प्राणायाम के प्रकार महर्षि पतंजलि के अनुसार | Types of Pranayam Maharishi Pantanjali

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प्राणायाम के प्रकार महर्षि पतंजलि के अनुसार

 

प्राणायाम के प्रकार महर्षि पतंजलि के अनुसार | Types of Pranayam Maharishi Pantanjali

प्रिय विद्यार्थियों महर्षि पतंजलि ने प्राणायाम को स्पष्ट करते हुये इसके भेदों का वर्णन किया है जो निम्न प्रकार से है-

 

"बाह्यभ्यान्तरस्तंभवृत्तिर्देषकालसंख्याभिः 

परिदृष्टो दीर्घसूक्ष्मः” (पाoयोoसू० 2/50)

 

  • बाह्यवृत्तिआभ्यन्तरवृत्ति और स्तम्भवृत्ति वाले (तीन प्रकार के होते हैंतथा वह देशकाल और संख्या द्वारा भली भाँति देखा हुआ दीर्घ व सूक्ष्म (होता जाता ) है। अर्थात प्राणायाम के तीनों भेदों वाह्य आभ्यान्तर व स्तम्भवृत्ति की अवधि व आवृत्ति देशकाल और संख्या के अनुसार ज्यादा लम्बी व सूक्ष्म होती है।

 

  • महर्षि पतंजलि ने इस सूत्र में प्राणायाम प्रक्रिया के भेदोंविधि व प्रभाव का स्पष्ट वर्णन किया है।

 

1 बाह्य वृत्ति प्राणायाम


  • श्वास को बाहर नियंत्रित रूप से निकाल कर उसकी स्वाभाविक गति का अभाव करना वाहयवृत्ति प्राणायाम हैइसे रेचक भी कहते है।
  •  अर्थात प्राणवायु को शरीर से बाहर निकाल कर रोकना ही वाह्य वृत्ति है। प्राणवायु को बाहर सुखपूर्वक रोकना होता है। साथ ही साथ यह आकलन करें कि प्राण बाहर कहाँ ठहरा हैकितने समय के लिये ठहरा हैऔर उतने समय में प्राण की गति की स्वाभाविक संख्या क्या हैइसे ही वाह्यवृत्ति प्राणायाम कहते हैं।
  • अभ्यास लगातार करते रहने पर यह दीर्घ अर्थात देर तक अथवा काफी समय तक रूके रहने वाला सूक्ष्म (हल्का) हो जाता है। अर्थात अनायास साध्य हो जाता है। 


2 आभ्यन्तर वृत्ति प्राणायाम 

  • श्वास अन्दर खींच कर उसकी स्वाभाविक गति का अभाव करना आभ्यन्तरवृत्ति प्राणायाम हैइसे पूरक भी कहा जाता है।

 

  • आभ्यन्तर वृत्ति के अन्तर्गत प्राणवायु को भीतर ले जाकर भीतर ही जितने काल तक सुखपूर्वक प्राणवायु को रोक सके रोके रहना होता हैप्राणवायु को रोकने के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना कि आभ्यन्तर देश में प्राण कहाँ ठहरा हैवहाँ कितनी देर तक सुखपूर्वक ठहरा और उतनी देर में प्राण की गति की स्वाभाविक संख्या का अनुमान लगाना हैइसे ही आभ्यन्तर के साथ ही पूरक प्राणायाम कहते हैं। 
  • इसका अभ्यास यदि निरन्तर करते रहे तो यह धीरे धीरे दीर्घ व सूक्ष्म होता जाता है।

 

3 स्तम्भ वृत्ति प्राणायाम

  • श्वास प्रश्वास दोनों गतियों के अभाव से प्राण को जहाँ है वहीं रोक देना स्तम्भवृत्ति कहलाता है। इसे कुम्भक प्राणायाम भी कहते हैं।

 

  • स्तम्भवृत्ति प्राणायाम के अन्तर्गत प्राणगति को रोकने का अभ्यास किया जाता है। इस प्राणायाम में प्राणवायु अपने स्वाभाविक क्रम से बाहर निकली हो अथवा भीतर गयी होजहाँ भी हो उसे वहीं रोक देनाउसकी गति को स्तम्भित कर देना है तथा इस बात का आकलन करना कि प्राण कहाँ रूके हैंकितने समय तक रूके हैंकितने समय तक सुखपूर्वक रूके हैंइस समय प्राण की स्वाभाविक गति की संख्या कितनी होती हैयही स्तम्भवृत्ति प्राणायाम है। इसे ही कुम्भक प्राणायाम भी कहते हैलम्बे समय तक अभ्यास बनाये रखने पर यह दीर्घ व सूक्ष्म हो जाता है।

 

  • प्राणायाम की तीन विधियों के द्वारा प्राण ऊर्जा का विस्तारप्राण का परिशोधनप्राण का परिमार्जन होता जाता है। परन्तु प्राणायाम की इस साधना में निरन्तरता नियमिता तथा धैर्य के साथ-साथ आहार - विहार का कठोर अनुशासन होना आवश्यक है। निरन्तर अभ्यास से साधक की योग्यता का आधार विकसित होता हैतथा चतुर्थ विधि के लिये साधक योग्य हो जाता है। 


4 बाह्य आभ्यन्तर विषयाक्षेपी

  • प्राणायाम के साधक जिन्होंने प्राणायाम की प्रक्रिया के तीनों प्राणायाम का सम्यक् अभ्यास किया हैउन साधकों के लिये चौथे प्राणायाम की स्वत् ही अनुभूति होने लगती हैक्योंकि यह प्राणायाम उन लोगों के लिये है जो सूक्ष्म चेतना का संस्पर्श पाकर परा प्रकृति की झलक पा चुके हों ।

 

प्राणायाम के इस भेद को महर्षि पतंजलि ने अगले सूत्र में वर्णित किया है- 

"बाह्यभ्यन्तर विषयाक्षेपी चतुर्थः ।" (पाoयोoसू० 2/51)

 

अर्थात बाहर और भीतर के विषयों का त्याग कर देने से अपने आप होने वाला चौथा प्राणायाम है।

 

  • बाहर व भीतर के विषयों का चिंतन का परित्याग कर देने से अर्थात इस विषय पर ध्यान न देकर कि इस समय प्राण बाहर निकल रहे हैया भीतर जा रहे हैंअथवा चल रहे हैकि ठहरे हुये हैंतथा मन को ईष्ट चिंतन में लगा देने से संख्या और काल के ज्ञान के बिना ही आने आप जो प्राणों की गति जिस किसी देश में रूक जाती हैवह चौथा प्राणायाम है।

 

स्वामी हरिहरानंद -

 

चिरकाल तक अभ्यस्त होकर जब बाह्य और अभ्यान्तर वृत्तियाँ अति सूक्ष्म होती हैंतब उसका आक्षेप या अतिक्रमपूर्वक जो स्तंभवृत्ति होती हैवही चतुर्थ स्तम्भ वृत्ति है। प्रिय विद्यार्थियोंमहर्षि पतंजलि ने आसन के सिद्ध होने पर श्वास प्रश्वास की गति में विच्छेद ही प्राणायाम बताया हैतथा प्राणायाम के चार प्रकार बताये हैं। प्राचीन एवं आधुनिक योग विषय ग्रन्थों में प्राणायाम के अलग-अलग प्रकार बताये गये हैं जो निम्नलिखित है -


हठप्रदीपिका के अनुसार 

"सूर्यभेदनमुज्जायी सीत्कारी षीतली तथा,.

भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा प्लाविनीत्यष्ट कुम्भकाः ।।" (2/44) 


अर्थात

सूर्य भेदनउज्जायीसीत्कारीशीतलीभस्त्रिकाभ्रामरीमूर्च्छा प्लाविनी ये आठ प्रकार के कुम्भक हैं। यहाँ प्राणायाम को कुम्भक कहा गया है।

 

घेरण्ड संहिता के अनुसार

 

सहितः सूर्यभेदष्च उज्जायी षीतली तथा

भस्त्रिका भ्रामरी मूर्च्छा केवली चाष्टकुम्भकाः ।।"


  • अर्थात सहितसूर्य भेदनउज्जायी शीतली भस्त्रिकाभ्रामरीमूर्च्छा और केवली ये आठ प्रकार के प्राणायाम हैं।


  • इस प्रकार हठप्रदीपिका एवं घेरण्ड संहिता में आठ आठ प्रकार के प्राणायामों का वर्णन किया गया है।

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