हास्य रस की कहानियां और कहानीकार । स्वतंत्र्योत्तर हिंदी कहानी युग । Hindi Hasya Ras Ki Kahaniyan

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हास्य रस की कहानियां और कहानीकार 

हास्य रस की कहानियां और कहानीकार । स्वतंत्र्योत्तर हिंदी कहानी युग । Hindi Hasya Ras Ki Kahaniyan


 

हास्य रस की कहानियां और कहानीकार 

  • हिंदी में हास्य रस की कहानियां लिखने वालों में जी.पी. श्रीवास्तवहरिशंकर शर्माकृष्ण प्रसाद गौड़बेढब बनारसीअन्नपूर्णानंदमिर्जा अजीम बेगचुगताई तथा जयनाथ नलिन आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। 
  • जी.पी. श्रीवास्तव की कहानियों में अत्यधिक वैविध्य उपलब्ध है। इनकी कहानियों में 'पिकनिक', 'भड़ाम सिंह शर्मा', 'गुदगुदीतथा 'लतखोरी लाल आदि महत्वपूर्ण हैं। उनका हास्य साधारण स्तर का है। बेढब बनारसीऔर 'अन्नपूर्णानंद की कहानियों में अधिक परिष्कृत हास्य मिलता है। 
  • अन्नपूर्णानंद की कहानियों में महाकवि चच्चा', 'मेरी हजामत', 'मगन रहु चोलाआदि उल्लेखनीय हैं। 
  • मिर्जा ने 'गीदड़ को शिकार', 'लेफ्टिनेंट', 'कोलतार आदि कहानियां लिखीं। 
  • नलिन के कहानी संग्रह में नवाबी सनक', 'शतरंज के मोहरेजवानी का नशा', 'टीलों की चमकआदि उल्लेखनीय हैं। 


स्वतंत्र्योत्तर हिंदी कहानी युग 


चतुर्थ चरण को स्वतंत्र्योत्तर हिंदी कहानी युग भी कहा जाता है। इस अवधि में तीन पीढ़ियों की लिखी कहानियां  आती हैं-


(1) यशपालजैनेंद्रभगवती चरण वर्मा जैसे पुरानी पीढ़ी के कहानीकार सक्रिय रहे। 

(ii) आजादी मिलने के समय वयस्क हो रही पीढ़ी के कहानीकारों राजेन्द्र यादवकमलेश्वरमन्नू भंडारीरेणुमोहन राकेश आदि ने खूब कहानियां लिखीं। 

(iii) सन् 1960 ई. के अंत में युवा पीढ़ी ने लिखना प्रारंभ किया जिसने स्वतंत्र भारत में आंखे खोली थीं। इस पीढ़ी के कहानीकारों में ज्ञानरंजनरवींद्र कालियाकामता नाथइब्राहिम शरीफहिमांशु जोशी तथा महीपाल सिंह आदि प्रमुख हैं।

 

  • स्वतंत्रता के बाद की हिंदी कहानी का इतिहास आंदोलन का इतिहास है। चार-पांच साल की अवधि बीतते-बीतते एक आंदोलन उठ खड़ा होता रहा जिसे लेकर खूब ढोल पिटे तथा नारे लगे। इसके परिणामस्वरूप कहानी एक गंभीर एवं केन्द्रीय विधा के रूप में प्रतिष्ठित हो गई। 
  • सन् 1950 ई. के बाद कहानी में एक नवीन मोड़ आया जिससे नई कहानीसचेतन कहानीअकहानी सहज और समानांतर कहानी के अलग अलग झंडे लहराने लगे। इस ढाई-तीन दशक की अवधि में ढेरों अच्छी बुरी कहानियां लिखी गई। नई कहानी के नई होने की घोषणा कमस्वतंत्रता पूर्व की कहानी के पुरानी हो जाने की घोषणा अधिक थी।
  • सन् 1950 ई. तक आते आते ऐसा प्रतीत होने लगा कि जैनेन्द्र की चौंकाने वाली दार्शनिक कथामुद्राअज्ञेय की सतही प्रगतिशील कहानियां तथा कथा एवं शिल्प के द्वंद्व में फंसी हुई यशपाल की कहानियों की प्रासंगिकता समाप्त प्राय है। 
  • ऐसा प्रतीत होता था कि या तो वे कहानीकार बुझ चुके हैं अथवा कहानी लेखन का आत्म विश्वास उन्हें अनाथ बनाकर चला गया है। ऐसी स्थिति में एकाएक कहानी के नएपन के आग्रह का उभर कर आंदोलन का रूप ग्रहण कर लेना आकस्मिक घटना नहीं अपितु पुराने के प्रति नए का विद्रोह तथा नवीन कहानी लेखक की तड़प तथा छपास है। 
  • हिंदी कहानी साहित्य की अभिवद्धि में महिला कहानीकारों ने भी कम योगदान नहीं किया है। सुभद्रा कुमारी चौहानउमा नेहरूशिवरानी देवीतेजरानी पाठकऊषा देवी मित्रासत्यवती मलिककमला देवी चौधरानीमहादेवी वर्माचंद्रप्रभातारा पांडेयचन्द्र किरण सौन रिक्शारामेश्वरी शर्मापुष्पा महाजनविद्यावती शर्मा आदि ने अनेक कहानियों की रचना की है। 
  • इनकी कहानियों में प्रायः पारिवारिक जीवन और हिंदी समाज में नारी की दारुण स्थिति के चित्र हैं। फिर वे जीवन के उस गरिमा द्वंद्व को उस व्यापक दृष्टि से आंकने में सफल नहीं हो सकी हैं जैसा कि विश्व के महान कहानीकारों ने किया है।

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