प्रेम काव्यधारा और विशेषताएं | Prem Kavya Dhara Ki Visheshtaayen

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प्रेम काव्यधारा में प्रेमाख्यानों के  विषय की विशेषताएँ

प्रेम काव्यधारा और विशेषताएं | Prem Kavya Dhara Ki Visheshtaayen

प्रेम काव्यधारा और विशेषताएं  


प्रेमकाव्य के कवियों में जायसीकुतुबनमंझन उसमान आदि प्रमुख हैं। इस शाखा के प्रतिनिधि कवि जायसी है। उनका 'पद्मावतहिंदी का प्रथम सफल महाकाव्य है। जायसी आदि प्रेममार्गी कवि सूफी मुसलमान हैपरन्तु उन्होंने अपनी सहिष्णुताउदारता आदि गुणों से हिन्दू मुस्लिम संस्कृति में एकता स्थापित करने का प्रयत्न किया। ये कवि 'प्रेम की पीर के कवि है। लौकिक प्रेमकथाओं के माध्यम से इन्होंने आध्यात्मिक प्रेम की व्यंजना की है ये कवि भी रहस्यवादी हैं। शुक्ल जी ने इन्हीं के  रहस्यवाद को शुद्ध भावात्मक रहस्यवाद माना है।

 

प्रेम काव्यधारा में प्रेमाख्यानों के  विषय की विशेषताएँ-

 

1. प्रेम काव्यधारा में प्रेम एक मादक तत्त्व के रूप में 

प्रेम काव्य धारा में प्रेम एक मादक तत्त्व के समान माना जाता है जिसकी खुमारी में सूफी साधक खुदा के नूर को उसकी अनुभूति को अभिव्यक्त करने में सफल होता है मिलन की स्थिति में उसे संसार की स्मति नहीं रहतीदेह का किंचित मात्र ध्यान नहीं रहता है। सूफियों की सम्पूर्ण साह ना प्रेम पर आश्रित है। उन्होंने ईश्वर को प्रियतम माना है। उनके लिए वह अमूर्त होता हुआ भी मूर्तिमान सौंदर्य हैमाधुर्य लोक का शासक है और प्रेम का प्रचारक है। प्रेमी कवि बरकतुल्ला ने कहा है कि कहींईश्वर कही प्रेमी और कहीं प्रियतम तथा कही स्वयं प्रेम है - 

"कहीं माशूक कर जानाकहीं आशिक सितां माना। 

कहीं खुद इश्क ठहरानासुनो लोगों सुखावानी ।। "

 

2. प्रेम काव्यधारा में नायक-नायिका: 

इन प्रेमकथाओं में नायक नायिकाओं को सांसारिक संबंधों के प्रति उदासीन दिखाया गया है। इन काव्यों के नायकों पर योगियों का प्रभाव दष्टिगत होता है। समस्त प्रेमाख्यानों के नायक योगी होकर ही निकले हैं और योग-साध् ना से ही उन्होंने सिद्धि प्राप्त की है। नायक को जीवन का और नायिका को ब्रह्म का प्रतीक माना गया है।

 

3. लोक दृष्टि 

प्रेम काव्य धारा की लोक दष्टि बड़ी ही सजग रही है। अपने आस-पास के विस्तत वातावरण से कहीं पर अदश्य की निराधार विस्तत कल्पना इन कवियों ने नहीं कीवरन उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन एवं संस्कृति का बड़ा सजीव चित्रण हुआ है सामाजिक जीवन के आनन्दोल्लास एवं मर्यादा के प्रतीक त्यौहारोंउत्सवसामाजिक रीतियों एवम् संस्कारों का वर्णन भी इन प्रेमाख्यानों में यत्र-तत्र प्राप्त होता है। माता-पिता की सेवास्त्री का समाज में स्थानश्वसुर-गह का भय आदि सामाजिक समस्याओं पर भी इन कवियों ने अपने विचार प्रकट किये हैं।

 

4. कथानक रूढ़ियाँ 

इन प्रेमाख्यानों के वर्णन विषय में एक बात यह ध्यान देने योग्य है। कि इनमें सिंहल यात्रा या उसके अभाव में किसी अन्य यात्रा का वर्णन अवश्य रहता हैं इसके अतिरिक्त अपभ्रंश के चारित काव्यों की कतिपय कथानक रूढ़ियों का भी इनमें समावेश हुआ हैयथा उजाड़नगर या वन में किसी सुंदरी से साक्षात्कार फिर राक्षस के हाथों से उसे छुड़ानानायिका चित्र निर्माणपशु-पक्षियों का मनुष्य की बातों में बोलना - एवं उनकी भाषा समझनानायक-नायिका के मिलन में अधिकांशतः शुक का योग आदि ।

 

5. काव्यादर्श प्रेरणा और प्रयोजनः 

यद्यपि हिंदी प्रेम काव्यधारा के कवियों का प्रमुख काव्यादर्श अध्यात्मविरह एवं प्रेम का चित्रण करना थाकिन्तु इसके साथ ही उनका काव्यादर्श यश की लालसालोक-हित एवं समाज कल्याणकान्तासम्मित उपदेश तथा सूफी- सिद्धान्तों एवं इस्लाम धर्म के प्रचार की भावना से भी संयुक्त था। संत कवियों में काव्य रचना के प्रति यश की कोई कामना नहीं रही है जबकि इसके विपरीत सूफी कवि यश की लालसा से भी काव्य-सजन में प्रक्त हुए है। यद्यपि उन्होंने काव्य के माध् यम से अपने आध्यात्मिक विचारों की अभिव्यक्ति की है।

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