माघ और भारवि |माघ की विशेषताएँ (विद्वत्ता) | Magh Aur Bharavi Visheshtaayen

Admin
0

माघ और भारवि ,माघ की विशेषताएँ (विद्वत्ता)  (Magh Aur Bharavi Visheshtaayen)

माघ और भारवि ,माघ की विशेषताएँ (विद्वत्ता)  (Magh Aur Bharavi Visheshtaayen)


माघ और भारवि 

  • माघ के महाकवि होने में तनिक भी सन्देह नहीं है। माघ ने साम्प्रदायिक प्रेम से उत्तेजित होकर अपने पूर्ववर्ती 'भारविसे बढ़ जाने के लिए बड़ा प्रयत्न किया। 
  • भारवि शैव थेजिनका काव्य शिव के वरदान के विषय में हैमाघ वैष्णव थेजिन्होंने विष्णु विषयक कहाकाव्य की रचना की । वह स्वयं अपने ग्रन्थ को 'लक्ष्मीपतेश्चरितकीर्तनमात्र विषयक महाकाव्य की रचना की। वह स्वयं अपने ग्रन्थ को 'लक्ष्मीपतेश्चरितकीर्तनमात्रचारूकहते हैं। 

  • भारवि की कीर्ति को ध्वस्त करने में माघ ने कुछ भी उठा नहीं रक्खा ।'किरातार्जुनीय’ को अपना आदर्श मानकर भी माघ ने अपने काव्य में बहुत कुछ अलौकिकता पैदा कर दी है। 


  • किरात के समान ही माघ-काव्य भी मंगलार्थक 'श्रीशब्द से आरम्भ होता है। किरात के आरम्भ में श्रियः कुरूणामधिपस्य पालनीहैउसी प्रकार माघ के प्रारम्भ में श्रियः पतिः श्रीमति शासितुं जगत्है । 


  • भारवि ने किरात में प्रत्येक सर्ग के अन्त में 'लक्ष्मीशब्द का प्रयोग किया है। माघ ने इसी तरह अपने काव्य के सर्गान्त पद्योमें 'श्रीका प्रयोग किया है।

 

  • शिशुपालवध तथा किरातार्जुनीय के वर्ण-कर्म में समानता है। दोनों महाकाव्यों के प्रथम सर्ग में सन्देश-कथन है। दूसरे सर्ग में राजनीति-कथन है। अनन्तर दोनों में यात्रा का वर्णन है। ऋतु वर्णन भी दोनों में है- किरात के चतुर्थ सर्ग में तथा माघ के षष्ठ सर्ग में । 


  • पर्वत का वर्णन भी एक समान है- किरात के पाँचवें सर्ग में हिमालय का तथा माघ के चौथे सर्ग में रैवतक पर्वत का 
  • अनन्तर दोनों में संध्याकालअंधकारचन्द्रोदयसुन्दरियों की जलकेलि आदि विषयों के वर्णन कई सर्गो में दिये गये है। 
  • किरात के तेरहवें तथा चौदहवें सर्ग में अर्जुनतथा किरातरूपधारी शिव में बाण के लिये वाद-विवाद हुआ हैमाघ के सोलहवें सर्ग में ऐसा ही विवाद शिशुपाल के दूत तथा सात्यकि के बीच हुआ है। 
  • किरात के पंद्रहवें तथा माघ के उन्नीसवें सर्ग में चित्रबंधों में युद्ध-वर्णन है। इस प्रकारसमता होने पर भी रसिक जन माघ के सामने भारवि को हीन समझते है

 

तावद् भा भारवेर्भाति यावन्माघस्य नोदयः। 

माघे सन्ति त्रयो गुणा: ।


  • उपमाअर्थ- गौरव तथा पदलालित्य इन तीनों गुणों का सुभग दर्शन ही में माघ की कमनीय कविता में होता है। बहुत से आलोचक पूर्वोक्त वाक्य को किसी माघ-भक्त पण्डित का अविचारितरमणीय हृदयोद्गार भले ही बतावें परन्तु वास्तव में पूर्वोक्त आभाणक में सत्यता है। 


  • माघ में कालिदास जैसी उपमाऐं भले न मिलेंफिर भी इनमें न सुन्दर उपमाओं का अभाव हैन अर्थगौरव की कमी। पदों का ललित विन्यास तो निःसन्देह प्रशंसनीय है। माघ की 'पदशय्याइतनी अच्छी है कि कोई भी शब्द अपने स्थान से हटाया नहीं जा सकता।

 

माघ की विशेषताएँ (विद्वत्ता) 

  • माघ केवल सरस कवि ही नहीं थेप्रत्युत एक प्रकाण्ड सर्वशास्त्र तत्वज्ञ विद्वान् भी थे। भारवि में राजनीति पटुता अवश्य दीख पडती हैश्रीहर्ष में दार्शनिकउद्भटता अवश्य उपलब्ध होती हैपरन्तु माघ में सर्वशास्त्रों का जो परिनिष्ठितज्ञान दृष्टिगोचर होता है वह उन दोनों कवियों में विरल है। उनमें भी पाण्डित्य हैपरन्तु वह केवल एकाङ्गी है । परन्तु माघ का पाण्डित्य सर्वगामी है। 


  • माघ का श्रुति-विषयक ज्ञान अत्यन्त प्रशंसनीय है । प्रातः काल के समय इन्होने अग्निहोत्र का सुन्दर वर्णन किया है। हवनकर्म में आवश्यक सामधेनी ऋचाओं का उल्लेख है (11/41) | वैदिक स्वरों की विशेषता भी आपको भली-भाँति मालूम थी स्वरभेद से अर्थभेद हो जाया करता है इस नियम का उल्लेख मिलता है (14/24)। एक पद में होनेवाला उदात्त स्वर अन्य स्वरोंको अनुदात्त बना डालता है- एक स्वर के उदात्त होने से अन्य स्वर 'निधातहो जाते हैं। 


  • इस स्वर-विषयक प्रसिद्ध नियम का प्रतिपादन माघ ने शिशुपाल के वर्णन में बडी सुन्दर रीति से किया है - निहन्त्यरीनेकपदे य उदात्त: स्वरानिव (2/95) 
  • चौदहवें सर्ग में युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ का बडा ही विस्तृत तथा सुन्दर वर्णन किया हुआ मिलता है। दर्शनों का भी विशिष्ट ज्ञानमाघ में दिखाई पड़ता है। सांख्य के तत्वों का निदर्शन अनेक स्थलों पर पाया जाता है। 
  • प्रथमसर्ग में नारद ने श्रीकृष्णचन्द्र की जो स्तुति की है (1/23) वह सांख्य के अनुकूल है। योगशास्त्र की प्रवीणता भी देखने में आती है। 'मैत्र्यादिचित्तपरिकर्मविदो विधायआदि (4/45) पद्य में चित्तपरिकर्मसबीजयोसत्वपुरूषान्यथाख्याति योगशास्त्र के पारिभाषिक शब्द हैं। 


  • आस्तिक दर्शनों को कौन कहे नास्तिक दर्शनों में भी माघ का ज्ञान उच्चकोटि का था। माघ बौद्धदर्शनों से भी भली-भाँति परिचित थे (2/28)। उसके सूक्ष्म विभेदों के भी ज्ञाता थे । वे राजनीति के भी अच्छे जानकार थे। बलराम तथा उद्धव के द्वारा राजनीति की खूबियाँ दिखलायी गयी हैं। 


  • माघ ने नाटयशास्त्र के विभिन्न अंगों की उपमा बडी सुन्दरता से दी है। माघ एक प्रवीण वैयाकरण थे। उन्होने व्याकरण के प्रसिद्ध ग्रन्थों का भी उल्लेख उन्होने किया है। 
  • माघ सांख्योग के पारखी कवि हैंतो श्रीहर्ष अद्वैत वेदान्त के मर्मज्ञ कवयिता है। माघ का ज्ञान ललित कलाओं में भी ऊँची कक्षा का था।
  • वे संगीतशास्त्र के सूक्ष्म विवेचक थे (माघ 11/1)। जगह थे जगह पर संगीत-शास्त्र के मूल तत्वों का निदर्शन कराया गया है। 
  • अलंकार - शास्त्र में माघ की प्रवीणता की प्रशंसा करना व्यर्थ है। वह तो कवि का अपना क्षेत्र है। माघ ने राजनीति के गूढ़ तत्वों का वर्णन किया है।

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top