कादम्बरी का कला एवं हृदय पक्ष
कादम्बरी का कला एवं हृदय पक्ष
➽ बाण की कादम्बरी में प्रकृति के सौम्य तथा उग्र रूप का वर्णन जितना रोचक है, उतना ही रोचक है उसके नाना वस्तुओं का वर्णन है। वर्णनों को संश्लिष्ट तथा प्रभावोत्पदक बनाने के लिए, भावों में तीव्रता प्रदान करने के हेतु बाण ने उपमा, उत्प्रेक्षा, श्लेष, विरोधाभास आदि अलंकारों का बड़ा सुन्दर प्रयोग किया है, परन्तु 'परिसंख्या' अलंकार के तो वे सम्राट् प्रतीत होते हैं । ही बाण के समान किसी अन्य कवि ने 'श्लिष्ट परिसंख्या' का इतना चमत्कारी प्रयोग शायद ही किया हो । इन अलंकारों के प्रयोग ने बाण के गद्य में अपूर्व जीवनी शक्ति डाल दी है। आदर्श गद्य के जिन गुणों का उल्लेख बाण ने हर्ष चरित में किया है वे उनके गद्य में विशदत है-
नवोऽर्थो जातिग्राम्या श्लेषोऽक्लिष्ट: स्फुटो रसः ।
विकटारक्षरबन्धश्च कृत्स्नमेकत्र दुर्लभम् ॥
➽ अर्थ की नवीनता, स्वाभावोक्ति की नागरिकता, श्लेश की स्पष्टता, रस की स्फुटता, अक्षर की विकटबन्धता का एकत्र दुर्लभ सन्निवेश कादम्बरी को मंजुल रसपेशल बनाये हुए है । उनके श्लेष- प्रयोग जूही की माला में पिरोये गये चम्पक पुष्पों के समान मनमोहक होते हैं निरन्तरश्लेषघनाः सुजातयो महास्रजश्चम्पककुड्मलैरिव। 'रसनोपमा' का यह उदाहरण कितना मनोरम है-क्रमेण च कृतं में वपुषि वसन्त इव मधुमासेन, मधुमास इव नवपल्लवेन, नवपल्लव इव कुसुमेन, कुसुम इव मधुकरेण, मधुकरेण इव मदेन नवयौवनेन पदम् ।
➽ कादम्बरी में हृदयपक्ष का प्राधान्य है। कवि अपने पात्रों के अन्तस्तल में प्रवेश करता है, उनकी अवस्था - विशेष में होने वाली मानस वृत्तियों का विश्लेषण करता है तथा उचित पदन्यास के द्वारा उसकी अभिव्यक्ति करता है। पुण्डरीक के वियोग में महाश्वेता के हार्दिक भावों की रम्य अभिव्यक्ति बाण की ललित लेखनी का चमत्कार हैं चन्द्रापीड के जन्म के अवसर पर राजा तथा रानी के हृदयगत कोमल भावनाओं का चित्रण बड़ा ही रमणीय तथा तथ्यपूर्ण हुआ है ।
➽ चन्द्रापीड के प्रथम दर्शन के अनन्तर स्वदेश लौट आने पर कादम्बरी के भावों का चित्रण कवि के मनोवैज्ञानिक विश्लेषण का सुन्दर निदर्शन है। बाण की दृष्टि में प्रेम भौतिक सम्बन्ध का नामान्तर नहीं है, प्रत्युत वह जन्मान्तर में समुद्भूत आध्यात्मिक संबंध का परिचायक है ।
➽ कादम्बरी ‘जन्मान्तरसौहृदय' का सजीव चित्रण हैं विस्मृत अतीत था जीवित वर्तमान को स्मृति के द्वारा एक सूत्र में बाँधनेवाली यह प्रणयकथा हैं बाणभट्ट ने दिखलाया है कि सच्च प्रेम और समाज की मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता। वह संयत तथा निष्काम होता है। काल की कराल छाया न उसे आक्रान्त कर सकती है, न काल का प्रवाह उसकी स्मृति को मलिन और धुँधला बना सकता है। महाश्वेता तथा पुण्डरीक का, कादम्बरी तथा चन्द्रापीड का अनेक जन्मों में अपनी चरितार्थ तथा सिद्धि प्राप्त करनेवाला प्रेम इस आदर्श प्रणय का सच्चा निदर्शन है।