द्विवेदी युगीन प्रतिनिधि रचनाकार व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं । Dvivedi era representative writer

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द्विवेदी युगीन प्रतिनिधि रचनाकार व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं

द्विवेदी युगीन प्रतिनिधि रचनाकार व्यक्तित्व कृतित्व साहित्यिक विशेषताएं । Dvivedi era representative writer


 

द्विवेदी युगीन प्रतिनिधि रचनाकार

प्रतिनिधि रचनाकारों में प्रमुख कवि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, मैथिली शरण गुप्त, पं. रामचरित उपाध्याय, पं. लोचन प्रसाद पांडेय, राय देवी प्रसाद पूर्ण', पं. नाथू राम शर्मा, पं. गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही', पं. राम नरेश त्रिपाठी, लाला भगवानदीन दीन' पं. रूप नारायण पांडेय, पं. सत्य नारायण कविरत्न', वियोगी हरि, अयोध्या सिंह उपाध्याय, गिरिधर शर्मा 'नवरत्न, सैयद अमीर अली 'मीर, कामता प्रसाद गुरू, बाल मुकुंद गुप्त, श्रीधर पाठक, मुकुटधर पांडेय तथा ठाकुर गोपालशरण सिंह आदि हैं। 


आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी

 

डॉ. नगेंद्र के शब्दों में इस काल खंड के पथ-प्रदर्शक, विचारक और सर्वस्वीकृत साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर इसका नाम 'द्विवेदी युग' उचित ही है। द्विवेदी इस युग के प्रवर्तक आचार्य हैं। 

व्यक्तित्व 

  • महावीर प्रसाद द्विवेदी (सन् 1864 1938 ई.) का जन्म ग्राम दौलतपुर जनपद रायबरेली, उत्तर प्रदेश में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा दौलत पुर की पाठशाला में पूरी कर जनपद के स्कूल में प्रवेश लिया। स्कूली शिक्षा के लिए जनपद उन्नाव के रनजीत पुरवा, फतेहपुर तथा उन्नाव के स्कूलों में प्रविष्ट हुए। स्कूली शिक्षा पूरी करके अपने पिता के पास मुंबई चले गए। मिडिल कक्षाओं में वैकल्पिक विषय के रूप में फारसी का अध्ययन किया। मुंबई में इन्होंने बंगला भाषा सीखने हेतु पर्याप्त अभ्यास किया। इसके अतिरिक्त इन्होंने मुंबई में संस्कृत, गुजराती, मराठी एवं अंग्रेजी का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया। प्रारंभ में आजीविका हेतु रेलवे की नौकरी की नौकरी के साथ-साथ साहित्य सेवा को अपना परम कर्त्तव्य समझते थे। सेवा मुक्त होकर पूर्ण रूपेण हिंदी भाषा और साहित्य में लग गए मानो इसीलिए सेवा से त्यागपत्र दिया हो। उच्चाधिकारी से कुछ कहासुनी हो जाने के परिणामस्वरूप त्याग पत्र दे दिया था। सन् 1903 ई. में सरस्वती के संपादक नियुक्त हुए। 


  • सन् 1920 ई. तक अति परिश्रम एवं लगन से कार्य करके पद की प्रतिष्ठा बढ़ाई। इनके प्रोत्साहन तथा मार्गदर्शन में कवि एवं लेखकों की सेना खड़ी हो गई। खड़ी बोली को स्थिरता प्रदान करने तथा उसका परिष्कार करने का श्रेय इन्हीं को है। ये कवि, लेखक, आलोचक, निबंधकार, अनुवादक एवं संपादक सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। इनके मौलिक एवं अनूदित गद्य-पद्य ग्रंथों की संख्या लगभग 80 है मौलिक काव्य रचना में रूचि नहीं थी। अनूदित काव्य कृतियां अधिक सरस हैं।

 

महावीर प्रसाद द्विवेदी कृतित्वः

 

  • काव्य 'काव्य मंजूषा' 'सुमन', 'कान्यकुब्ज अबला विलाप', 'अयोध्या का विलाप ।
  • अनूदित 'कवि कर्त्तव्य', 'ऋतु तरंगिनी', 'कुमारसंभव सार । 
  • संपादन सरस्वती साहित्यिक पत्र

 

महावीर प्रसाद द्विवेदी साहित्यिक विशेषताएं- 

  • खड़ी बोली का परिष्कार करके उसको स्थिरता प्रदान की कविता में सहजता, सरलता तथा उपदेशात्मकता के गुण विद्यमान थे। 
  • इनके काव्य में दो प्रकार की भाषा प्रयुक्त हुई है- तत्सम प्रधान समस्त भाषा तथा प्रचलित शब्दावलीयुक्त सरल भाषा पहले ब्रजभाषा में काव्य सजन किया। बाद में ब्रजभाषा एकदम ही छोड़कर खड़ी बोली में काव्य सजन करने लगे। 
  • कविताओं के बीच-बीच में सानुप्रास कोमल पदावली का व्यवहार द्विवेदी ने किया है। इस तथ्य पर सदैव बल दिया कि कविता की भाषा बोल चाल की भाषा होनी चाहिए।
  •  बोलचाल से उनका अभिप्राय ठेठ या हिंदुस्तानी भाषा नहीं था अपितु गद्य की व्यावहारिक भाषा को बोल-चाल की भाषा मानते थे। परिणामतः उनकी भाषा गद्यवत हो गई। 
  • अधिकांश कविताएं इतिवत्तात्मक हैं जिनमें लाक्षणिकता, मूर्तिमत्तता तथा वक्रता का अभाव है। 'यथा', 'सर्वथा' तथा 'तथैव' आदि शब्दों के प्रयोग ने उनकी भाषा को और अधिक गद्य का स्वरूप प्रदान कर दिया। 
  • संस्कृत वत्तों का व्यवहार अधिक किया है। हिंदी के कुछ चलते छंदों में भी उन्होंने बहुत सी कविताएं रची हैं जिनमें संस्कृत के तत्सम शब्दों का प्रयोग कम किया गया है। अनुवाद में इनको पूर्ण सफलता मिली है। द्विवेदी के प्रभाव एवं प्रोत्साहन ने हिंदी के कई अच्छे कवियों को जन्म दिया।


बाबू मैथिलीशरण गुप्त

 

बाबू मैथिलीशरण गुप्त व्यक्तित्व- 

  • मैथिलीशरण गुप्त (सन् 1886 1964 ई.) का जन्म चिरगांव झांसी में हुआ था। वे द्विवेदी युग के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि थे। इनकी आरंभिक रचनाएं कोलकाता से निकलने वाले वैश्योपकारक में प्रकाशित होती थीं। बाद में आचार्य महावीर द्विवेदी से परिचय हो जाने पर 'सरस्वती' में प्रकाशित होने लगीं। द्विवेदी के आदेश उपदेश तथा स्नेहमय प्रोत्साहन ने गुप्त की काव्य कला को निखार दिया। मैथिलीशरण गुप्त प्रसिद्ध राम भक्त कवि थे। इन्होंने भारतीय जीवन को समग्रता में समझने तथा प्रस्तुत करने का सफल प्रयास किया है। मानस' के पश्चात् हिंदी में रामकाव्य का द्वितीय स्तंभ मैथिलीशरण गुप्त कृत साकेतही है। इन्होंने दो महाकाव्यों तथा उन्नीस खंड काव्यों का प्रणयन किया है।

 

मैथिलीशरण गुप्त  कृतित्व:

 

काव्य- 'रंग में भंग', 'भारत भारती' 'साकेत', 'जयद्रथ वध' 'पंचवटी', 'झंकार, यशोधरा', 'द्वापर', 'जय भारत', 'विष्णु प्रिया' 

अनूदित- 'प्लासी का युद्ध', 'मेघनाथ वध' तथा 'वत्र संहार'  

नाटक- 'तिलोत्तमा', 'चन्द्रहास' तथा 'अनाथ'

 

मैथिलीशरण गुप्त साहित्यिक विशेषताएं

 

  • इनका चरित्र चित्रण कौशल भी उत्कृष्ट प्रबंध कला का प्रमाण है। खड़ी बोली के स्वरूप निर्धारण और विकास में इनका अन्यतम योगदान है। खड़ी बोली को काव्योपयुक्त रूप प्रदान करने वालों में गुप्त अग्रगण्य हैं। आरंभिक रचना 'जयद्रथ वध' में खड़ी बोली का सरस- मधुर एवं प्रांजल रूप मिलता है। ये भारतीय संस्कृति के अनन्य प्रस्तोता थे। सांस्कृतिक परंपराओं में पूर्ण आस्था रखने वाले गुप्त ने कभी युग धर्म की उपेक्षा नहीं की है। भारतीय संस्कृति के प्रवक्ता होने के साथ साथ ये स्वतन्त्र भारत के राष्ट्रीय कवि भी थे। इनका काव्य राष्ट्रीय भावना से भरपूर है।

 

पंडित रामचरित उपाध्याय

 

  • व्यक्तित्व संस्कृत के अच्छे ज्ञाता हैं। खड़ी बोली कविता से आकर्षित हुए। फुटकर रचनाएं की रामचरित उपाध्याय (सन् 1872-1938 ई.) गाजीपुर के रहने वाले थे। इनकी आरंभिक शिक्षा संस्कृत में हुई। बाद में ब्रजभाषा और खड़ी बोली पर भी अच्छा अधिकार प्राप्त कर लिया। पहले ये प्राचीन विषयों पर ही काव्य सजन करते थे किन्तु आचार्य द्विवेदी के संपर्क में आने पर खड़ी बोली तथा नवीन विषयों को अपनाया।

 

कृतित्व- 

  • 'रामचरित चिंतामणि प्रबंध काव्य सूक्ति 'मुक्तावली' तथा 'राष्ट्रभारती', 'देवदूत', 'देवसभा', 'विचित्र विवाह' आदि काव्य ।

 

साहित्यिक विशेषताएं- 

  • विविध छंदों का प्रयोग प्रबंध काव्य में किया है। भाषा की सफाई तथा वाग्वैदग्ध्य है।

 

पंडित लोचन प्रसाद पांडेय

 

व्यक्तित्व- 

  • द्विवेदी युगीन कवियों में लोचन प्रसाद पांडेय (1886-1959 ई.) को विशेष प्रसिद्धि मिली थी। इनका जन्म ग्राम बालापुर जनपद बिलासपुर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। हिंदी, उड़िया, संस्कृत तथा अंग्रेजी आदि भाषाओं के ज्ञाता थे। साहित्य सेवा के लिए काव्य विनोद तथा साहित्य वाचस्पति की उपाधि मिली थी। कृतित्व 'प्रवासी', 'मेवाड़ गाथा', 'महानदी' तथा 'पद्य पुष्पांजलि'

 

राय देवीप्रसाद 'पूर्ण

 

  • व्यक्तित्व- राय देवीप्रसाद पूर्ण' (सन् 1868-1915 ई.) का जन्म जबलपुर में हुआ था। वहीं पर बी.ए. एल.एल.बी. तक की शिक्षा प्राप्त कर कुछ दिनों तक वकालत की और बाद में कानपुर चले गए। वकालत के साथ-साथ ये सार्वजनिक कार्यों में अति उत्साह के साथ सम्मिलित होते थे। ये संस्कृत के अच्छे ज्ञाता थे। वेदांत में विशेष रूचि थी। व्यावसायिक तथा सामाजिक क्रियाकलापों की व्यस्तता में रहते हुए भी साहित्याध्ययन एवं प्रणयन में सदैव दत्त - चित्त थे।

 

कृतित्व

 

  • हिन्दी साहित्य का इतिहास (आधुनिक काल) 

काव्य-

  • 'स्वदेशी कुंडल' – ( देशभक्ति पूर्ण 52 कुंडलियों का संग्रह), 'मत्युंजय', 'राम-रावण विरोध, तथा संग्रह। 

अनूदित -धाराधर धावन (कालिदास के मेघदूत का अनुवाद) ।

 

साहित्यिक विशेषता 

काव्य में उपदेशात्मकता विद्यमान है-

 

चींटी, मक्खी शहद की सभी खोजकर अन्न 

करते हैं लघु जन्तु तक, निज गह को सम्पन्न ||

निज गह को सम्पन्न करो, स्वच्छंद मनुष्यों

तजो तजो आलस्य अरे मतिमंद मनुष्यों ।। 

चेत न अब तक हुआ, मुसीबत इतनी चक्खी; भारत की संतान ! 

बनै हो चींटी, मक्खी!

 

पंडित नाथूराम शर्मा 'शंकर'

 

व्यक्तित्व 

  • पंडित नाथूराम शर्मा 'शंकर' (सन् 1859-1932 ई.) का जन्म हरदुआ गंज जनपद अलीगढ़ में हुआ था। ये हिंदी, उर्दू, फारसी तथा संस्कृत भाषाओं के ज्ञाता थे। शंकर आरंभ से ही साहित्यानुरागी थे। 13 वर्ष की छोटी सी आयु में ही इन्होंने अपने एक साथी पर एक दोहा लिखा था। कानपुर में भारतेंदुमंडल के प्रसिद्ध कवि प्रतापनारायण मिश्र के संपर्क में आते ही 'ब्राह्मण' नामक पत्रिका में इनकी रचनाएं प्रकाशित होने लगीं। बाद में इनको आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित 'सरस्वती के मुख्य कवियों में स्थान मिल गया। प्रारंभ में ये ब्रज भाषा के कवि रहे किंतु शीघ्र ही खड़ी बोली की ओर झुक गए। उर्दू में भी काव्य सजन का अच्छा कार्य कर लेते थे। शंकर पर आर्य समाज तथा तत्कालीन राष्ट्रीय आंदोलनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। ये कविता-कामिनी कांत', भारतेंदु प्रज्ञेदु तथा साहित्य सुधाकर आदि उपाधियों से अलंकृत थे। कृतित्व 'अनुराग रत्न', 'शंकर सरोज', 'गर्भरंडा- रहस्य (विधवाओं की बुरी स्थिति तथा देव मंदिरों के अनाचार से संबंधित प्रबंध काव्य) तथा शंकर सर्वस्व'

 

पंडित नाथूराम शर्मा साहित्यिक विशेषताएं- 

  • इनके काव्य में सभी प्रकार के छंदों का प्रयोग हुआ है। अतिशयोक्तिपूर्ण कविता लिखते थे। इनकी अतिशयोक्तियां आकाश-पाताल को एक कर देती थीं। समस्यापूर्ति में अति कुशल तथा सिद्धहस्त थे। छंद शास्त्र के मर्मज्ञ थे। रीतिकालीन पद्धति में इन्होंनें भंगारमयी रचनाएं भी की सामाजिक कुरीतियां, बाह्याडंबरों, अंधविश्वासों तथा बाल-विवाह आदि पर करारा व्यंग्य किया है। देश-प्रेम, स्वदेशी प्रयोग, समाज-सुधार, हिंदी अनुराग, विधवा-विडंबना तथा अछूतों का दारुण दुख आदि इनकी कविता के प्रमुख विषय थे। भाषा मनोरंजक है।

 

पंडित गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही '

 

  • व्यक्तित्व -कविवर गया प्रसाद शुक्ल सनेही (सन् 1883-1972 ई.) का जन्म ग्राम हड़हा जनपद उन्नाव में हुआ था। उर्दू के अधिकारी विद्वान होने के फलस्वरूप ये हिंदी-उर्दू दोनों भाषाओं में समान रूप से काव्य सजन करते थे। प्राचीन एवं नवीन दोनों प्रकार की शैलियों में अभिरूचि थी। शृंगार आदि परंपरागत विषयों पर काव्य सजन सनेही' उपनाम से तथा राष्ट्रीय भावनाओं संबंधित कविता का सजन 'त्रिशूल' उपनाम से किया है। 
कृतित्व 

काव्य- 

  • 'कृषक क्रंदन', 'प्रेम पचीसी', 'राष्ट्रीय वीणा', 'त्रिशूल तरंग'. 'करुणा कादंबिनी आदि काव्य पत्रिका 'सुकवि' नामक काव्य पत्रिका के संपादक थे। 


पंडित गया प्रसाद शुक्ल 'सनेही 'साहित्यिक विशेषताएं- 

  • खड़ी बोली में कवित्व और सवैया छंद प्रयोग में इन्हें सिद्ध हस्तता प्राप्त थी। उर्दू बहरों के कुशल प्रयोगकर्ता रहे हैं। सामयिक आंदोलनों से संबंधित अनेक प्रयाण एवं बलिदान गीतों की रचना की परतंत्र भारत की दुर्दशाआर्थिक वैषम्य, छुआछूत आदि विषयों पर लिखी गई कविताएं मार्मिक एवं प्रभावकारी हैं। कवि सम्मेलनों में अति उत्साह से कविता पाठ करते थे। वाग्वैदग्ध्य, उक्ति वैचित्र्य, ऊहापोह तथा शब्द का चमत्कारिक प्रयोग इनके काव्य की विशेषता थी। भावुक एवं सरस हृदय कवि सनेही की कविताओं का प्रकाशन रसिकमित्र' 'काव्य सुधानिधि तथा साहित्य सरोवर' आदि पत्रिकाओं में होता था। खड़ी बोली में काव्य सजन में उनको पूर्ण सफलता मिली।

 

पंडित राम नरेश त्रिपाठी

 

व्यक्तित्व- 

  • राम नरेश त्रिपाठी (सन् 1889 1962 ई.द्ध का जन्म ग्राम कोई पुर जनपद जौनपुर में हुआ था। सुलतानपुर रेलवे स्टेशन के पश्चिम में ही आवास था। रेलवे के द्वारा भूमि का अधिग्रहण कर लिए जाने पर कोईरी पुर पैत्रिक स्थान पर चले गए। रुद्रपुर, सुलतानपुर में स्थित प्रेस अब भी चल रहा है जिसकी देखभाल इनके सुपुत्र कर रहे हैं। इनकी प्रारंभिक शिक्षा ग्राम की पाठशाला में ही हुई। अंग्रेजी पढ़ने हेतु जौनपुर के स्कूल में प्रवेश ले लिया किंतु अध्ययन क्रम नौंवी कक्षा से आगे नहीं चल सका। कविता के प्रति बचपन से ही रूचि थी। ग्राम के प्रधानाचार्य ब्रजभाषा में कविता लिखते थे।

 कृतित्व 
  • 'ग्राम्यगीत', (संग्रह), 'मिलन', 'पथिक', 'मानसी तथा स्वप्न', 'मिलन', 'पथिक', 'स्वप्न' काल्पनिक कथाश्रित प्रेमाख्यानक खंड काव्य हैं। मानसी मुक्त कविता संग्रह है।

 

  • संपादन- कविता कौमुदी (आठ भाग)

 

राम नरेश त्रिपाठी साहित्यिक विशेषताएं 

  • मुक्त कविताओं में देश भक्ति प्रकृति चित्रण तथा नीति निरूपण की प्रधानता है। खंड काव्यों में उपदेशात्मकता प्रधान है। व्यक्तिगत सुख तथा स्वार्थ को त्याग कर देश को सर्वस्व समर्पित करने की प्रेरणा दी गई है। खंड काव्यों में प्रकृति के मनोरम चित्र भी उपलब्ध हैं। कवि होने के साथ-साथ वे सहृदय संपादक भी थे। कविता कौमुदी के आठ भागों में इन्होंने अति योग्यता तथा कुशलता से हिंदी, उर्दू, बंगला तथा संस्कृत की कविताओं का संकलन एवं संपादन किया है। लोकगीतों के संग्रह हेतु इन्हें यायावर बनना पड़ा। संग्रह में इनकी लगन, कष्ट साध्यता एवं श्रमशीलता परिलक्षित होती है।

 

लाला भगवानदीन 'दीन'

 

व्यक्तित्व 

  • लाला भगवानदीन दीन' (सन् 1866-1930 ई.) का जन्म ग्राम बरबर जनपद फतहपुर में हुआ था। काव्य शास्त्र के पंडित थे। हिंदी उर्दू तथा फारसी के ज्ञाता थे। 

कृतित्वः 

  • काव्य 'वीर क्षत्राणी', 'वीर बालक', 'वीर पंचरत्न' तथा 'नवीन बीन अन्य कविता संग्रह है। नदीमें दीन फुटकल काव्य संग्रह है। 

संपादन- लक्ष्मी के संपादक।

 

लाला भगवानदीन दीन साहित्यिक विशेषताएं- 

  • युवावस्था में पुराने ढंग की कविताएं लिखीं। संपादक बनकर खड़ी बोली की ओर मुंह मोड़ा तथा फड़कती कविताएं लिखने लगे किंतु तर्ज मुंशियाना ही बनाए रखा। उर्दू की बहरों में अरबी-फारसी के शब्दों का प्रयोग करते थे। खड़ी बोली की कविताएं वीर रस से संबंधित होने के फलस्वरूप जोशीले भाषण का रूप धारण कर लेती हैं। वीर काव्यों में पौराणिक एवं ऐतिहासिक बहादुरों के चरित्र चित्रण में ओजस्वी भाषा का प्रयोग किया है। प्राचीन काव्यों की टीकाएं लिखकर हिंदी साहित्य का अत्यधिक उपकार किया है। पुराने ढंग की कविताओं में उक्ति वैचित्र्य दष्टिगोचर होता है। लेखन में उर्दू की तर्ज को नहीं छोड़ा है।

 

पंडित रूपनारायण पांडेय 

व्यक्तित्व

  • रूपनारायण पांडेय का जन्म सन् 1884 ई. में लखनऊ में हुआ। प्रारंभ में ब्रजभाषा में कविता करते थे किंतु आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के प्रभावस्वरूप खड़ी बोडी में काव्य सजन करने लगे।

 

कृतित्व: 

  • काव्य- 'पराग' तथा 'वन-वैभव' मौलिक कविताओं के संकलन हैं। 
  • संपादन- 'नागरी प्रचारक इंदु' तथा 'माधुरी आदि पत्रिकाओं का सफलतापूर्वक संपादन किया। 
  • साहित्यिक विशेषताएं- इनका काव्य अति सरल एवं भावुकतामय है। इनकी सहानुभूति पशु पक्षियों तक पहु जाती है। संस्कृत तथा बंगला काव्यों का अनुवाद कार्य भी किया।

 

पंडित सत्यनारायण 'कविरत्न'

 

व्यक्तित्व

  • पंडित सत्यनारायण 'कविरत्न' (सन् 1880-1918 ई.) का जन्म ग्राम सराय, जनपद अलीगढ़ में हुआ था। बाल्यावस्था में ही माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। ताजगंज, आगरा के बाबा रघुबरदास ने इनको पाला। सन् 1910 में सेंट जॉस कॉलेज ने आगरा की बी.ए. परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गए। क्रमिक शिक्षा का अंत हो गया। छात्र काल में काव्य सजन करने लगे थे। आरंभ में विनय के पद तथा समस्यापूर्ति लिखते थे। पंडित सत्यनारायण 'कविरत्न' खड़ी बोली की खड़खड़ाहट के मध्य अपना मधुर आलाप सुनाते रहे और लोग अत्यधिक ध्यान एवं रूचि से उनको सुनते रहे। ये रसिक जीव थे। ब्रज की एकांत भूमि में अकले बैठे ब्रज की सरस पदावली की रस मग्नता में खोए रहते थे। नंददास आदि कवियों की प्रणाली में पदों की रचना की। वेशभूषा सरल थी। काव्यमय जीवन था।

 

कृतित्व- प्रेमकली' एवं 'भ्रमर दूत' कविताएं हृदय तरंग, (संग्रह) 

अनूदित- होरेशस का अनुवाद 

साहित्यिक विशेषताएं: 

  • इनकी रचनाओं में देश की नई पुकार भी कहीं-कहीं सुनाई पड़ती है। ब्रज भाषा के सवैया पढ़ने का इनका ढंग ऐसा आकर्षक था कि श्रोता मंत्र मुग्ध हो जाते थे। इनके कुछ पदों में गहरी खिन्नता दष्टिगोचर होती है। नारी-शिक्षा के पक्षधर थे। उदाहरण द्रष्टव्य है। 

 

नारी शिक्षा अनादरत जे लोग अनारी। 

ते स्वदेश- अवनति प्रचंड पातक अधिकारी। 

निरखि हाल मेरो प्रथम लेहु समुझि सब कोइ 

विद्या बल लहि मति परम अबला सबला होइ।।

 

वियोगी हरि

 

  • वियोगी हरि ब्रजभूमि, ब्रजभाषा तथा ब्रजपति के अनन्य उपासक हैं। उन्होंने अधिकतर पुराने कृष्णोपासक भक्त कवियों की प्रणाली पर अनेक रसमय पदों की सजना की है। कभी-कभी अनन्य प्रेमधारा से हटकर देश की दशा पर लेखनी चला दी है।

 

कृतित्व 'वीर सतसई

 

साहित्यिक विशेषताएं- 

  • अधिकांश भक्तिपरक एवं प्रेम प्रधान रचनाएं की देशभक्ति का वर्णन भी किया है। 'वीर सतसई' में प्रसिद्ध बहादुरों की प्रशंसाएं हैं जो दोहा छंद में लिखी गई हैं। इनके पदों को पढ़कर या सुनकर रसिक भक्त बलिहारी जाते हैं।

 

अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

 

व्यक्तित्व- 

  • अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरि औघ' (सन् 1865-1947 ई.) का जन्म ग्राम निजामाबाद जनपद आजमगढ़ में हुआ था। ये द्विवेदी युग की महान विभूति तथा खड़ी बोली को काव्य भाषा पद पर प्रतिष्ठित करने वाले महान कवि थे। हिन्दुस्तानी मिडिल परीक्षा पास करने के पश्चात क्वींस कॉलेज वाराणसी में अंग्रेजी पढ़ने लगे। किंतु अस्वस्थ होने के कारण कॉलेज छोड़ दिया तथा घर पर ही संस्कृत, अंग्रेजी और उर्दू पढ़ने लगे। ये सर्वप्रथम निजामाबाद के मिडिल स्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए फिर सरकारी कानूनगों पद पर नियुक्त हो गए। वहां से अवकाश प्राप्त करने के पश्चात हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी में हिंदी के अवैतनिक प्राध्यापक हो गए। बद्धावस्था के कारण विश्वविद्यालय की सेवा छोड़कर घर पर रहकर ही साहित्य साधना करने लगे।


कृतित्व 

  • काव्य 'प्रिय प्रवास', 'पद्य प्रसून', 'चुभते चौपदे', 'चोखे चौपदें', 'वैदेही वनवास', 'पद-प्रमोद', 'पारिजात', 'बोल-चाल', 'ऋतु मुकुर', 'काव्योपवन', 'प्रेम पुष्पोपहार', 'प्रेम प्रपंच', 'प्रेमांबु प्रस्रवण', 'प्रेमाबु-वारिधि' आदि 
  • रीतिग्रंथ-'रस कलस' 
  • गद्य- ठेठ हिंदी का ठाट', 'अधखिला फूल', 'प्रेमकांता', 'वेनिस का बाका, एवं हिंदी भाषा और साहित्य का इतिहास'

 

अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरि औघसाहित्यिक विशेषताएं

 

  • हरिऔध द्विवेदी युग के ख्यातिप्राप्त कवि, उपन्यासकार, आलोचक, इतिहासकार तथा भाषा विज्ञान वेत्ता है। इन्होंने पुरातन संस्कृति का पुनरुद्धार, देश के युवकों का औचित्यपूर्ण पथ प्रदर्शन तथा कविता में उपदेशात्मक रूप का ग्रहण आदि को आरंभ से जीवन का उद्देश्य बनाया है। साहित्य सेवा के प्रति समर्पित प्रिय प्रवास खड़ी बोली में लिखा गया हिंदी का प्रथम महाकाव्य है। जिसमें राधा कृष्ण को सामान्य नायिका नायक के स्तर से उठाकर विश्व सेवी तथा विश्व प्रेमी के रूप में चित्रित किया गया है। 'रस कलस' में रस-स्वरूप, प्रकार का सूक्ष्म विवेचन किया गया है। नायिका भेद वर्णन तथा ऋतु वर्णन में मौलिक उद्भावनाएं की हैं। पति प्रेमिका, परिवार प्रेमिका, लोक सेविका आदि प्रमुख हैं। 'वैदेही वनवास' करुण सरलता का अद्वितीय प्रबंध काव्य है।

 

  • काव्य में सरलता, प्रांजलता एवं सौंदर्य की प्रधानता है। एक ओर निरलंकार सौंदर्य है तो दूसरी ओर संस्कृत की आलंकारिक समस्त पदावली की छटा विद्यमान है। कहीं बोलचाल के शब्दों तथा मुहावरों की झड़ी लगी है तो कहीं इनका नामोनिशान तक नहीं है। भाषा की कर्कशता में सरसता का संचार किया है। खड़ी बोली को काव्योपयुक्त भाषा का रूप दिया है। दोहा, कविता, सवैया आदि के साथ साथ संस्कृत वर्णिक छंदों का समावेश किया है। भाषा छंदानुसारिनी एवं भावानुसारिणी है। इन्हें कवि सम्राट' के रूप में जाना जाता है। दो बाद हिंदी साहित्य सम्मेलन प्रयाग के वार्षिक अधिवेशन में सभापति पद पर सम्मानित किया है। 'प्रिय प्रवास' पर हिंदी का सर्वोत्तम पुरस्कार मंगला प्रसाद पारितोषिक' प्रदान किया गया।

 

  • काव्य शैली अत्यन्त मार्मिक एवं भावपूर्ण है। संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग है। प्रकृति चित्रण अति सजीव तथा परिस्थितियों से प्रभावित है। अयोध्या सिंह उपाध्याय कठिन से कठिन तथा सरल से सरल भाषा प्रयोग में सिद्धहस्त हैं। प्रिय प्रवास संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली प्रधान भाषा का प्रतिनिधित्व करता है तो ठेठ हिंदी का ठाठ ठेठ हिंदी का आवश्यकतानुसार अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक आदि अलंकारों का सुंदर समायोजन किया गया है। करुण तथा शांत अंगी रूप तथा शेष सभी रस अंग रूप में विद्यमान हैं। 
  • हरिऔध सर्वतोमुखी प्रतिभा के धनी, प्रबुद्ध साहित्यकार हैं।

 

गिरिधर शर्मा 'नवरत्न'

 

  • व्यक्तित्व गिरिधर शर्मा 'नवरत्न' (सन् 1881-1961 ई.) का जन्म झालरापाटन, जयपुर में हुआ था। इनकी अधिकांश शिक्षा काशी में हुई। 'सरस्वती' तथा अन्य पत्रिकाओं में इनकी कविताएं प्रकाशित होती रहती थीं। 
  • कृतित्व- 'मातवंदना' मौलिक काव्य । 
  • साहित्यिक विशेषताएं- इनकी कविताओं का मुख्य विषय स्वदेश-प्रेम था। हिंदी के अतिरिक्त संस्कृत के भी कवि थे। संस्कृत बंगला से हिंदी में पद्यानुवाद भी किए।

 

सैयद अमीर अली 'मीर'

 

व्यक्तित्व-

  • सैयद अमीर अली 'मीर' (सन् 1873-1937 ई.) का जन्म सागर, मध्य प्रदेश में हुआ था। शैशव में ही पिता का स्वर्गवास हो गया जिसके परिणामस्वरूप चाचा के पास देवरी ग्राम सागर में रहे। 
  • कृतित्व- 'उलाहना पंचक' तथा 'अन्योक्ति शतक' मुख्य काव्य कृतियां हैं।

 

साहित्यिक विशेषताएं- 

  • साहित्य के क्षेत्र में प्रवेश समस्यापूर्ति के द्वारा हुआ। इन्होंने देवरी में मीर मंडल कवि समाज की स्थापना की। हिंदी प्रेमी एवं राष्ट्रभाषा समर्थक थे। 'रामचरितमानस के प्रति विशेष लगाव था। ईश्वर भक्ति और देश प्रेम इनकी कविता का मुख्य विषय था।

 

कामता प्रसाद गुरु

 

  • व्यक्तित्व कामता प्रसाद गुरु का जन्म सागर, मध्य प्रदेश में हुआ। 

कृतित्व:

 

  • पद्य ग्रंथ 'भौमासुर वध' तथा 'विनय पचासा' ब्रजभाषा में लिखे गये पद्य ग्रंथ हैं।
  • कविता संग्रह- 'पद्य पुष्पावली 
  • कविताएं- शिवाजी' तथा 'दासी रानी' 
  • व्याकरण ग्रंथ- हिंदी व्याकरण ।

 

कामता प्रसाद गुरु साहित्यिक विशेषताएं- 

  • कई भाषाओं के अच्छे ज्ञाता थे। इनकी कविताएं सरल एवं भावपूर्ण हैं। ब्रजभाषा एवं खड़ी बोली दोनों में रचनाएं की। 'शिवाजी' एवं 'दासी रानी' कविताओं को अच्छी ख्याति मिली। गुरु की ख्याति का मुख्य श्रेय उनके हिंदी व्याकरण को है जिसे वर्तमान समय में भी हिंदी का आदर्श व्याकरण स्वीकारा जाता है।

 

बालमुकुंद गुप्त

 

व्यक्तित्व 

  • बाल मुकुंद गुप्त (सन् 1865-1907 ई.) का जन्म ग्राम गुड़ियाना, जनपद रोहतक, हरियाणा प्रदेश में हुआ था। ये भारतेंदुयुग एवं द्विवेदीयुग को जोड़ने वाली कड़ी हैं। 
  • कृतित्व -'स्फुट कविता इनकी कविताओं का संकलन है।

 

साहित्यिक विशेषताएं- 

  • ये अच्छे कवि, अनुवादक और अपने समय के कुशल संपादक थे। हिंदी प्रेम इनकी कविताओं का विषय रहा है। ये अच्छे जीवट एवं हास्य-व्यंग्य प्रधान व्यक्ति थे। समसामयिक साहित्यकारों से इनकी नोक-झोंक चलती रहती थी।

 

श्रीधर पाठक

 

व्यक्तित्व-

  • श्रीधर पाठक (सन् 1859-1928 ई.) का जन्म ग्राम जोंधारी जनपद आगरा में हुआ था। हिंदी के अलावा अंग्रेजी एवं संस्कृत का अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। आजीविका चलाने हेतु पाठक ने सरकारी सेवा कार्य अपनाया था। सेवा काल में ही इन्हें सरकारी कार्य से कश्मीर एवं नैनीताल भी जाना पड़ा था जहां इन्हें प्राकृतिक छटा देखने का भव्य अवसर मिला था। 

कृतित्व 

  • काव्य- 'वनाष्टक', 'काश्मीर सुषमा, देहरादून' तथा 'भारत गीत'  
  • कविताएं- 'भारतोत्थान', 'भारत- प्रशंसा जार्ज प्रशंसा तथा बाल-विधवा आदि । 
  • अनुवाद -कालिदास कृत ऋतुसंहार' गोल्ड स्मिथ कृत 'हरमिट' एकांतवासी योगी', डेजर्टेड 'विलेज'- 'उजाड़ गांव', तथा द ट्रैवेलर' - 'श्रांत पथिक' नाम से काव्यानुवाद किया।

 

श्रीधर पाठक साहित्यिक विशेषताएं-

  • ब्रजभाषा और खड़ी बोली दोनों में अच्छी कविताएं सजी ब्रजभाषा का स्वरूप सहज एवं बाह्याडंबर विहीन है। परंपरागत रूढ़ शब्दावली का प्रयोग इनकी कविताओं में नहीं हुआ है। खड़ी बोली के श्रीधर प्रथम समर्थ कवि हैं। खड़ी बोली में भी उन्होंने कहीं-कहीं ब्रजभाषा के क्रियापदों का प्रयोग किया है किन्तु यह कम महत्व का विषय नहीं है कि आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सरस्वती का संपादकत्व संभालने से पूर्व ही इन्होंने खड़ी बोली में कविताएं लिखकर अपनी स्वच्छंद वत्ति का परिचय दिया। इनकी कविता के मुख्य विषय देश प्रेम, समाज सुधार तथा प्रकृति चित्रण हैं। देश का गौरवगान इन्होंने अति मनोयोग से किया किन्तु भारतेंदु युगीन कवियों की तरह श्रीधर पाठक में भी देशभक्ति के साथ साथ राजभक्ति भी मिलती है। एक ओर इन्होंने भारतोत्थान तथा भारत प्रशंसा' आदि जैसी देशभक्तिपूर्ण कविताएं लिखीं तो दूसरी ओर जार्ज वंदना' जैसी कविताओं में राजभक्ति का भी प्रदर्शन किया गया है। समाज सुधार की ओर इनका विशेष ध्यान रहा है। विधवाओं की स्थिति तथा उनकी व्यथा का कारुणिक चित्र उपस्थित किया गया है। इनको सर्वाधिक सफलता प्रकृति चित्रण में मिली है। रूढ़ि परित्याग करके प्रकृति का स्वतंत्र रूप से मनोरंजक स्वरूप प्रस्तुत किया है। इनके मन में मातभाषा की उन्नति की प्रबल कामना है। 

यथा 

निज भाषा बोलहु लिखहु पढ़हु गुनहु सब लोग। 

करहु सकल विषयन विषे निज भाषा उपजोग ।।

 

ठाकुर गोपाल शरण सिंह 

व्यक्तित्व- ठाकुर गोपाल शरण सिंह (सन् 1891-1960 ई.) नई गढ़ी, रीवां में जन्मे थे। 

कृतित्वः 

  • काव्य- 'माधवी', 'मानवी', 'संचिता' तथा 'ज्योतिष्मती' इनकी प्रमुख काव्यकृतियां हैं।

साहित्यिक विशेषताएं- 

  • इन्होंने खड़ी बोली को परिमार्जित करने तथा उसे माधुर्यपूर्ण रूप प्रदान करने में विशेष योगदान किया। ब्रजभाषा के समान ही खड़ी बोली में सरस-मधुर कवित्त सवैया आदि का सजन किया। इनके काव्य में जीवन की विविध दशाओं के चित्र दष्टिगोचर होते हैं।

 

मुकुटधर पांडेय

 

व्यक्तित्व

  • लोचन प्रसाद पांडेय के छोटे भाई मुकुटधर पांडेय का जन्म सन् 1895 ई. में हुआ।

 

कृतित्व

  • 'पूजा-फूल' तथा 'कानन कुसुम' काव्य संकलन हैं। साहित्यिक विशेषताएं- ये अच्छे कवि थे। प्रकृति की उपासना करने वाले थे। इनके काव्य में भावात्मकता आंतरिक संवेदना तथा रहस्यात्मक अनुभूति दष्टिगोचर होती है। इन्हें द्विवेदी युग का सर्वश्रेष्ठ प्रगीतकार माना गया है। इनका काव्य छायावादाभास देता है

 

उपर्युक्त कवियों के अतिरिक्त  द्विवेदी युग के सहयोगियों में 

  • लोकमणि, सत्य शरण रतूड़ी, मन्नन द्विवेदी, पदुम लाल पुन्ना लाल बख्शी, शिव कुमार त्रिपाठी, पार्वती देवी, तोष कुमारी आदि भी उल्लेखनीय हैं जिन्होंने तत्कालीन साहित्य की श्रीवद्धि की है। द्विवेदी युगीन काव्य में राष्ट्रीय भावना एवं सांस्कृतिक चेतना की प्रधानता है। यह राष्ट्रीयता सांप्रदायिकता तथा प्रांतीयता से बहुत ऊपर उदार एवं व्यापक राष्ट्रीय स्वरूप है। द्विवेदी युगीन कविताओं ने संकीर्णता की भावना समाप्त की। वैमनस्य को दूर करने का प्रयत्न किया बलिदान और स्वार्थ त्याग की प्रेरणा दी। राष्ट्रीय आंदोलन और शक्तिशाली एवं बलवान हो गया। इस सब का श्रेय द्विवेदी युगीन कविता को है। इस युग के कवियों ने जीवन की अति मार्मिक एवं रचनात्मक आलोचना की। हितकारी तत्वों को प्रोत्साहित करके अहितकारी तत्वों का निराकरण किया। सामाजिक कुरीतियों, अंघ विश्वासों, रूढ़ियों, बाह्याडंबरों आदि को अपना निशाना बनाया तथा परंपरावादी उपयोगी तत्वों, भारतीय संस्कृति का पूर्ण समर्थन किया।

 

  • सांस्कृतिक शक्ति की महत्ता का प्रतिपादन किया नवीन मानवतावादी दृष्टिकोण की स्थापना की। सामान्य मानव को गौरव तथा प्रतिष्ठा दिलाने का प्रथम बार प्रयास किया गया। देश भक्ति कृषक मजदूर, प्रकृति, देश की कारुणिक स्थिति को कविता का विषय बनाया गया। काव्य भूमि का विस्तार हुआ। महान कथाओं तथा महान चरित्रों के साथ-साथ अनजाने, छोटे-छोटे नगण्य, अपरिचित प्रसंगों को काव्य का विषय बनाया गया। आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के अथक प्रयासों तथा सफल दिशा निर्देशन के परिणामस्वरूप गद्य-पद्य की भाषा का एकीकरण इसी युग में हुआ ब्रजभाषा के स्थान पर बोलचाल की भाषा अर्थात् व्यवहार में आने वाली खड़ी बोली का स्वरूप अनगढ़, शुष्क तथा अस्थिर था किंतु शनैः शनैः खड़ी बोली सुगढ़, मधुर एवं स्थिर रूप ग्रहण करती चली गई। खड़ी बोली का परिमार्जन एवं संस्कार हुआ। वह सुष्ठु साहित्यिक भाषा बन गई। द्विवेदी युग के प्रारंभ में तुतलाने वाली खड़ी बोली इसके अंत अर्थात् लगभग बीस वर्षों में मानक, साहित्यिक, सर्व सुलभ भाषा के रूप में उपस्थित हो गई।

 

  • द्विवेदी युगीन कवियों में छंद का वैविध्य दष्टिगोचर होता है। संस्कृत, हिंदी तथा उर्दू के छंदों का प्रयोग किया गया। भाव, भाषा, छंद में ही नहीं अपितु काव्य रूप तथा काव्य विषय में भी वैविध्य आया। महाकाव्य, खंड काव्य, लंबी कविता, कविता, मुक्तक, प्रबंध मुक्तक आदि अनेक काव्य विधाओं में सजन को सफलता मिली। प्रारंभ में द्विवेदी युगीन काव्य में जो नीरसता, इतिवत्तात्मकता, तथा उपदेशात्मकता थी वह शनैः शनैः समाप्त होती गई। इसका स्थान सरसता, मधुरता तथा भावपूर्णता ने ग्रहण किया।

 

  • इससे स्पष्ट हो जाता है कि द्विवेदी युगीन काव्य सांस्कृतिक पुनरुत्थान, उदार राष्ट्रीयता जागरण सुधारवादी एवं उच्चादर्शों का काव्य है, जिसमें विषयगत वैविध्य एवं व्यापकता तथा आयाम विस्तार मिलता है। सभी काव्य रूपों का सफल प्रयोग किया गया है। खड़ी बोली के स्वरूप निर्धारण तथा विकास का एक मात्र श्रेय इसी युग को है। द्विवेदी युग में छंद का जो वैविध्य में मिलता है वह अन्य युगों में दुर्लभ है। युगीन काव्य में अपेक्षित गहनता का अभाव है। वास्तविक कलात्मकता की समद्धि नहीं हो पाई है। किंतु राष्ट्रीय उद्बोधन, जागरण, सुधार, सांस्कृतिक पुनरुत्थान के अद्भुत सामर्थ्य, खड़ी बोली के स्वरूप निर्धारण एवं संस्कार के परिणामस्वरूप हिंदी काव्य के इतिहास में द्विवेदी युग का अत्यधिक महत्व है। 

 

 

 

 

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