मध्यकालीन हिन्दी एवं प्रमुख रचनाकार। Madhya Kalin Hindi Pramukh Rachnakar

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मध्यकालीन हिन्दी एवं प्रमुख रचनाकार 

मध्यकालीन हिन्दी एवं प्रमुख रचनाकार। Madhya Kalin Hindi Pramukh Rachnakar



मध्यकालीन हिन्दी

 

  • मध्यकाल में हिन्दी का स्वरूप स्पष्ट हो गया तथा उसकी प्रमुख बोलियाँ विकसित हो गई। इस काल में भाषा के तीन रूप निखरकर सामने आए- ब्रजभाषा अवधी व खड़ी बोली। 
  • ब्रजभाषा और अवधी का अत्यधिक साहित्यिक विकास हुआ तथा तत्कालीन ब्रजभाषा साहित्य को कुछ देशी राज्यों का संरक्षण भी प्राप्त हुआ। इनके अतिरिक्त, मध्यकाल में खड़ी बोली के मिश्रित रूप का साहित्य में प्रयोग होता रहा।
  • इसी खड़ी बोली का 14वीं सदी में दक्षिण में प्रवेश हुआ, अतः वहाँ इसका साहित्य में अधिक प्रयोग हुआ। 18वीं सदी में खड़ी बोली को मुसलमान शासकों का संरक्षण मिला तथा इसके विकास को नई दिशा मिली।

 

मध्यकालीन हिन्दी प्रमुख रचनाकार

ब्रजभाषा: 

  • हिन्दी के मध्यकाल में मध्य देश की महान भाषा परंपरा के उत्तरदायित्व का पूरा निर्वाह ब्रजभाषा ने किया। यह अपने समय की परिनिष्ठित व उच्च कोटि की साहित्यिक भाषा थी, जिसको गौरवान्वित करने का सर्वाधिक श्रेय हिन्दी के कृष्णभक्त कवियों को है।
  • पूर्व मध्यकाल (अर्थात् भाक्तिकाल) में कृष्णभक्त कवियों ने अपने साहित्य में ब्रजभाषा का चरम विकास किया। पुष्टि मार्ग/शुद्धाद्वैत संपद्राय के सूरदास (सूर सागर), नंद दास, निम्बार्क संप्रदाय के श्री भट्ट, चैतन्य संप्रदाय के गदाधर भट्ट, राधा वल्लभ संप्रदाय के हित हरिवंश ( श्री कृष्ण की बाँसुरी के अवतार) एवं संप्रदाय-निरपेक्ष कवियों में रसखान, मीराबाई आदि प्रमुख कृष्णभक्त कवियों ने ब्रजभाषा के साहित्यिक विकास में अमूल्य योगदान दिया।
  • इनमें सर्वप्रमुख स्थान सूरदास का है जिन्हें अष्टछाप का जहाज' कहा जाता है। 
  • उत्तर मध्यकाल (अर्थात् रीतिकाल) में अनेक आचार्यों एवं कवियों ने ब्रजभाषा में लाक्षणिक एवं रीति ग्रंथ लिखकर ब्रजभाषा के साहित्य को समृद्ध किया। 
  • रीतिबद्ध कवियों में केशवदास, मतिराम, बिहारी, देव, पद्माकर, भिखारी दास, सेनापति, मतिराम आदि तथा रीतिमुक्त कवियों में घनानंद, आलम, बोधा आदि प्रमुख हैं। (ब्रजबुलि- बंगाल में कृष्णभक्त कवियों द्वारा प्रचारित भाषा का नाम ।)

 

अवधी 

  • अवधी को साहित्यिक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय सूफी/प्रेममार्गी कवियों को है। 
  • कुत्बन (मृगावती'), जायसी ('पद्मावत'), मंझन ('मधुमालती'), आलम ('माधवानल कामकंदला), उसमान (चित्रावली'), नूर मुहम्मद ('इन्द्रावती'), कासिमशाह ('हंस जवाहिर'), शेख निसार (यूसुफ जुलेखा'), अलीशाह ('प्रेम चिंगारी) आदि सूफी कवियों ने अवधी को साहित्यिक गरिमा प्रदान की। इनमें सर्वप्रमुख जायसी थे। 
  • अवधी को रामभक्त कवियों ने अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया, विशेषकर तुलसीदास ने 'राम चरित मानस की रचना वैसबाड़ी अवधी में कर अवधी भाषा को जिस साहित्यिक ऊँचाई पर पहुँचाया वह अतुलनीय है। 
  • मध्यकाल में साहित्यिक अवधी का चरमोत्तकर्ष दो कवियों में मिलता है जायसी और तुलसीदास में। 
  • जायसी के यहाँ जहाँ अवधी का ठेठ ग्रामीण रूप मिलता है वहाँ तुलसी के यहाँ अवधी का तत्सममुखी रूप । (गोहारी/ गोयारी- बंगाल में सूफियों द्वारा प्रचारित अवधी भाषा का नाम ।)

 

खड़ी बोली 

  • मध्यकाल में खड़ी बोली का मुख्य केन्द्र उत्तर से बदलकर दक्कन में हो गया। इस प्रकार, मध्यकाल में खड़ी बोली के दो रूप हो गए-उत्तरी हिन्दी व दक्कनी हिन्दी खड़ी बोली का मध्यकालीन रूप कबीर, नानक, दादू, मलूकदास, रज्जब आदि संतों, गंग की 'चन्द छन्द वर्णन की महिमा', रहीम के 'मदनाष्टक', आलम के 'सुदामा चरित', जटमल की 'गोरा बादल की कथा', वली, सौदा, इन्शा, नजीर आदि दक्कनी एवं उर्दू के कवियों, 'कुतुबशतम' (17वीं सदी), 'भोगलू पुराण' (18वीं सदी), सन्त प्राणनाथ के 'कुलजमस्वरूप' आदि में मिलता है। 

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