भावानुवाद | भावानुवाद किसे कहते हैं | Hindi Me Bhavaanuvad

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 भावानुवाद

भावानुवाद | भावानुवाद किसे कहते हैं | Hindi Me Bhavaanuvad


 

भावानुवाद : 

अनुवाद के स्वरूप एवं उसकी व्यावहारिकता पर बहुत पहले से चर्चा होती रही है । आधुनिक युग में इसे स्रोत भाषा (एसएल) के संदेश को पहले अर्थ और फिर संदेश का (टीएल) भाषा में निकटतमस्वाभाविक तथा तुलनात्मक उपादान प्रस्तुत करते हैं । भावानुवाद के समय मूल की शब्दावलीवाक्य संचरना एवं कुल मिला कर वह प्रोक्ति एक इमाई रूप में सामने रहती हैं। पूरे की लक्ष्य भाषा में नये रूप में संकल्पना कर ली जाती है और लक्ष्य भाषा में नया रूप दिया जाता है ।

 

इसमें मूल के शब्दों और मुहावरोंकहवातों आदि की समतुल्य शब्दावलीपदावली अथवा मुहावरोंकहावतों डालने की समस्या बहुत कम हो जाती है । लक्ष्य भाषा का वह रूप उसमें उपलब्ध शब्दपदमुहावरे लेकर प्रस्तुत कर देते हैं

 

गद्य एवं काव्य दोनों में ही यह प्रयोग संभव है । काव्य में तो वह भाषा ही सामान्य से कुछ हट कर होती है अतः लक्ष्य में वह वैसी काव्यभाषा बना कर प्रस्तुत करता है । इसमें मूल के छंदअलंकारबिम्ब विधान आदि पूरी तरह बदल जाते हैं लेकिन मूल का भाव अथवा आशय अक्षुण्ण रखना जरूरी है । इसमें परिवर्तन कर देने पर वह एकदम नई कविता बन जाती हैं । अनुवाद नहीं रह जाती ।

 

यहाँ पर अनुवादक की क्षमता का पता चल जाता है । स्रोत भाषा के भावोंआशय को समझ कर, , उसमें व्यक्त विचारों की सीमाओं को समझ कर लक्ष्य भाषा की भाषाई प्रकृति के अनुरूप सुसंगत और तर्क संगत ढंग से लक्ष्य भाषा में प्रस्तुत करता है यह कार्य शब्दस अनुवाद अथवा सतही अनुवाद से एकदम भिन्न स्तर पर होता है । यहाँ चिंतन जरूरी है । उसे वह दृष्टि प्राप्त करनी होती है और लक्ष्य भाषा में मूल के भाव को सृजन करने की क्षमता भी होनी चाहिए अतः यह अत्यंत कठिनश्रमसाध्य और गहन स्तर पर समझ बूझ से ही संभव हो पाता है । केवल भाषान्तर शब्दांतर से यह कार्य भिन्न स्तर पर संपन्न होता है रचना के गूढ़ार्थ तक पहुँचे बिना भाव ग्रहण नहीं कर पाता फिर भावानुवाद भी संभव नहीं होता । इस प्रकार भावानुवाद में मूल के जीवंत विचार या अनुभव अथवा दोनों को लक्ष्य में संप्रेषणीय ढंग से व्यक्त करना होता है। यहाँ शब्दभाषा का भिन्न रूप उतना महत्व नहीं रखते जितना विचार अथवा भाव का. 

 

भावानुवादः संक्षेपतः हम इसे इस प्रकार कह सकते हैं -

 

1 ) मूल भाषा पाठ को समग्र इकाई मानें फिर अंशों का किस प्रकार ग्रहण कर समुचित ढंग से प्रतिस्थापन करे 

2) मूल पाठ में संरचित विचारअनुभवजीवन प्रकार्यमूल्यों से संबंधित लोकोक्तिमुहावरेअभिव्यक्ति के रूपांतरण की चुनौती स्वीकारे 

3) मूल पाठ के स्थानीय रंग और संस्कारों की व्याख्या अनुवाद की चुनौती । यहाँ विदेशी भाषा की मूल संस्कृति से परिचित कराना है । 

4) मूल पाठ के अभिप्रेत को उस स्तर पर लक्ष्य में प्रस्तुत करना है । 

5) मूल पाठ की संवेदना को ग्रहण कर लक्ष्य भाषा में प्रक्षेपित करना है । 

6) लक्ष्य भाषा में पाठ को नया रूप देने की चुनौती है मूल का सौन्दर्य उसकी प्रकृति और वह सृजनात्मकता हृदयंगम कर लक्ष्य में प्रेक्षित करना बड़ी चुनौती है । उदाहरणार्थ वक्रोक्तिसांकेतिकप्रतीकबिम्ब विधान आदि लक्ष्य भाषा के संस्कारों में संयोजित कर पाना बड़ी चुनौती है . 


यहाँ पर हम उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं जो भावानुवाद की दृष्टिशैली और समस्या का संकेत करते हैं :

 

1) मूल : "जिसमें दया और विवेक हैवही मेरी रानी है ।" 

लक्ष्य : woman with compassioned intellect is true Rani 

यहाँ अनुवादक ने मेरी रानी true rani और 'विवेक' -compassion 

2) मुख कांतिहीन हो गया 

his face went cold 

3) जी कैसा है तुम्हारा 

how are you feeling 

4) कितने छिछोरे हो - 

how shameful

 

इन उदाहरणों में शब्दानुवाद के बदले भावों को लक्ष्य भाषा में महत्व दिया है ।

 

 

शब्दांतरण :

 

दरजनों - scores 

खेत-खलिहान - field 

पांव छूना-  pay - respect 

जीता न छोड़ना - to kill 

क्रिया करम - cremation 

बैठिएतकल्लुफ न कीजिए - sit down

 

वाक्य - 

अब तुम से बहस कौन करे 

it is no use arguing with you

 

इस प्रकार हम देखते है कि भावानुवाद में मूलभाषा -लक्ष्य भाषा की संरचनात्मकसामाजिक प्रकार्यतासंस्कृतिक वैशिष्ट्रयसंप्रेषणीयता को ध्यान में रख करना होता है । यहाँ मूलके संदर्भपरिस्थिति और भाव पर ध्यान रखना होता है । समाज सांस्कृतिक संप्रेषणीय घटकों पर भी ध्यान रखना होता है. 

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