कहानी के तत्व | Elements of Story in Hindi

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कहानी के तत्व

कहानी के तत्व | Elements of Story in Hindi
 

कहानी के तत्व

अभी तक आपने कहानी की संरचना और उसकी विशेषताओं को समझा । किन्तु कहानी आज के युग में केवल मनोरंजन का ही माध्यम नहीं है अपितु जीवन मूल्यों की जानकारीसामाजिक तानेबाने की समझ एंव कठिन परिस्थितियों से जूझने की सामर्थ्य भी हमें कहानी से प्राप्त होती है। मूल्यांकन की दृष्टि से कहानी के कुछ तत्व निर्धारित किये गए हैं। समीक्षकों ने कथा साहित्य के रूप में उपन्यास और कहानी को एक समान मानकर मापदण्ड की एक ही पद्धति अपनाई हैऔर उपन्यास की भाँति कहानी के भी छ: तत्व माने हैं:

 

1 कथानक :- 

कथानक का अर्थ है कहानी में प्रयोग की गई कथावस्तु या वह वस्तु जो कथा में विषय रूप में चुनी गई हो। कहानी में सामाजिकधार्मिकऐतिहासिकवैज्ञानिक आदि में से किसी एक विषय को लेकर घटना का विकास किया जाता है। कथानक में स्वाभाविकता लाने के लिए उसमें यथार्थकल्पनामनोविज्ञान आदि का समावेश यथोचित रूप में किया जाता है। कथानक के विकास की चार स्थितियाँ मानी गई है- आरम्भविकासचरमोत्कर्ष और अन्त ।

 

कहानी का आरम्भ रोचक ढंग से होना चाहिए ताकि पाठक के मन में आगे की घटनाओं के लिए जिज्ञासा उत्पन्न हो सके। जिससे पाठक कहानी में इस कदर डूब जाये कि उसके मन में कहानी को शीघ्रातिशीघ्र समाप्त करने का लालच आ जाय। विकास अथवा आरोह में घटना क्रम सहजता और पात्रों के स्वाभाविक मनः स्थिति का विकास दिखाया जाना चाहिए। जिससे पाठक को कथानक समझने में आसानी एंव संपूर्ण कथानक उसके मन-मस्तिष्क में एक चलचित्र की भाँति चलने लगे। तीसरी स्थिति चरमोत्कर्ष वह अवस्था है जहाँ पर कहानी की रोचकता में क्षणभर के लिए स्तब्धता आ जाती है। पाठक कहानी का अन्तिम फल जानने के लिए उत्तेजित हो उठता है एंव वह अनायास ही कयास लगाने लगता है। कहानी के अन्त में परिणाम निहित रहता हैजिससे पाठक को सकून की अनुभूति प्राप्त होती है। अतः कहानी का उद्देश्य एंव कथानक स्पष्ट होना चाहिए। यह न तो विस्तृत होना चाहिए और न ही बिलकुल संक्षिप्त होना चाहिए।

 

हिमांशु जोशी की कहानी 'तरपनका कथानक मधुली नामक विधवा स्त्री के घर से प्रारंभ होता हैजिसका पति की सरकारी सुरंग निर्माण के दौरान मृत्यु हो जाती है। उसकी तेरहवीं पर मृतक की आत्मा की शान्ति के लिये तरपनतर्पणद्ध करने के लिये मधुली के पास धनाभाव होता है जिसके लिये वह दर दर भटकती है। अंततः वह कोसी के तट पर मिट्टी की गाय बना अपने पति का तर्पण स्वयं करती है।

 

कहानी का अन्त पाठक की समस्त जिज्ञासुओं को शान्त कर देता है परन्तु बदलते परिवेश एंव लेखन में आये बदलाव में आजकल कुछ कहानीकार परिणाम को अस्पष्ट रखकर पाठको को मनन की स्थिति में छोड़ देते हैं। 


2 पात्र एवं चरित्र-चित्रण :- 

किसी भी कहानी में कथानक के बाद पात्रों का स्थान महत्वपूर्ण होता है। कहानी में पात्रों की कम संख्या अपेक्षित है। कथानक को पात्र ही गति देता है अन्यथा कथानक निरर्थक हो जाता है। कहानीकार कथानक के मुख्य भाव को पात्रों के माध्यम से ही प्रस्तुत करता है । कहानी में मुख्य रूप से तीन प्रकार के पात्र होते हैं- मुख्य पात्रसहायक पात्र एंव गौण पात्र । कहानी वैसे तो मुख्य पात्रों के इर्द-गिर्द घुमती रहती है परन्तु सहायक एंव गौण पात्रों के माध्यम से लेखक कहानी में रोमांचरहस्य एंव हास्य आदि भावों का पुट देता रहता है। पात्रों के सटीक चरित्र चित्रण से कहानी ज्यादा मोहकप्रभावशाली एंव शिक्षाप्रद हो जाती है। कहानी के मुख्य पात्र समाज के लिए प्रेरणा स्रोत एवं बच्चों के आदर्श बन जाते हैंतथा वे जीवन में वैसा ही बनने का प्रयास करते हैं।

 

तरपन कहानी की मुख्य पात्र मधुली है और समस्त कथानक उसके आस पास ही घूमता है। इसके अतिरिक्त कहानी में उसका पति तुलसासाहुकार कंसाब्राह्मण आदि सहायक पात्र हैं जो कहानी को गतिशीलता प्रदान करते हैं।

 

3 कथोपकथन :- 

कहानी में कथा विकास और चरित्र विकास के लिए कथोपकथन सहायक होते हैं। पात्रों के आपसी संवाद या वार्तालाप को कथोपकथन कहा जाता हैं। कहानी में कथोपकथन से एक ओर घटना क्रम को बढ़ाया जाता है तो दूसरी ओर पात्रों की चरित्रगत विशेषताओं को दिखाया जाता है। संवाद में रोचकतासजीवता और स्वाभाविकता का गुण आवश्यक होता है। इसके साथ ही संवाद की भाषा पात्रों के अनुकूलपरिवेश के अनुरूपआकार में छोटे और प्रभावशाली होनी चाहिए। किसी भी कहानी में कथोपकथन उसकी अभिव्यक्ति एंव आम पाठक के बीच पैठ बनाने में सहायक होता है।

 

तरपननामक कहानी में पात्रों के संवाद मन को छू लेतें हैं। एक जगह मधुली तर्पण करने हेतु आये पंडित से कहती है, "बामणज्यू गरुण पुराण की सामर्थ्य मेरी कहाँमेरे पास तो जौं तिल बहाने के पैसे भी नहीं हैंगौ गास के लिए आटा नहीं है और बच्चे तीन दिन से भूखे हैं।" ये कथन मानव मन को उद्वेलित कर देतें हैं। 


4 वातावरण :- 

कहानी को सहज और स्वाभाविक रूप प्रदान करने के लिए उसके वातावरण का विशेष महत्व होता है। वातावरण से तात्पर्य है कहानी में प्रयोग किये गए विषय-वस्तु के आस- पास का परिवेश अर्थात् देश और काल का वर्णन करना । इसमें कहानीकार सामाजिक कहानियों में अपने युग का और ऐतिहासिक-पौराणिक कहानियों में पुरातन युग के इतिहासभूगोलसमाज आदि का चित्रण करते हैं। कहानी में घटनास्थानपात्रपात्रों की भाषा - वेशभूषा इत्यादि देश और काल के अनुसार ही की जाती है। कहानी जब दृश्य एंव श्रव्य माध्यम से समाज के सामने आती है तो उस देशकालपरिस्थितिभाषा-शैलीपहनावा तथा रहन-सहन से सभी परिचित हो जाते हैं। उदाहरणस्वरूप वर्तमान में अधिकांश धारावाहिकों में राजस्थान का चित्रण किया जा रहा हैइससे पूरा देश वहाँ की संस्कृति से परिचित हो रहा है। साथ ही बाल विवाह जैसी कुप्रथा प्रति जागरूकता बढ़ने लगी है। 


5 भाषा-शैली :- 

यहाँ आप कहानी में शैलीगत तत्त्व को जानने से पहले शैली के शाब्दिक अर्थ को समझेंगे। शैली का अर्थ है कथन पद्धति । सामान्य अर्थ में कहें तो कहने का एक अंदाज यानि ढंगतरीका जो उसे दूसरों से भिन्न दिखाये शैली है। भाषा शैली का सम्बन्ध कहानी के सभी तत्त्वों के साथ रहता है। कहानी की भाषा शैली सरलसुबोधसरस और धाराप्रवाह होनी चाहिए। भाषा शैली में शब्द चयनसुसंगठित वाक्य - विन्यासलक्षणा-व्यंजना आदि का प्रयोग उसकी महत्ता को बढ़ा देता है। कहानी की कई शैलियाँ हैजैसे कहानी में वर्णनात्मकसंवादात्मकपात्रात्मकआत्मकथात्मक और डायरी शैली में से किसी एक या एक से अधिक भाषा शैलियों को स्थान दिया जा सकता है।

 

कहानी की रचना में भाषा का अत्यंत महत्व होता है कहानी की भाषा सरलस्पष्ट एंव सुग्राही होनी चाहिए। यदि भाषा अधिक क्लिष्ट होगी तो ना तो यह साधरण पाठक को लुभा पायेगी और ना यह कहानी के उद्देश्य को ग्रहण कर पायेगी। अतः कहानी में भाषा ऐसी हो जो सुग्राहीकथानक एंव पात्रों के अनुरूप हो और जिसका प्रभाव व्यापक एवं गहरा हो। 


6 उद्देश्य :- 

प्रायः कहानी का उद्देश्य 'मनोरंजनमाना जाता हैपर विद्वानों के अनुसार कहानी किसी लक्ष्य- विशेष को लेकर चलती है और पाठक को भी वहाँ तक पहुँचा देती है। वस्तुतः कहानी का उद्देश्य यर्थाथ के सुरूचि पूर्ण वर्णन द्वारा उच्च आदर्शों का संदेश देना है। चूँकि कहानी में जीवन की जटिलताओंदैनन्दिन कार्यकलापों एवं व्यस्तताओं को उद्घाटित किया जाता है। अतः कहानी अपनी संक्षिप्तता और संप्रेषणता के द्वारा मनुष्य को जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करती है।

 

कहानी के छः तत्वों को ज्यो-का-त्यों स्वीकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि आजकल कई कहानियों में कथानक का वह स्वरूप नहीं मिलता जो समीक्षकों ने परम्परागत रूप में रखा है। कई कहानियों में संवाद होता ही नहीं है। इसी तरह केवल मनोरंजन के उद्देश्य से ही कई कहानियाँ नहीं लिखी जाती। अब तक कहानी की यात्रा अपने आरम्भ से लगातार परिवर्तनशील रही है। तो यह बात स्पष्ट हो जाती है कि उपर्युक्त छः तत्व आज की कहानी के लिए सीमा रेखा नहीं बना सकते। अतः परम्परा से चली आ रही मूल्यांकन दृष्टि को तोड़ना होगा।

 

इन सब कठिनाइयों को देखते हुए कथाकार और समीक्षक 'बटरोहीने कहानी के केवल दो तत्व बताए- (1) शाब्दिक जीवन प्रतिबिम्ब (2) उससे निःसृत होने वाली 'एकएवं 'प्रत्यक्ष' (मानवीय) संवेदना । वे स्पष्ट करते हैं कि जीवन- प्रतिबिम्ब के अंग के रूप में पात्र और वातावरण आ जाते हैंउनका आना अनिवार्य होऐसी बात नहीं हैं। बहुत बार कहानीकार के अलावा कहानी में कोई दूसरा पात्र नहीं होता। इस विधा के दो निम्नलिखित रचना-तत्व हैं : (अ) कथा-तत्व (ब) संरचना-तत्व।

 

कथा-तत्व’ से आशय परम्परागत रूप से चला आ रहा 'कथानकनहीं हैं अपितु जीवन-जगत के प्रतिबिम्बों का कथन और उनका प्रत्यक्षीकरण। घटनाओंक्रिया व्यापारों और चरित्रों के माध्यम से किसी एक संवेदना को जगाने के लिए अपनाया गया कथा - परिवेश । 'संरचना - तत्वइस कथन तत्व को या जीवन-जगत् के प्रतिबिम्बों को प्रभावशाली ढंग से विन्यासित करने वाले उपादन हैजिसे हम भाषासवांद और इनके द्वारा निर्मित वातावरणशैली आदि के रूप में देख सकते हैं। वस्तुतः ये दोनों तत्व परस्पर घुले-मिले रहते है और कहानी को प्रभावशाली बनाने में अपना योगदान देते हैं। संरचना-तत्व ही कहानी का 'रचनात्मक परिवेशहैजिससे कहानीकार संवेदना प्रभावपूर्ण चित्रण प्रस्तुत करता है। 

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