सहपाठियों से सम्बन्ध (Relationship with Peers)
(अ) मित्र-समूह एवं सम्बन्ध
(ब) मित्रता एवं लिंग ।
(अ) मित्र-समूह एवं सम्बन्ध (Peer Group and Relationship)
- मित्र-समूह सम आयु, योग्यता तथा सामाजिक स्थिति का समूह होता है। किशोर पर अपने मित्र-समूह का अधिक प्रभाव पड़ता है। किशोर किसी न किसी मित्र-समूह का सदस्य होता है। समूह के सदस्य एक ही तरह से सोचते, बोलते तथा कार्य करते हैं। एक मित्र-समूह अपने समूह के सदस्यों के लिए 'हम' की भावना रखता है। किशोर के लिए उसके मित्र-समूह विश्वासपात्र, सत्यवादी तथा ईमानदार होते हैं। मित्र-समूह युवाओं के लिए शरणस्थली होते हैं, जो युवा अपने परिवार के साथ भिन्नता रखते हैं, मित्र-समूह उन्हें सहारा देते हैं। किशोरावस्था में मित्र-समूह में किशोर का काफी समय व्यतीत होता है। किशोर मित्र-समूह में खेलकूद, शिक्षा, राजनीति, परिवार, संगीत, कला तथा अन्य सांसारिक बातों पर विचार-विमर्श करते हैं। वे एक-दूसरे के साथ सामंजस्य रखते हैं। वे एक-दूसरे के साथ मिलकर तरह-तरह की शरारतें करते हैं और समूह की गतिविधियों को पूर्णरूपेण सुरक्षित रखा जाता है। किशोर अक्सर हताशा एवं कुण्ठा की स्थिति में ऐसे मित्र-समूह को ज्वाइन कर लेते हैं जो गलत कार्यों में संलग्न होते हैं और फिर इन लोगों के दबाव में आकर गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं। किशोरों को अपने आपको अराजक कार्यों, समाज विरोधी कार्यों तथा नशीली दवाओं से बचकर रहना चाहिए।
- किशोरों को सदैव अच्छी आदतों वाले योग्य मित्रों का ही चयन करना चाहिए। गलत मित्र-समूह का हिस्सा बनने से उसका परिचय भी गलत ढंग से किया जाता है। मित्र-समूह में भी योग्यता का विशेष महत्व होता है, जो वाद-विवाद, खेलकूद, नाट्यकता तथा रचनात्मक कार्यों में दक्ष होते हैं, वे समूह के नेता बन जाते हैं। जब किशोर तथा उसके माता-पिता के मध्य संघर्ष होता है तो ऐसी स्थिति में किशोर अपने साथी समूहों की ओर मुड़ जाता है। अधिकांश बच्चे तथा किशोर इस स्थिति में यह निश्चय नहीं कर पाते हैं कि उन्हें किस समूह का सदस्य बनना चाहिए और किस समूह का सदस्य नहीं बनना चाहिए और जिस समूह का सदस्य वे बनने जा रहे हैं, वह समूह किस प्रकार का है। वे उस समूह की ओर मुड़ते हैं जो सरलता से उन्हें स्वीकार कर लेते हैं। अधिकांश किशोर परिवार से विरोध प्रकट करने के लिए गैंग के सदस्य बन जाते हैं और शराब तथा नशीली दवाओं का सेवन करना प्रारम्भ कर देते हैं। इससे टूटे हुए सम्बन्ध और आर्थिक भार किशोरों पर और बढ़ जाता है और वे अधिक तनाव में आ जाते हैं।
- मित्र-समूह बच्चों को विभिन्न सामाजिक क्षमताओं के विकास के अवसर भी प्रदान करते हैं। जैसे-नेतृत्व, समूह कार्य की योग्यता आदि। मित्र-समूह नवीन भूमिका तथा अन्तःक्रिया के लिए इन अवसरों को स्वीकार कर लेता है, वे समूह के साथ समानता का व्यवहार करते हैं, परन्तु वे कम व्यवस्थित होते हैं। इस कारण बहुत से बच्चे तथा किशोर एक समूह से दूसरे समूह में चले जाते हैं।
(ब) मित्रता एवं लिंग (Friendships and Gender)
- मित्र-समूह का ढाँचा आयु के साथ-साथ बदलता रहता है। पूर्व-किशोरावस्था मे समूह के कम सदस्य होते हैं। इनकी संख्या औसत रूप से 6 होती है तथा यह सभी समान लिंग के होते हैं, परन्तु जैसे-जैसे किशोर उत्तर किशोरावस्था में प्रवेश करता है, उसके समूह में विषमलिंगी व्यक्ति भी आने लगते हैं। किशोरावस्था समाप्त होने पर मित्र-समूह की एकता कमजोर पड़ जाती है। प्राकृतिक आकर्षण और उत्तेजना के कारण किशोर विषमलिंगीय मित्र बनाते हैं। परिवार तथा मित्र-समूह के दबावों से बचते हुए किशोर अपनी पहचान बनाते हुए आगे बढ़ता है और कुछ समय बाद विकसित किशोर प्रौढ़ों की दुनिया में स्वतन्त्र सदस्य बनकर उभरता है। किशोर तथा किशोरियों में इस समय प्राकृतिक रूप से विषमलिंगी आकर्षण होता है। इस समय वे भावात्मक तथा रागात्मक जीवन व्यतीत करते हैं। उनके आकर्षण का केन्द्र विपरीत लिंग के सदस्य होते हैं। वे उन्हें अपना मित्र बनाने का प्रयास करते हैं तथा बहुत सजते-सँवरते हैं और एक-दूसरे को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। किशोरों में प्राकृतिक रूप से चंचलता पायी जाती है। किशोरों में पुरुषत्व के गुण आने लगते हैं और किशोरियों में नारीत्व के गुण।