ईश्वर का स्वरुप | वेदों में वर्णित ईश्वर का स्वरुप | Form of God according Veda

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ईश्वर का स्वरुप (Form of God)वेदों में वर्णित ईश्वर का स्वरुप  

ईश्वर का स्वरुप | वेदों में वर्णित ईश्वर का स्वरुप | Form of God according Veda


 

ईश्वर का स्वरुप (Form of God)

सर्वप्रथम सृष्टि के आदि ग्रन्थ वेद में वर्णित ईश्वर स्वरुप पर विचार करते हैं 


वेदों में वर्णित ईश्वर का स्वरुप  

वेदों में ईश्वर स्वरुप पर प्रकाश डालते हुए कहा गया कि वह ब्रह्म (ईश्वर) अद्वितीयजगतकर्तासर्वव्यापक और सर्वशक्तिमान है। वह सभी भुवनों (ग्रहों एवं उपग्रहों ) का एक तथा समस्त विश्व का एक स्वामी है। उस परम सत्ता को परम पुरुष सृष्टि का अध्यक्षदेवों का देव तथा ब्रह्म आदि नामों से कहा जाता है। वह ब्रह्म सूक्ष्माति सूक्ष्म हैइसलिए जब जिज्ञासु उसका साक्षात्कार कर लेता है तो मानों वह समस्त भुवनों का साक्षात्कार कर लेता है। विद्वानजन एवं योगीजन इस सर्वव्यापक परमानन्द ईश्वर स्तुतिप्रार्थनाउपासना व भक्ति विशेष करते हुए आनन्द की अनुभूति करते हैं। उस परमात्मा की महिमा का गुणगान एवं स्वरुप को स्पष्ट करते हुए यजुर्वेद में पुनः कहा गया-

 

ओ३म् हिरण्यगर्भः समवर्मताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । 

स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ।। (यजु० 13/4)

 

अर्थात

स्वप्रकाशरुप प्रभु उत्पन्न हुये सम्पूर्ण जगत का एक ही स्वामी हैं। वह जगत से पूर्व वर्तमान था। वही भूमि व सूर्यादि को धारण कर रहा हैं। हम लोग उसी परमात्मा के लिये यज्ञ करें

 

वेदों में ईश्वर को अग्निवायुचन्द्रमायमब्रह्म और प्रजापति आदि नामों से पुकारा जाता है। वह ईश्वर शरीर रहितशुद्धनस-नाड़ियों से रहितपापों से रहितकविमनीषीपरिभू और स्वयम्भू आदि विशेषणों से युक्त है। उस सर्वव्यापक परमात्मा के अत्यन्त आनन्द स्वरूप प्राप्तव्य मोक्ष पद को योगीजन सदैव सर्वत्र व्याप्त इस प्रकार देखते हैं जैसे कि स्वच्छ आकाश में देदीप्यमान सूर्य के प्रकाश में नेत्रा की दृष्टि व्याप्त होती है। इसी प्रकार ईश्वर भी स्वयं प्रकाश स्वरूप सर्वत्र व्याप्त हो रहा है। उस ईश्वर का मुख्य नाम 'ऊँहैवह आकाश की तरह व्यापक है

 

ओ३म् खं ब्रह्म पुनातु सर्वत्र ।। यजु० 40/17)

 

इस सर्वव्यापक ईश्वर के स्वरूप का ध्यान अर्थात उसकी उपासना क्यों करेउससे क्या लाभ एवं प्रभाव प्राप्त होगाइस विषय को स्पष्ट करते हुए यजुर्वेद में कहा गया-

ओ३म् य आत्मदा बलदा यस्य विश्व उपासते प्रशिषं यस्य देवाः । 

यस्यच्छायाऽमृतं यस्य मृत्युः कस्मै देवाय हविषा विधेम ।। (यजु० 25/13) 


जो आत्मज्ञान और बल का देने वालाजिसकी सब विद्वान उपासना करते हैं और जिसकी छाया अर्थात आश्रय मोक्षसुखदायक और जिसका ना मानना अर्थात भक्ति ना करना मृत्यु आदि दुख का हेतु हैहम लोग उसी परमात्मा की उपासना करें।

 

जिज्ञासु पाठकोंवेदों में ईश्वर के सर्वव्यापक स्वरुप को वर्णित किया गया है अर्थात वह ईश्वर चारों दिशाओं में ऊपर-नीचे एवं सर्वत्र विद्यमान है। अथर्ववेद में ईश्वर के सर्वव्यापक स्वरुप की व्याख्या करते हुए कहा गया

 

ओ३म् प्राची दिगग्निरधिपतिरसितो रक्षिताऽदित्या इषवः । 

तेभ्यो नमोऽधिपतिभ्यो नमो रक्षितृभ्यो नम इषुभ्यो नम एभ्यो अस्तु । 

यो३स्मान् द्वेष्टि यं वयं द्विष्मस्तं वो जम्भे दध्मः (अर्थ० 03/27/01)

 

हे सर्वज्ञ ईश्वरआप हमारे सम्मुख की ओर विद्यमान हैंस्वतंत्र राज और रक्षा करने वाले हैं। आपने सूर्य को रचा है जिसकी किरणों द्वारा पृथ्वी पर जीवन आता है। आपके आधिपत्यरक्षा और जीवन प्रदान के लिए प्रभो आपको बारम्बार नमस्कार है। जो हमसे द्वेष करता है अथवा जिससे हम द्वेष करते हैंउसे हम आपकी न्यायरुपी सार्मथ्य पर छोड़ देते हैं।

 

ऋग्वेद में ईश्वर के वृहद स्वरुप एवं अनन्त महिमा का गान करते हुए कहा गया कि ईश्वर ब्रह्माण्ड का रचयिता है उसने पूर्व सर्ग के समान सूर्य और चन्द्र लोक को बनायाद्युलोकपृथिवी लोकअन्तरिक्ष एवं अन्य सुखमय लोक निर्मित किए। वही समस्त ब्रह्माण्ड का एकमात्र पति ( पालन करने वाला) है जो चराचर जगत से पूर्ण विद्यमान था ।

 ओ३म सूर्याचन्द्रमसौ धाता यथापूर्वमकल्पयत् दिवञचान्तरिक्षमथो स्वः। 

ऋग्वेद 10/190 / 01 )

 

अर्थात सारे जगत को धारण करने वाले ईश्वर ने सूर्य और चन्द्र को पूर्वकल्प के समान रचा प्रकाशयुक्त प्रकाशरहित लोक तथा अन्तरिक्ष को भी रचा। सामवेद ईश्वर को 'इन्द्रशब्द से अभिहित करता है जो सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का शासक एवं समस्त विश्व में विराजमान है।

 

आर्य समाज के प्रर्वतक महर्षि दयानन्द सरस्वती वेदों में वर्णित ईश्वर स्वरुप की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि ईश्वर सच्चिदानन्द स्वरूपनिराकारसर्वशक्तिमानन्यायकारीदयालुअजन्माअनन्तअनादिनिर्विकारअनुपमसर्वाधारसर्वेश्वरसर्वव्यापकसर्वान्तर्यामीअजरअमरअभयनित्यपवित्र और सृष्टिकर्ता हैउसी की उपासना करने योग्य है।

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