प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ (प्रवत्तियाँ) । Pragativad kavya ki visheshta

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प्रगतिवादी काव्य की विशेषताएँ (Pragativad kavya ki visheshta)

प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख विशेषताएँ  (प्रवत्तियाँ) । Pragativad kavya ki visheshta

प्रगतिवादी काव्य की प्रमुख प्रवत्तियाँ

 

  • समय परिवर्तन के साथ परिवर्तन होता रहता है। वैचारिक राजनीतिक क्षेत्र में साम्यवादसामाजिक क्षेत्र में समाजवाद दर्शन के क्षेत्र में द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद हैवही साहित्यिक क्षेत्र में प्रगतिवाद है। 
  • इस प्रकार मार्क्सवादी दष्टिकोण से निर्मित काव्यधारा प्रगतिवाद है।

 

  • शोषक तथा शोषित वर्ग में समाज को बाँटकर यदि विचार किया जाए तो साम्यवाद का केन्द्र श्रमिक वर्ग ही है। प्रगतिवादी रचना में दलितमजदूर शोषित के प्रति विशेष भाव व्यक्त किया जाता है।

 

  • प्रगति का सामान्य अर्थ है- आगे बढ़नाजो साहित्य जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक हो वह प्रगतिशील साहित्य है। प्रगतिवादी कवियों में सुमित्रानंदन पंतशिवमंगला सिंहसुमनउदयशंकर भट्टनागार्जुननरेन्द्र शर्माकेदारनाथ अग्रवालराम विलास शर्मासूर्यकान्त त्रिपाठी निराला आदि

 

प्रगतिवादी काव्यधारा की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं

 

1. रूढ़ियों का विरोध- 

  • प्रगतिवादी कवियों का ईश्वर की सत्ताआत्मापरमात्मापरलोकभाग्यवादधर्मस्वर्गनरक आदि पर विश्वास नहीं है। उनकी दृष्टि में मानव की महत्ता सर्वोपरि है। उनके लिए धर्म एक अफीम का नशा है। प्रगतिवादी कवियों ने अंधविश्वास और रूढ़ियों पर गहरा प्रहार किया है।

 

2. शोषकों के प्रति विद्रोहशोषितों के प्रति सहानुभूतिः 

  • प्रगतिवादी कवियों ने शोषक वर्ग को घोर स्वार्थीनिर्दयी एवं कपटी के रूप में चित्रित किया है। इनकी मान्यता है कि पूँजीपति निर्धनों का रक्त चूस चूसकर सुख की नींद सोते हैं। वह बड़े व्यापारीजमींदार तथा उद्योगपति जैसे शोषकों के चिथड़े-चिथड़े होते हुए देखना चाहता है। उनकी दृष्टि में शोषण की नींव पर खड़े समाज का नष्ट हो जाना ही श्रेयस्कर है दिनकर के शब्दों में -

 

"श्वानों को मिलता वस्त्रदूध बच्चे अकुलाते हैं, 

माँ की हड्डी से चिपक ठिठुरजाड़ों की रात बिताते हैं।

 

  • इस काव्यधारा का मूल केन्द्र शोषित वर्ग है। कवियों ने शोषण से पीड़ित मजदूरों और किसानों की करुण दशा का सुन्दर चित्रण किया है। सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला', 'भिक्षुक का वर्णन इस प्रकार करते हैं -

 

"वह आता दो टूक कलेजे के करतापछताता पथ पर आता।"

 

3. क्रांति की भावना 

  • प्रगतिवादी कवियों ने शोषित वर्गों के प्रति सहानुभूति दर्शाने तथा प्राचीन परम्पराओं को नष्ट-भ्रष्ट करने के लिए क्रान्ति का आह्वान किया है। वे समानता स्थापित करने के लिए समाज में आमूलचूल परिवर्तन करना चाहते हैं। बालकृष्ण शर्मा 'नवीनकी यह पंक्तियाँ देखने योग्य हैं-

 

कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ, 

जिससे उथल-पुथल मच जाए।" 

4 यथार्थ चित्रण- 

  • प्रगतिवादी काव्य में निम्नवर्ग के जीवन की प्रतिष्ठा हुई। इससे पहले साहित्य में मध्यवर्ग तथा उच्चवर्ग का जीवन प्रतिबिम्बित हुआ था। कवियों ने प्रकृति के रमणीय चित्र खींचने की बजाय नगर और ग्रामीण जीवन के नग्न यथार्थ रूप का चित्रण किया है। शोषण के दुष्परिणाम दिखलाने के लिए उन्होंने ऐसा वर्णन किया है। निम्न वर्ग के कुरुचिपूर्ण जीवन के साथ उन्होंने सहानुभूति व्यक्त की है। एक उदाहरण देखिए -

 

"सड़े घूर की गोबर की बदबू से दबकर, 

महक जिन्दगी के गुलाब की भर जाती है।" 

-केदारनाथ अग्रवाल

 

  • कवि को व्यक्ति तथा समाज के कटु सत्यों के सामने ऐश्वर्यविलास एवं मादक वसंत सभी फीके लगने लगते हैं। जीवन के अनाचारपीड़ित की हाहाकार ने उसे व्यथित बना दिया है। ताजमहल के संबंध में पंत जी लिखते हैं-

 

"हाय मत्यु का ऐसा अमर अपार्थिव पूजन 

जब विषण्ण निर्जीव पड़ा हो जग का जीवन।"

 

इसी प्रकार भारत के ग्रामों का वर्णन करते हुए कवि पंत लिखते हैं

 

"यह तो मानव लोक नहीं हैयह है नरक अपरिचित । 

यह भारत का ग्राम सभ्यता संस्कृति से निर्वासित।"

 

5. मानवतावादी दष्टिकोण- 

  • प्रगतिवादी साहित्यकार मानव की शक्तियों पर असीम आस्था रखता है। उसके अनुसार ईश्वर नहींमानव ही अपने भाग्य का निर्माता है। ईश्वर के नाम पर हो रहे शोषण से कुपित होकर वह कहता है-

 

"जिसे तुम कहते हो भगवान 

जो बरसाता है जीवन में 

रोगशोकदुःख- दैन्य अपार 

उसे सुनाने चले पुकार ।" 

उसे ईश्वर पर आस्था नहीं है।

 

6. मार्क्स का गुणगान

  •  प्रगतिवादी कवियों ने इस बात का बिना विचार किए हुए कि रूस की मान्यताएं भारत के लिए उपयोगी हैं या नहींधारा के बहुत से कवियों ने मार्क्स और रूस का गुणगान किया है। पंत जी कार्ल मार्क्स के प्रति कुछ इस प्रकार के भाव प्रदर्शित करते हैं

 

"धन्य मार्क्स चिर तमाच्छन्न पथ्वी के उदय शिखर, 

तुम त्रिनेत्र के ज्ञात चक्षु से प्रकट हुए प्रलयंकर ।"

 

उपर्युक्त पंक्तियों में पंत जी ने मार्क्स को प्रलयंकारी शिव का तीसरा नेत्र बताया है तो नरेन्द्र शर्मा रूस का गुणगान करते हुए कहते हैं-

 

"लाल रूस है ढाल साथियों 

सब मजदूर किसानों की। "

 

7. सांस्कृतिक समन्वय

  • प्रगतिवादी साहित्यकार की दष्टि व्यक्तिपरिवारस्वदेश तक सीमित न होकर सम्पूर्ण विश्व तक व्याप्त है। उसका स्वर मान्यतावादी है। जापान के ध्वस्त नगरों की पीड़ा से वह भी व्यथित है। अतः यह क्रन्दन और चीत्कार कर पुकार उठता है-

 

"एक दिन न्यूयार्क भी मेरी तरह हो जाएगा 

जिसने मिटाया है मुझेवह भी मिटाया जाएगा।"

 

प्रगतिवादी कवि की दृष्टि में हिन्दुमुसलमानसिक्खईसाई सभी मानव के नाते बराबर हैं।

 

8 नारी भावना- 

  • प्रगतिवादी कवि नारी स्वतंत्रता का पक्षधर है। उसने नारी को पुरुष के समकालीन उसकी सहयोगिनी के रूप में स्वीकार किया है। साथ ही उसे उसका हक दिलाने के लिए प्रबल आवाज भी उठाई है। प्रगतिवादी कवि के लिए मजदूर तथा किसान के समान नारी भी शोषित है जो कि युग-युग से सामंतवाद की धारा में पुरुष की दासता की श्रंखलाओं में बन्दिनी के रूप में पड़ी है। वह अपना स्वतंत्र अस्तित्व खो चुकी है और वह केवल मात्र रह गई है पुरुष की वासना-तप्ति का उपकरण। अतः पंत कहते हैं-

योनि नहीं रे नारी, वह भी मानव प्रतिष्ठित है। 

उसे पूर्ण स्वाधीन करो, वह रे न नर पर अवसित ।। "

 

कवि पंत पुनः कहते हैं- मुक्त करो नारी को।"

 

9. वेदना चित्रण- 

  • प्रगतिवाद की वेदना संघर्षो से जूझने की सामाजिक वेदना है। निराशा के लिए उसमें कोई स्थान नहीं। प्रगतिवादी इसी संसार को स्वर्ग बनाना चाहते हैं जिसमें वर्ग भेद, शोषण और रूढ़ियों का नामोनिशान नहीं होगा। कवि निराला की बंगाल के अकाल पर अभिव्यक्ति वेदना हृदय को दहला देने वाली है-

 

"बाप बेटा बेचता है, भूख से बेहाल होकर

धर्म धीरज प्राण खोकर, हो रही अनरीति बर्बर 

राष्ट्र सारा देखता है। "

 

नागार्जुन आज की थोथी आजादी पर अपनी वेदना व्यक्त करते हुए कहते हैं-

 

"कागज की आजादी मिली 

ले लो दो-दो आने में।"

 

10. शिल्प योजना- 

  • प्रगतिवादी साहित्य जनता का साहित्य है। इसलिए उसकी भाषा भी जनभाषा है। भाषा सरल है। प्रगतिवादी कवियों का आदर्श था- जन-मन-तक अपने विचारों को पहुँचाना। इसके लिए उन्होंने बोलचाल की शब्दावली को भी ग्रहण किया है। प्रायः इस युग का साहित्य अमिधाप्रधान है। अलंकारों के सहज प्रयोग से अभिव्यक्ति स्पष्ट है। प्रगतिवादी काव्य में मुक्तक और अतुकान्त छंदों के साथ गीतों और लोकगीतों की शैली का भी प्रयोग किया गया है। प्रगतिवादी काव्य का अपना अलग महत्व है। वह जीवन के भौतिक पक्ष का उत्थान करना चाहता है। डॉ. नगेन्द्र के शब्दों में - "भारत में प्रगतिवाद का भविष्य साम्यवाद के साथ बंधा हुआ है। लेकिन फिर भी आधुनिक काव्य के अध्येयता को उसका अध्ययन आदर और धैर्यपूर्वक करना होगा। उसने हिंदी काव्य को जीवंत चेतना प्रदान की है। इसका निषेध नहीं किया जा सकता।" इस प्रकार प्रगतिवादी कविता का अपना महत्व है।

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