, कला स्वयं अपने सिद्धांत को लेकर आती है या बाद में गढ़ना पड़ता है। चार्ली के जीवन में उसके बचपन की दो घटनाओं ने गहरा व स्थायी प्रभाव डाला था। एक वो जिसमें ईसा के सूली पर चढ़ने के प्रकरण को उनकी माँ ने बाइबिल से था और दूसरा वह जिसमें प्रत्यक्षदर्शी चार्ली ने एक भेड़ को कसाई खाना जाते वक्त अपनी जान बचाकर भागने वाले भेड़ को पकड़ने व पीछा करते हुए लोग कई बार फिसले, गिरे और सड़क पर ठहाके लगाने लगे। इन दृश्यों ने चार्ली की भावी फिल्मों की त्रासदी और हास्योत्पादक तत्वों का सामंजस्य कर भूमिका तय करने लगे। भारतीय कला और सौंदर्य शास्त्र में कई रस होते हैं। संस्कृत नाटकों में विदूषक है किन्तु करुणा और हास्य का सामंजस्य उसमें भी नहीं है।

 

  • चैप्लिन की कला का अलग सौन्दर्यशास्त्रीय महत्व है जिसमें हास्य, करुणा में बदल जाता है और करुणा हास्य में इस फिनोमेनन को भारतीय जनता ने स्वीकार किया। जैसेबत्तख पानी को स्वीकारती है। यहाँ हर एक व्यक्ति दूसरे को विदूषक समझता है। मनुष्य स्वयं ईश्वर या नियति का विदूषक, क्लाउन जोकर या साइड किक है। यही कारण है कि गांधी और नेहरू ने भी चार्ली का सानिध्य चाहा था। चालों के इसी अभारतीय सौन्दर्यशास्त्र की व्यापक स्वीकृति देखकर हो राजकपूर ने 'आवारा' और 'श्री 420' में काम किया। इसके अलावा शम्मी कपूर, अमिताभ बच्चन और श्रीदेवी भी किसी ना किसी रूप से चार्ली का कर्ज स्वीकार चुके हैं।

 

  • चार्ली की अधिकांश फिल्में भाषा का इस्तेमाल नहीं करती हैं। सवाक् चित्रपट पर बड़े-बड़े कॉमेडियन हुए हैं लेकिन चैप्लिन की सार्वभौमिकता तक नहीं पहुँच पाए। चार्ली का चिर युवा होना और बच्चों जैसा दिखना सबसे बड़ी विशेषता है।

 

  • भारत में होली को छोड़कर स्वयं को हास्यास्पद बना डालने की परंपरा नहीं है। चार्ली का भारत में महत्व इसलिए है, कि वह अंग्रेजों पर हँसने का अवसर देता है। चार्ली स्वयं पर तब हँसता है जब वह स्वयं को आत्म- विश्वास से लबरेज, दूसरों से अधिक शक्तिशाली, बज्रादपि कठोराणि या मूनि कुसुमादपि क्षण में दिखलाता है। अपने जीवन के अधिकांश हिस्सों में हम चार्ली होते हैं। मूलतः हम सब चाल हैं क्योंकि हम सुपरमैन नहीं हो सकते। सता, शक्ति, बुद्धिमता, प्रेम और पैसे के चरमोत्कर्ष में जब हम आईना देखते हैं, तो चेहरा चाली- चार्ली हो जाता है।

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