संयम क्या होता है समझाइए, संयम का फल |संयम का चित्तभूतियों में क्रमिक विनियोग | Sayam Kya Hota Hai

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विभूतियों  का वर्णन 

संयम क्या होता है समझाइए, संयम का फल |संयम का चित्तभूतियों में क्रमिक विनियोग | Sayam Kya Hota Hai


संयम क्या होता है समझाइए, संयम का फल ,संयम का चित्तभूतियों में क्रमिक विनियोग 


सामान्य परिचय  

पाठको विभूति नाम ऐश्वर्य का है, जिसको योगसिद्धि कहते हैं। "योग भास्वती में " कहा है- "काय-चित्तेन्द्रियाणामभीष्ट उत्कर्ष सिद्धि" अर्थात शरीर, मन और इन्द्रियों के अद्भुत शक्ति का आविर्भाव सिद्धि है। ये विभूतियॉ संयम द्वारा ही साध्य हैं। अतः विभूति को समझने से पहले हम संयम का अध्ययन संक्षिप्त में करेगें।

 

संयम क्या होता है समझाइए

 

"संयम" योगदर्शन का पारिभाषिक पद है। योग के अन्तिम तीन अंग धारणा, ध्यान और समाधि जो विवेकख्याति के अंतरंग साधन भी है, उन तीनों का एकत्रीकरण "संयम" कहलाता है

 

यथा : 

त्रयमेकत्र संयमः।। (पाoयो0सू० 3 / 4 )

 

इन तीनों को संयम उस समय कहते हैं जब ये तीनों (धारणा, ध्यान और समाधि ) किसी एक ही विषय में संलग्न हों। यदि धारणा किसी अन्य विषय में हो एवं ध्यान और समाधि भी अलग-अलग विषय में हो तो उस स्थिति में इन तीनों का समुदाय सयंम नहीं कहलाता है। इसी लिए महर्षि पतंजलि ने सूत्र में एकत्र शब्द का प्रयोग कर उसके अर्थ को स्पष्ट कर दिया है। अतः यह स्पष्ट है, कि धारणा से ध्यान और ध्यान से समाधि होती है। यह एक अनिवार्य क्रम है। इसी प्रक्रिया का नाम संयम है। संयम के द्वारा साधक का इन प्रक्रियाओं पर पूर्णतया नियंत्रण हो जाता है, और संयम करने पर संयम के विषय पूर्णरूपेण चित्त के अधीन हो जाते है।

 

संयम का फल : 

संयम जय होने पर प्रज्ञालोक की प्राप्ति होती है।

 

यथा :- तज्जयात्प्रज्ञालोकः ।। ( पाoयो0सू० 3 / 5 )

 

संयम के सुदृढ़ होने पर समाधिजन्य बुद्धि निर्मल हो जाती है इस समाधिजन्य बुद्धि के प्रभाव से योगी का संयम विपर्यय रहित ध्येयतत्त्व का प्रत्यक्ष होता है। एक मात्र ध्येय को विषय बनाने वाली शुद्ध सात्त्विक रूप से बुद्धि का प्रवाहित होना " प्रज्ञालोक " कहलाता है। इसी को समधिपाद में अध्यात्म प्रसाद और ऋतम्भरा प्रज्ञा के नाम से वर्णित किया गया है। यही प्रज्ञा अलौकिक कार्य करने की क्षमता प्रदान करती है। ज्ञान शान्ति का यह उच्चतम शिखर है ।

 

संयम का चित्तभूतियों में क्रमिक विनियोग

 

चित्तभूमियों में संयम के क्रमिक विनियोग से विवेकज्ञान की प्राप्ति होती है। 

यथा :- 

तस्य भूमिषु विनियोगः ।। ( पाoयोoसू० 3 / 6 ) 

अर्थात 

पहले स्थूलवृत्ति वाली जो निम्न श्रेणी की चित्तभूमि है, उन पर विजय प्राप्त करनी चाहिए। तत्पश्चात ऊँची सूक्ष्म वृत्ति वाली भूमि (चित्त) में संयम करना चाहिए। स्थूल भूतियों को जीते बिना सूक्ष्म में संयम करना और विवेकज्ञान की प्राप्ति दुष्कर कार्य है। संयम उपरान्त प्राप्त विभूतियों से जिज्ञासु को यह निश्चय अवश्य हो जाएगा कि जब अनात्म पदार्थ विषयक समाधि से कायिक, मानसिक और ऐन्द्रिक विभूतियाँ भी प्राप्त होती हैं तब पुरूष विषयक समाधि से पुरूष साक्षात्कार द्वारा कैवल्य पद प्राप्ति भी अवश्य होगी। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक योगाभ्यास में जिज्ञासुजन अवश्य प्रवृत्त होगें, इसीलिए विभूतिपाद में विभूतियों का संयोजन सार्थक है।

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